परिचय


गणितीय ब्लॉग "गणिताञ्जलि" पर आपका स्वागत है ! $\ast\ast\ast\ast\ast$ प्रस्तुत वेबपृष्ठ गणित के विविध विषयों पर सुरुचिपूर्ण व सुग्राह्य रचनाएँ हिंदी में सविस्तार प्रकाशित करता है.$\ast\ast\ast\ast\ast$ गणिताञ्जलि : शून्य $(0)$ से अनंत $(\infty)$ तक ! $\ast\ast\ast\ast\ast$ इस वेबपृष्ठ पर उपलब्ध लेख मौलिक व प्रामाणिक हैं.

शनिवार, 31 दिसंबर 2016

विभाज्यता - परीक्षण का व्यापक सिद्धांत (General Theory of Divisibility Tests)

विभाज्यता-नियम वे नियम हैं जिनके द्वारा मूल संख्या पर लम्बी भाग की प्रक्रिया किये बिना हम किसी एक संख्या से दूसरी संख्या के विभाज्यता का पता  कर सकते हैं. परंतु विभाज्यता से हमारा क्या तात्पर्य है ? हम कहते हैं कि कोई  पूर्णांक $b$ एक अन्य पूर्णांक $a$ से विभाज्य है (या पूर्णांक $a$ पूर्णांक $b$ को विभाजित करता है), यदि एक ऐसे पूर्णांक $c$ का अस्तित्व हो, जिससे कि $b = ac$ हो, और इस स्थिति में हम $a \mid b$ लिखते हैं और इसे "$a$ $~$ $b$ को विभाजित करता है" पढ़ते हैं. उदाहरण के लिए, $12$ अभाज्य संख्या $3$ से विभाज्य है, क्योंकि एक पूर्णांक $4$ का अस्तित्व है, जिससे कि $12 = 3 \times 4$. विभाज्यता से संबंधित कुछ नियमों से पाठक संभवतः परिचित होंगे - जैसे कोई धन पूर्णांक $2$ से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि इसका इकाई अंक एक सम संख्या हो, और कोई धन पूर्णांक $3$ से विभाज्य होता है, यदि और केवल यदि इनके अंकों का योग $3$ से विभाज्य हों, इत्यादि. अलग - अलग धन पूर्णांक से विभाज्यता के अलग - अलग नियम हैं, जिन्हें याद रख पाना प्रायः कठिन होता है. परन्तु ये सभी नियम कुछ विभाज्यता के कुछ आधारभूत सिद्धांतों पर आधारित हैं, जिन्हें याद रखना और समझना आसान हैं. इन सिद्धांतों को समझ लेने के पश्चात आप किसी भी संख्या से विभाज्यता का नियम स्वयं खोज सकते हैं. प्रस्तुत लेख में हम विभाज्यता-नियमों का उल्लेख करने से पहले इन आधारभूत सिद्धांतों पर चर्चा करेंगे, उन्हें प्रमाणित करेंगे और फिर बताएँगे कि किस प्रकार इन सिद्धांतों का प्रयोग विभाज्यता नियमों के निर्धारण में किया जा सकता है.

गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

रामानुजन – गाथा: चयनित पंक्तियाँ

रामानुजन – गाथा

 

महानतम भारतीय गणितज्ञ व संख्या -सिद्धांत शास्त्री श्रीनिवास रामानुजन की जयंती के उपलक्ष्य में सादर समर्पित !

[प्रस्तुत कविता-अंश स्वरचित "रामानुजन -गाथा" से उद्धृत हैं.] 




थे रामानुजन गणितज्ञ ऐसे, जिन्हें विश्व समादर देते थे।
जिनकी मोहिनी प्रतिभा के आगे सब , नतमस्तक हो जाते थे॥ १ ॥

अंक ही उनकी दुनिया , अंकों में खोए रहते थे।
अंक ही उनका ईश्वर, उन्हें ही वे पूजते थे॥ २ ॥

हमारी भारत माता ने , कितने रत्नों को जन्म दिया।
उन रत्नों ने ज्ञानदीप से , विश्व को प्रकाशमान किया॥ ३ ॥

ईश्वी सन अठारह सौ सतासी , बाईस दिसंबर आया था।
चिरस्मरणीय विश्व में सुन्दर , क्षण यह बनकर आया था॥ ४ ॥

गौरवपूर्ण दिवस यह , रामानुजन का अवतार हुआ।
गणित के इतिहास में , नयी प्रतिभा का आविर्भाव हुआ॥ ५ ॥
..........
पाँच वर्ष की उम्र में उसने , अपना विद्यारम्भ किया ।
अपनी प्रतिभा से शिक्षकों को ,चकित करना शुरू किया॥ १० ॥
....................
गणित में सर्वप्रथम आना, रामानुजन की अभिलाषा थी ।
अपर प्राइमरी कक्षा की , फिर से आई परीक्षा थी ॥ १८ ॥

बयालीस अंक पैंतालीस में से , अंकगणित में उन्होंने प्राप्त किया ।
शत प्रतिशत अंक प्राप्त न कर पाने का , भारी पश्चाताप हुआ ॥ १९ ॥

दुखकातर ह्रदय उनका , घंटों अश्रुपात किया।
गणित ही उनका जीवन , गणित से बड़ा ही प्रेम किया ॥ २० ॥
.....................
प्रथम शोधपत्र था उनका, नवीन और अत्यंत दुरूह |
सामान्य पाठक के लिए वह, न समझा गया अनुकूल ||६८||
......................


विश्व को उनकी प्रतिभा का, अब जाकर आभास हुआ |
कई गणितज्ञों से उनका सार्थक पत्राचार हुआ ||८४||
.....................


सन तेरह में जनवरी सोलह को हार्डी को प्रथम पत्र लिखा |
प्रमेयों से परिपूर्ण वह पत्र, इतिहास में विश्व – प्रसिद्द हुआ ||८८||
..............................
प्रथमतः हार्डी ने उनके, शोधपत्र को समझा था |
उनकी अनोखी प्रतिभा को अपार अलौकिक माना था ||९८||
..............................
ट्रिनिटी कॉलेज में प्रवेश पाकर कैम्ब्रिज वे चले गये |
अलौकिक प्रतिभा से सबको, विस्मित वे करने लगे ||११४||
............................
अठारह फरवरी सन अठारह, विश्व आज गौरवान्वित था |
रॉयल सोसायटी लंदन ने, अपना फैलो मनोनीत किया था ||१५२||
...........................
मद्रास विश्विद्यालय ने भी, उनका समुचित सम्मान किया |
गणित प्राचार्य का पदविशेष, तत्क्षण उनके लिए सृजित किया ||१५८||
..........................
भारत की प्रतिभा, भारत की काया, इंग्लैंड उनके प्रतिकूल था |
ठंडी जलवायु, गिरती सेहत, लौटना भारत श्रेयस्कर था ||१६१||


उस शोध – भूमि को छोड़ उन्होनें, भारत प्रस्थान किया |
वहां पर अब शोध न कर पाने का, उन्हें अत्यंत खेद हुआ||१६२||
............................
कैसे होते स्वस्थ? ईश्वर को यह मंजूर न था |
गणित – साधना को विराम देना, रामानुजन को मंजूर न था ||१७७||


अंत समय भी, मोक थीटा फंक्शन पर काम किया |
घनिष्ठ मित्र हार्डी को, उन परिणामों से सूचित किया ||१७८||
.........................
विकट संकट में नहीं झुकने वाले, काल को वे पराजित कर न सके |
अपने अनगिनत प्रेमी जन को, वे रोने से न रोक सके ||१८३||


सन बीस में अप्रील छब्बीस को, वे ब्रह्माण्ड में समा गये |
अपनी स्मृति को वे जनमानस में छोड़ गये ||१८४||


*************
रामानुजन छाया-चित्र-स्रोत: By Konrad Jacobs (Oberwolfach Photo Collection, original location) [CC BY-SA 2.0 de (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/2.0/de/deed.en)], via Wikimedia Commons 

बुधवार, 23 नवंबर 2016

हेनरी डार्मन ए. एम. एस. कोल पुरस्कार 2017 (AMS Cole Prize 2017) से पुरस्कृत होंगे

अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रेस विज्ञप्ति से अनूदित.
Translated from a press release by the American Mathematical Society.

हेनरी डार्मन
प्रोविडेंस, आर. आइ. -- मैक-गिल विश्विद्यालय (McGill University) के हेनरी डार्मन (Henri Darmon) को संख्या सिद्धांत के अंतर्गत "दीर्घवृतीय वक्रों और मॉड्यूलर फॉर्म्स  के आंकिकी (arithmetic of elliptic curves and modular forms) के क्षेत्र में उनके योगदान" के लिए ए. एम. एस. कोल पुरस्कार 2017 (AMS Cole Prize 2017) से पुरस्कृत किया जाएगा.

हेनरी डार्मन का शोध कार्य गणित के एक अत्यंत चुनौतीपूर्ण अनसुलझी समस्या बर्च व स्विनेटन-डायर अनुमान (Birch and Swinnerton-Dyer conjecture) पर केन्द्रित रहा है. यह समस्या सात "मिलेनीयम पुरस्कार समस्याओं (Millennium Prize Problems)" में से एक है, जिसपर क्ले गणित संस्थान (Clay Mathematics Institute) ने एक मिलियन यु.एस. डॉलर का पुरस्कार प्रस्तावित किया है.

शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

भाई - बहन की संख्या बताने वाली पहेली का रहस्य


गाँव - घर में भाइयों और बहनों की संख्या बताने वाली पहेली बच्चों के बीच बहुत लोकप्रिय होता है. इस पहेली में प्रश्नकर्ता श्रोता से कुछ प्रश्न पूछते हैं और अंत में श्रोता के भाइयों और बहनों की संख्या सही - सही बता देते हैं. कई बच्चे इसे जादू समझते हैं और पहेली पूछने वाले से बहुत ही प्रभावित हो जाते हैं. परन्तु वास्तव में यह कोई जादू नहीं हैं और यह बात ज्यादातर पहेली पूछने वालों को भी पता नहीं होता है. वे पहेली को ज्यों का त्यों याद रखते हैं और इसे अपनी जादुई प्रतिभा कहकर दूसरे को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं. मुझे भी कई बार बचपन में इस पहेली का सामना करना पड़ा है. इस पहेली को सुनकर मैंने इसका रहस्य खोजने का प्रयास किया था. इसमें कुछ भी रहस्य नहीं है और यह केवल बीजगणित का एक अनुप्रयोग है. रहस्य जान लेने के बाद आप स्वयं इस प्रकार के कई पहेलियों की रचना कर सकते हैं. रहस्योद्घाटन से पूर्व हम यह पहेली क्या है - यह बताना चाहेंगे. इस पहेली के अंतर्गत प्रश्नकर्ता श्रोता से निम्नलिखित प्रक्रियाएँ करने को कहते हैं:

  1. सबसे पहले भाइयों की संख्या में $2$ जोड़ें.
  2. अब प्राप्त संख्या में $2$ से गुणा करें.
  3. पुनः प्राप्त उत्तर में $1$ जोड़ें. 
  4. अब इस चरण में प्राप्त संख्या को $5$ से गुणा करें.
  5. पुनः प्राप्त उत्तर में बहनों की संख्या जोड़ें.
  6. अब कुल योग में $25$ घटाएँ.
  7. प्राप्त संख्या मुझे बताएँ.

प्राप्त संख्या बताए जाने के बाद पहेली पूछने वाला उस संख्या का दहाई अंक भाईयों की संख्या और इकाई अंक बहनों की संख्या बताता है.

मान लीजिए कि अंत में प्राप्त संख्या $23$ हैं, तो भाइयों की संख्या $2$ और बहनों की संख्या $3$ होगी. जैसा कि हमने पहले ही कहा है कि यह पहेली बीजगणित के अनुप्रयोग पर आधारित है, तो क्या आप इस पहेली का रहस्य स्वयं खोज सकते हैं. प्रयास करके देखें और सफलता नहीं मिलने के पश्चात ही आगे पढ़ें. रहस्योद्घाटन के लिए नीचे क्लिक करें.

रहस्य जानने के लिए यहाँ क्लिक करें >>>
सबसे पहले यह बताना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि यह पहेली उन स्थतियों में काम नहीं करता है जब श्रोता के भाइयों और बहनों में कम से कम किसी एक की संख्या $9$ से ज्यादा है. इसका कारण आपको शीघ्र ही स्पष्ट हो जाएगा. इस तथ्य को जानने के बाद आप पहेली पूछने वाले को अचंभित कर देंगे और उनका जादू संकट में पड़ जाएगा ! आइये अब बीजगणितीय रहस्य पर चर्चा करते हैं. ध्यान रहें कि हम केवल उस स्थिति पर चर्चा कर रहे हैं जबकि भाईयों और बहनों की संख्याएँ $10$ से कम हों.

मान लीजिये की श्रोता के भाईयों की संख्या $x$ और बहनों की संख्या $y$. यदि पहेली पूछने वाले को किसी तरह दो अंकों की संख्या $xy$ (यहाँ $xy$ दो अंकों की संख्या है न कि $x$ और $y$ का गुणनफल) पता चल जाए, तो वह इस संख्या को देखकर ही भाइयों और बहनों की संख्या बता देगा. इसके लिए वह इस संख्या को योग - गुणन इत्यादि संक्रियाओं के माध्यम से एक भिन्न प्रकार के व्यंजक के रूप में व्यक्त करता है, जो पहेली का आधार है. ध्यान दीजिये कि दो अंको की संख्या $xy$ वास्तव में विस्तृत रूप में $10x + y $ है. जैसे $23 = 10 \times 2 + 3$. अब हम $10x + y$ को निम्नलिखित रूप में भी व्यक्त कर सकते हैं:
\[10x + y = [\{(x + 2)\times 2 + 1\}\times 5 + y] - 25.\]
उपरोक्त व्यंजक से स्पष्ट है कि आप $10x + y$ तब भी प्राप्त कर सकते है, जब आप उपरोक्त पहेली के प्रथम छह चरणों की प्रक्रियाएँ करते हैं.

अब आप अवश्य ही उपरोक्त पहेली का रहस्य समझ गए होंगे. आप $10x + y$ को अन्य व्यंजकों के रूप में व्यक्त कर भिन्न - भिन्न प्रकार के पहेलियों का निर्माण कर सकते हैं. मैंने भी ऐसा किया था. कुछ प्रयास करने पर आप वैसी पहेली का भी निर्माण कर सकते हैं, जिससे भाईयों या बहनों की संख्या $9$ से अधिक होने पर उनकी संख्या का पता लगाया जा सके.

आपको यह प्रस्तुति कैसी लगी ? - नीचे टिप्पणी - बॉक्स में अपना विचार अवश्य व्यक्त करें !

रविवार, 16 अक्टूबर 2016

2 + 2 ÷ 2 = 2 या 3 ?

हमारे घर में जब भी कोई वृद्ध अतिथि आते थे और मुझे गणित पढ़ते देखते थे, तो अचानक ही सवाल कर देते थे: $2 + 2 \div 2$ (दो जोड़ दो भागा दो) क्या होगा ? हो सकता है आपलोगों में से भी बहुतों के साथ ऐसा हुआ होगा. इस प्रश्न से जोड़ - घटाव - गुणा - भाग में पारंगत छात्र भी उत्तर देने में कभी कभी असमंजस में पड़ जाते हैं. मेरे साथ भी ऐसा होता था.  इस प्रश्न का सही उत्तर क्या होगा ?

बुधवार, 12 अक्टूबर 2016

गणितीय आगमन सिद्धांत

माखनलाल चतुर्वेदी की एक कविता है - "दीप से दीप जले" जिसकी प्रथम और अंतिम पंक्तियाँ हैं: 

सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें
सुलग-सुलग री जोत! दीप से दीप जलें।

आप सोच रहे होंगे कि गणितीय आगमन सिद्धांत  (Principle of Mathematical Induction) का इस कविता से क्या संबंध है ! शीघ्र ही यह स्पष्ट हो जाएगा. मान लीजिए एक कतार में अनंत संख्या में दीप रखे हुए हैं. कल्पना कीजिए कि किसी भी एक दीप के जलना शुरू करते ही अगला दीप भी जलना शुरू कर देता है. इस स्थिति में यदि आप कतार में पहले स्थान पर रखे दीप को जलाते हैं, तो क्या सभी दीप स्वयं जल उठेंगे ? शायद आपका उत्तर भी "हाँ" होगा.

गणितीय आगमन सिद्धांत भी इसी व्यावहारिक प्रेक्षण पर आधारित है. मान लीजिए कि हमें सिद्ध करना है कि कोई कथन किसी भी प्राकृत संख्या $n$ के लिए सत्य है. इसके लिए हम इस कथन को $n = 1$ के लिए सत्य सिद्ध करते हैं. पुनः हम सिद्ध करते हैं कि यदि यह कथन किसी स्वेच्छ संख्या $n = k$ के लिए सत्य है, तो यह अगली संख्या $k + 1$ के लिए भी सत्य होता है. तब यह सिद्ध हो जाता है कि वह कथन सभी $n$ के लिए सत्य है, क्योंकि $n = 1$ के लिए सत्य होने के कारण यह $n = 2$ के लिए सत्य होता है, फिर $n = 2$ के लिए सत्य होने के कारण $n = 3$ के लिए सत्य होता है, इसी प्रकार $n = 4, 5$, इत्यादि के लिए सत्य होता है.

इस सिद्धांत के विषय में विस्तार से जानने के लिए यह लेख पढ़ें: गणितीय आगमन सिद्धांत.

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2016

दाशमिक संख्या प्रणाली

विजयादशमी के बहाने.......
सर्वप्रथम विजयादशमी की मंगलप्रदायी शुभकामनायें ! 

आज विजयादशमी है. विजयादशमी में "दशमी" शब्द से ध्यान आया "दस" का और "दस" से ध्यान आया "दाशमिक संख्या प्रणाली" का. दाशमिक संख्या प्रणाली के विषय में महान गणितज्ञ लाप्लास ने कहा था:

"किसी भी संख्या को केवल दस प्रतीकों (प्रत्येक प्रतीक का एक स्थानीय मान और एक निरपेक्ष मान अर्थात अंकित मान होता है) की सहायता से व्यक्त करने की दक्ष विधि की खोज भारत में की गई. आजकल यह धारणा इतनी आसान लगती है कि इसके महत्त्व और इसकी अगाध उपयोगिता को हम पहली दृष्टि में नहीं समझ पाते हैं. इस धारणा ने परिकलनों को आसान बनाकर अंकगणित को सभी उपयोगी आविष्कारों में शीर्ष स्थान पर सुशोभित कर दिया - यह इसकी सरलता का परिचायक है. हमारी दृष्टि में इस आविष्कार का महत्त्व तब और बढ़ जाता है जब हम सोचते हैं कि यह धारणा प्राचीन काल के दो महापुरुषों आर्किमिडीज और अपोलोनियस की दृष्टि से भी परे था."
निश्चय ही दाशमिक संख्या प्रणाली गणित और विज्ञान के इतिहास में एक अभूतपूर्व और महानतम योगदान है, जिसका श्रेय और गौरव भारत को प्राप्त है. जैसा कि लाप्लास ने कहा है कि इसकी महत्ता और इसकी उपयोगिता को हम पहली दृष्टि में नहीं आंक पाते हैं. क्या कभी आपने सोचा है कि दशमिक संख्या पद्धति ही क्यों इतना सहज है ? इस पद्धति में संख्याओं को लिखना और गिनना आसान क्यों है ? द्विआधारी पद्धति का प्रयोग करने में हमें कठिनाई क्यों होती है ? परन्तु यही द्विआधारी पद्धति निर्जीव कम्प्यूटर (जो मानवों की तरह सोच नहीं सकता) के लिए आसान क्यों है ? या इनपर बिना सोचे ही लाप्लास के कहने पर आपने मान लिया कि निश्चय ही यह महानतम आविष्कार है. इन प्रश्नों पर एक बार गहराई से चिंतन कीजिए. तभी आपको इसकी महानता का सही - सही पता चलेगा. अपना चिंतन और प्रेक्षण आप नीचे टिप्पणी कर सकते हैं.

भारतीय अंक प्रणाली की विशेषताएँ:
  • इसमें दस संकेतों का उपयोग होता है: $0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9.$
  • केवल दस संकेतों से ही छोटी-बड़ी सभी संख्याएँ लिखी जा सकती हैं.
  • बड़ी-बड़ी संख्याएं लिखने में भी कम स्थान घेरतीं हैं (रोमन अंक प्रणाली में ऐसा नहीं है).
  • भारतीय अंक प्रणाली स्थानीय मान पर आधारित दाशमिक प्रणाली है.
  • इसमें 'शून्य' नामक एक अंक की परिकल्पना भी की गयी है जो अत्यन्त क्रांतिकारी कल्पना (खोज) थी। शून्य किसी भी स्थान पर हो, उसका स्थानीय मान 'शून्य' ही होता है। किन्तु किसी अंक या अंक-समूह के दाहिनी ओर शून्य लगाने से उसके बायें के सभी अंकों का स्थानीय मान पहले का दस गुना हो जाता है। वस्तुतः शून्य के बिना कोई भी स्थानीय मान पद्धति काम नहीं कर सकती।
  • भारतीय अंकों के प्रयोग से अधिकांश गणितीय संक्रियाएँ (जोड़, घटाव, गुणा, भाग, वर्गमूल आदि) करना बहुत सुविधाजनक है (रोमन आदि अन्य प्रणालियों में यह सम्भव नहीं था).

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2016

ABC अनुमान क्या है ?

गणित के अंतर्गत संख्या  सिद्धांत में कई ऐसी अनसुलझी समस्याएँ हैं, जो अपनी बोधगम्यता और दुरूहता के कारण गणितज्ञों को शताब्दियों से आकर्षित और अचंभित करते आए हैं. ये समस्याएँ बोधगम्य इसलिए हैं कि इनके कथन गणित का साधारण ज्ञान रखने वाले व्यक्ति भी समझ सकते हैं और दुरूह इसलिए हैं कि गणित में वर्तमान में ज्ञात सिद्धांतों की सहायता से इन समस्याओं को हल करना अत्यंत कठिन प्रतीत होता है - कुछ समस्याओं को शताब्दियों बाद गणित की उच्चस्तरीय तकनीकों और सिद्धांतों की सहायता से सुलझाया जा सका है और कुछ समस्याएँ अभी भी शताब्दियों से अनसुलझे पड़े हैं. इन अनसुलझे समस्याओं में कुछ अभिनव समस्याएँ भी हैं. इन्हीं समस्याओं में एक अत्यंत रोचक समस्या है - $ABC$ अनुमान. इस अनुमान को फ़्रांसिसी गणितज्ञ Joseph Oesterlé और बेसेल विश्वविद्यालय (University of Basel) के गणितज्ञ  David Masser ने 1985 में प्रतिपादित किया था. हाल ही में, 2012 में क्योटो विश्विद्यालय में कार्यरत जापानी गणितज्ञ Shinichi Mochizuki ने इस समस्या का हल प्रस्तावित किया है. कई वर्षों के एकांत शोध के पश्चात् उन्होनें लगभग 500 पृष्ठों में इस समस्या का हल प्रस्तुत किया है. यह शोध पत्र एक गणितीय शोध पत्रिका  में प्रकाशनार्थ विचाराधीन है और विशेषज्ञ गणितज्ञ इस शोध पत्र के अध्ययन में रत हैं. उनके इस शोध कार्य को कुछ गिने - चुने गणितज्ञ ही कुछ हद तक समझ पाए हैं और गणितज्ञों का विश्वास है कि शोध पत्र में प्रस्तुत हल सही है. पूर्ण सत्यापन के पश्चात ही इसका प्रकाशन किसी शोध पत्रिका में किया जाएगा.

मंगलवार, 20 सितंबर 2016

लघुगणक सारणी के प्रयोग के बिना अभिकलन

संख्यात्मक अभिकलनों से संबंधित कुछ ऐसी समस्याएँ हैं, जिन्हें हम लघुगणक की सहायता से आसानी से हल कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, किसी संख्या का वर्गमूल, घनमूल, पंचमूल,......, nवाँ मूल ज्ञात करने की समस्या; किसी संख्या का घात ज्ञात करने की समस्या, इत्यादि. इन समस्याओं को हल करने के क्रम में हम या तो लघुगणक सारणी का प्रयोग करते हैं या परिकलक (कैलकुलेटर) या संगणक (कम्प्यूटर) का. क्या कभी आपने सोचा है कि परिकलक या संगणक लघुगणक का मान कैसे ज्ञात करता है ? वह कौन सी प्रक्रिया है, जिसकी सहायता से संख्याओं के लघुगणक का मान ज्ञात कर लघुगणक सारणी के रूप में सारणीबद्ध किया गया ? यदि आप यह प्रक्रिया जान जाएँ, तो आप बिना किसी लघुगणक सारणी, परिकलक या संगणक की सहायता से किसी संख्या का लघुगणक ज्ञात कर सकते हैं. इन प्रक्रियाओं में हमें केवल योग, गुणन, व्यवकलन और विभाजन की संक्रियाओं का ही प्रयोग करना पड़ता है, जिन्हें आसानी से किया जा सकता है. प्रस्तुत लेख में हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे.

रविवार, 21 अगस्त 2016

रचनीय संख्याओं का विलक्षण संसार

प्राचीन ग्रीसवासी ज्यामितीय रचनाओं में विशेष रुचि रखते थे. वे विशेषकर वैसी रचनाओं में रुचि रखते थे, जिनकी रचनाएँ केवल पैमाने (जिसपर केवल इकाई दूरी अंशांकित हों) और परकार की सहयता से किया जा सके. उन्हें समबाहु त्रिभुज, वर्ग, समपंचभुज, समषट्भुज इत्यादि की रचनाओं का ज्ञान था. उन्हें किसी कोण को समद्विभाजित करने का भी ज्ञान था. परन्तु, समसप्त्भुज की रचना कैसे की जाए या किसी कोण को कैसे समत्रिभाजित किया जाए - इनके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. इसके अतिरिक्त ज्यामितीय रचनाओं से संबंधित कुछ और भी समस्याएँ थीं, जो उनके लिए असाध्य थीं. जैसे कि किसी वृत्त के क्षेत्रफल के बराबर वर्ग की रचना या किसी घन के आयतन के दुगुने आयतन वाले घन की रचना, इत्यादि. इन समस्याओं ने गणितज्ञों को 2000 वर्षों तक उलझाए रखा. इन समस्याओं का समाधान 19वीं शताब्दी में संभव हो सका, जब इन ज्यामितीय समस्याओं को बीजगणितीय समस्याओं के रूप में परिवर्तित किया गया. वास्तव में उपरोक्त समस्याओं की रचनाएँ संभव नहीं है. अतः इन रचनाओं में मिली असफलता स्वाभाविक थी. बीजगणित के माध्यम से इन समस्याओं के अध्ययन के क्रम में दो नई प्रकार की संख्याओं का उद्गम हुआ - रचनीय संख्याएँ और अरचनीय संख्याएँ. प्रस्तुत लेख में हम इन विषयों पर विस्तार से चर्चा करेंगे.
चित्र - 1: वास्तविक संख्याओं का वर्गीकरण
वास्तविक संख्याओं को उनके लक्षणों के आधार पर कई वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, प्राकृत संख्याओं को विभाज्यता के आधार पर सम (even) और विषम (odd) संख्याओं में, गुणनखंड के आधार पर अभाज्य (prime) और भाज्य (composite) संख्याओं में, परिमेयता के आधार पर परिमेय (rational) और अपरिमेय (irrational) संख्याओं में वर्गीकृत किया जा सकता है.  आइए, हम वास्तविक संख्याओं के एक अन्य लक्षण पर विचार करते हैं. यह लक्षण है - रचनीयता. इस लक्षण के आधार पर हम वास्तविक संख्याओं को दो प्रकार की संख्याओं में वर्गीकृत करते हैं - रचनीय संख्याएँ (constructible numbers) और अरचनीय संख्याएँ  (non-constructible numbers). जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है - रचनीय संख्या का अर्थ है - वैसी संख्या जिसकी रचना की जा सके. रचना से हमारा तात्पर्य है - वास्तविक संख्या रेखा (real number line) पर किसी संख्या का ज्यामितीय निरूपण. इन संख्याओं की रचना हेतु हम केवल दो ज्यामितीय उपकरणों - पैमाना (ruler) और परकार (compass) का प्रयोग करेंगे. इस पैमाने पर केवल इकाई दूरी (unit length) और इसके पूर्णांकीय दूरी अंशांकित होंगे (चित्र - 2 देखें). सैद्धांतिक रूप से हम इस पैमाने को अनंत लम्बाई वाला मान सकते हैं. इस प्रकार रचनीय संख्याओं को हम निम्न प्रकार परिभाषित कर सकते हैं:

रचनीय संख्याएँ वैसी वास्तविक संख्याएँ हैं, जिनका ज्यामितीय निरूपण संख्या रेखा पर केवल उपरोक्त वर्णित पैमाना और परकार की सहायता से किया जा सके. वैसी संख्याएँ जो रचनीय संख्याएँ नहीं हैं, अरचनीय संख्याएँ कहलाती हैं.

मंगलवार, 9 अगस्त 2016

क्या बिंदु अपरिभाषित है ?

ज्यामिति का आरंभ जिन तीन अवधारणाओं से होता है - वे हैं बिंदु, रेखा और समतल  की अवधारणाएँ. बिंदु क्या है ? बिंदु की क्या परिभाषा है ? इस प्रश्न का उत्तर प्रायः यह कहकर दिया जाता है कि बिंदु अपरिभाषित है. अर्थात, इसे परिभाषित नहीं किया जा सकता है. इसकी केवल कल्पना की जा सकती है या इसका केवल वर्णन किया जा सकता है. इसे क्यों नहीं परिभाषित किया जा सकता है ? - इस प्रश्न का उत्तर पाने से पहले हमें बिंदु का व्यावहारिक निरूपण समझना होगा.

गुरुवार, 4 अगस्त 2016

अभिगृहीत...प्रमेय...उपप्रमेय...प्रमेयिका...???

गणित के उच्च-स्तरीय पाठ्य पुस्तकों को खोलते ही हमारा सामना कुछ विशिष्ट शब्दावलियों : अभिगृहीत (Axiom), प्रमेय (Theorem), उपप्रमेय (Corollary), प्रमेयिका (Lemma), प्रतिज्ञप्ति (Proposition), अनुमान (Conjecture), उपपत्ति (proof), परिभाषा (Definition),  इत्यादि से हमारा सामना होता है. यहाँ तक कि सातवीं - आठवीं कक्षा के छात्रों को भी ज्यामिति की पुस्तक में इन शब्दावलियों का सामना करना पड़ता है. यहाँ हम इन शब्दावलियों को परिभाषित करेंगे और इनके प्रयोगों के विषय में बताएँगे.

मंगलवार, 10 मई 2016

गणितज्ञ कैसे बनें ? तीसरी कड़ी : $ab =ba$ क्यों ?


"गणितज्ञ कैसे बनें ?" गणितीय आलेखों की एक श्रृंखला है, जिसके अंतर्गत विविध गणितीय विषयों पर ऐसे लेख प्रस्तुत किये जाते हैं, जो पाठकों को ज्ञात गणितीय तथ्यों, परिणामों और सूत्रों को स्वयं खोजने के लिए क्रमबद्ध तरीके से प्रेरित करते हैं और जिनसे उनके अंदर गणितीय शोध की स्वाभाविक प्रवृति जागृत होती है.

 
प्रारंभिक बीजगणित (elementary algebra) के पाठ्यक्रम में बीजीय व्यंजकों (algebraic expressions) से संबंधित समस्याओं को हल करते समय  हम सदैव $ab$ और $ba$ को समान मानते हैं. उदाहरण के लिए, हम तत्समक (identity) $(a + b)^2 = a^2 + 2ab + b^2$ को सिद्ध करते समय इस मान्यता का प्रयोग करते हैं कि $ab = ba$. इसे नीचे सपष्ट किया गया है :
\begin{align*}
(a+b)^2 &= (a+b)(a+b) \\
&= a(a+b)+ b(a+b)\\
&=a^2 + ab + ba + b^2\\
&=a^2 + ab + ab + b^2 ~~~~~~~~~~~~~~~~\text{[क्योंकि $ab =ba$]}\\
&=a^2 + 2ab + b^2
\end{align*}
शीर्ष पर जाएँ