परिचय


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मंगलवार, 31 मार्च 2015

अंकगणित का मूलभूत प्रमेय (Fundamental Theorem of Arithmetic)

एक धन पूर्णांक $a$ को पूर्णांक $n$ का गुणनखंड कहते हैं, यदि $a$ पूर्णांक $n$ को विभाजित करता है.  इस स्थिति में हम $n$ को $a$ और किसी अन्य पूर्णांक $b$ के गुणनफल के रूप में व्यक्त कर सकते हैं. अर्थात $n = ab$ और इस स्थिति में  $b$ भी $n$ का  एक गुणनखंड होता है. उदाहरण के लिए, $30$ का एक गुणनखंड $2$ है. इसलिए हम $30 = 2 \cdot 15$ लिखते हैं.  इस प्रकार हम $30$ को दो पूर्णांकों $2$ और $15$ के गुणनफल के रूप में लिख सकते हैं.  हम देख सकते हैं कि दोनों ही गुणनखंड $30$ से छोटे हैं. अब इसके एक गुणनखंड $15$ पर विचार कीजिये. हम आसानी से कह सकते हैं कि $15$ का एक गुणनखंड $3$ है और इसलिए $15 = 3 \cdot 5$ लिख सकते हैं. इस प्रकार हम $30$ का पुनः गुणनखंडन कर सकते हैं. अर्थात हम $30 = 2 \cdot 3 \cdot 5$ लिख सकते हैं. पुनः हम देखते हैं कि $30$ का प्रत्येक गुणनखंड $30$ से छोटा है. क्या हम इन गुणनखंडों में से किसी गुणनखंड को पुनः छोटे गुणनखंडों के रूप में लिख सकते हैं ? हम $2$ को $1 \cdot 2$ के रूप में लिख सकते हैं. क्योंकि किसी संख्या को $1$ से गुणा करने पर गुणनफल के रूप में वही संख्या प्राप्त होती है, अतः हम ऐसे गुणनखंड पर विचार नहीं करेंगे. इस प्रकार हम देखते हैं $30$ का और अधिक गुणनखंडन नहीं किया जा सकता, जिससे कि प्रत्येक गुणनखंड $1$ से बड़ा और $30$ से छोटा हो. इस प्रकार के गुणनखंडन को अभाज्य गुणनखंडन कहते हैं और गुणनखंडन में सम्मिलित प्रत्येक गुणनखंड को अभाज्य गुणनखंड कहते हैं, क्योंकि इन गुणनखंडों का पुनः विभाजन संभव नहीं है. जिस धन पूर्णांक को $1$ या उस संख्या के अतरिक्त किसी अन्य धन पूर्णांकों के गुणनफल के रूप में व्यक्त नहीं किया जा सके, उसे हम अभाज्य संख्या कहते हैं. दूसरे शब्दों में हम इसे निम्न प्रकार परिभाषित करते हैं:

परिभाषा (अभाज्य संख्या). एक धन पूर्णांक $p > 1$ को अभाज्य संख्या कहा जाता है, यदि इसके गुणनखंड केवल $1$ और $p$ हों. एक से बड़ी वैसी संख्या, जो अभाज्य नहीं है, उसे संयुक्त संख्या कहा जाता है. $1$ न तो अभाज्य संख्या है और न ही संयुक्त संख्या.

 उदाहरण के लिए $2, 3, 5, 7, 11, 13, 17, 19, 23, 29, 31, 37, 41, 43, 47, 53, 59, 61, 67, 71$ प्रथम बीस अभाज्य संख्याएँ हैं.  इस प्रकार $30$ के गुणनखंडन $2 \cdot 3 \cdot 5$ में सभी गुणनखंड अभाज्य संख्याएँ हैं. क्या सभी धन पूर्णांकों का अभाज्य गुणनखंडन संभव है ? अपने अनुभव और अंतर्ज्ञान से हम जानते हैं कि ऐसा करना सदैव ही संभव है. वास्तव में,  ऐसा करना संभव है. इस तथ्य को हम निम्नलिखित प्रमेय, जिसे "अंकगणित का मूलभूत प्रमेय" कहा जाता है,  में व्यक्त करते हैं.

 प्रमेय (अंकगणित का मूलभूत प्रमेय). प्रत्येक धन पूर्णांक $n > 1$ को अभाज्य संख्याओं के गुणनफल के रूप में निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है:
\[n = p_1^{e_1} \cdots p_k^{e_k},\]
जहाँ $p_1, \ldots, p_k$ भिन्न - भिन्न अभाज्य संख्याएँ हैं और $e_1, \ldots, e_k$ धन पूर्णांक हैं. यदि इस निरूपण में अभाज्य गुणनखंडों के क्रम को महत्त्व न दिया जाये तो यह निरूपण अद्वितीय होता है.


इस प्रमेय की उपपत्ति और इस विषय से संबंधित अन्य जानकारी के लिए मूल आलेख अभाज्य संख्याएँ देखें.
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सोमवार, 23 मार्च 2015

महत्तम समापवर्तक (Greatest Common Divisor)

मान लीजिए $a$ और $b$ स्वेच्छ पूर्णांक हैं | एक पूर्णांक $d$ को $a$ और $b$ का समापवर्तक (common factor) या सार्वभाजक (common divisor) कहते हैं, यदि $d \mid a$ और $d \mid b$. क्योंकि $1$ सभी पूर्णांकों को विभाजित करता है, यह $a$ और $b$ का सार्वभाजक है | इस प्रकार $a$ और $b$ के धनात्मक सार्वभाजकों का समुच्चय अरिक्त है | अब, क्योंकि प्रत्येक धन पूर्णांक $0$ को विभाजित करता है, अतः यदि $a = b =0$ हों, तो प्रत्येक धन पूर्णांक $a$ और $b$ का सार्वभाजक होगा | इस प्रकार, इस स्थिति में $a$ और $b$  के धन सार्वभाजकों की संख्या अनंत है | परन्तु,  यदि  $a$ और $b$ में कम से कम एक पूर्णांक शून्येतर (nonzero) हो, तो इनके धन सार्वभाजकों की संख्या परिमित होगी | इन सार्वभाजकों में एक महत्तम संख्या होती है, जिसे हम $a$ और $b$ का महत्तम समापवर्तक (greatest common factor) या महत्तम सार्वभाजक (greatest common divisor) कहते हैं | इस प्रकार हम निन्लिखित परिभाषा देते हैं:
    
परिभाषा (महत्तम सार्वभाजक). मान लीजिए $a$ और $b$ पूर्णांक हैं, जिनमें कम से कम एक पूर्णांक शून्येतर है | संख्याओं $a$ और $b$ के महत्तम सार्वभाजक, जिसे $\gcd(a, b)$ से निरुपित किया जाता है, एक धन पूर्णांक $d$ होता है, जो निम्न प्रतिबंधों को संतुष्ट करता है:
(a) $d \mid a$ और $d \mid b$.
(b) यदि $c \mid a$ और $c \mid b$, तो $c \leq d$.

उदाहरण. दो पूर्णांक $-8$ और $12$ लीजिए | $-8$ के धन भाजक $1, 2, 4$ और $8$ हैं, जबकि $12$ के धन भाजक $1, 2, 3, 4, 6$ और $12$ हैं |इस प्रकार $-8$ और $12$ के सार्वभाजक $1, 2$ और $4$ हैं | इनमें $4$ महत्तम संख्या है | अतः $\gcd(-8, 12)=4$.

        अगला प्रमेय बताता है कि दो संख्याओं $a$ और $b$ के महत्तम सार्वभाजक को $a$ और $b$ के रैखिक संयोजन (linear combination) के रूप में लिखा जा सकता है |

प्रमेय. यदि $a$ और $b$ दो दिए गए पूर्णांक हों, जिनमें कम से कम एक शून्येतर हो, तो पूर्णांकों $x$ और $y$ का अस्तित्व होता है, जिससे कि 
\[\gcd(a, b) = ax + by.\] 
इस प्रमेय की उपपत्ति और इस विषय से संबंधित अन्य जानकारी के लिए मूल आलेख विभाज्यता - सिद्धांत (The Theory of Divisibility) देखें |

ध्यातव्य: इस विषय से संबंधित किसी भी प्रश्न या जिज्ञासा के लिए इस पृष्ठ पर टिप्पणी करें या ganitanjalii@gmail.com पर ई-मेल करें |

(चैत्र शुक्ल पक्ष, चतुर्थी, वि. सं. 2072, सोमवार)
(चैत्र 02, राष्ट्रीय शाके 1937, सोमवार)

शनिवार, 21 मार्च 2015

विभाजन - कलन विधि (Division Algorithm)

पूर्णांकों के विभाजन से संबंधित सिद्धांतों में एक आधारभूत सिद्धांत "विभाजन - कलन विधि" है | इस विधि से प्रायः हम सब परिचित है : यदि एक पूर्णांक $a$ को किसी धनपूर्णांक $b$ से विभाजित किया जाए, तो शेषफल (remainder) सदैव $b$ से कम होता है | उदाहरण के लिए,  यदि $13$ को $5$ से विभाजित किया जाए, तो हमें शेषफल $3$ प्राप्त होता है और इसे हम इस प्रकार व्यक्त करते हैं :
\[13 = 5 \times 2 + 3.\]
यहाँ हम संख्या $13$ को  भाज्य (dividend), संख्या $5$ को भाजक (divisor), संख्या $2$ को भागफल (quotient) और संख्या $3$ को शेषफल या शेष कहते हैं | अधिक व्यापक रूप में, यदि भाज्य $a$ को भाजक $b$ से विभाजित करने पर भागफल और शेष क्रमशः $q$ और $r$ हों, तो हम लिखते हैं :
\[a = bq + r.\]
क्या ऐसा करना किन्हीं भी संख्या - युग्म $(a, b)$ के लिए संभव है ? हमारा अंतर्ज्ञान कहता है कि ऐसा करना सदैव संभव है, यदि भाजक $b$ धनात्मक हो | निम्नलिखित प्रमेय इसी तथ्य को व्यक्त करता है |
 
प्रमेय (विभाजन - कलन विधि). यदि $a$ और $b$ दो पूर्णांक हों, और $b > 0$, तो अद्वितीय पूर्णांकों $q$ और $r$ का अस्तित्व होता है, जिससे कि 
\[a = bq + r, ~ 0 \leq r < b.\]
पूर्णांकों $q$ और $r$ को क्रमशः भागफल और शेषफल कहा जाता है | उल्लेखनीय है कि उपरोक्त प्रमेय में प्रतिबन्ध b > 0 को हटाया जा सकता है और व्यापक विभाजन - कलन विधि का कथन दिया जा सकता है |

इस प्रमेय की उपपत्ति और इस विषय से संबंधित अन्य जानकारी के लिए मूल आलेख विभाज्यता - सिद्धांत (The Theory of Divisibility) देखें |

(चैत्र शुक्ल पक्ष, प्रथमा, वि. सं. 2072)

सोमवार, 2 मार्च 2015

बौधायन त्रिक

तीन प्राकृत संख्याओं के क्रमित त्रिक $ (a, b, c) $ को बौधायन त्रिक या पाइथागोरस त्रिक कहा जाता है, यदि $ a^2 + b^2 = c^2 $. ऐसे त्रिक एक समकोण त्रिभुज को निर्दिष्ट करते हैं, जिनकी भुजाएँ $ a, b $, और $ c $ हों | ऐसे त्रिकों की संख्या अनंत हैं, जिन्हें निम्नलिखित सूत्र से प्राप्त किया जा सकता है: \[a = m^2 - n^2 , b = 2mn , c = m^2 + n^2 .\]
            यदि $ (a, b, c) $ एक बौधायन त्रिक हों, तो $ (ka, kb, kc) $ भी एक बौधायन त्रिक होता है | यदि $ a, b, c $ का महत्तम समापवर्तक $ 1 $ हो, तो $ (a, b, c) $ को प्राथमिक बौधायन त्रिक कहा जाता है | कुछ त्रिकों के उदाहरण निम्नलिखित हैं:
$ (3, 4, 5); (5, 12, 13); (8, 15, 17); (7, 24, 25); (20, 21, 29); (12, 35, 37); (9, 40, 41); (28, 45, 53);$
$ (11, 60, 61); (16, 63, 65); (33, 56, 65); (48, 55, 73); (13, 84, 85); (36, 77, 85); (39, 80, 89); (65, 72, 97). $
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