गणित में किसी एक विशेष समस्या के हल हेतु प्रयुक्त धारणा अत्यधिक व्यापक समस्या को हल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. प्रस्तुत लेख इस बिंदु की स्पष्टता से व्याख्या करता है. इस लेख में हम देखेंगे कि कैसे एक समान्तर अनुक्रम से संबंधित समस्या को हल करने में प्रयुक्त धारणा व्यापक समान्तर अनुक्रम से संबंधित व्यापक समस्या के हल में उपयोगी सिद्ध होती है.
गणित में हमें प्रायः निम्नांकित प्रकार के अनुक्रम (sequence) देखने को मिलते हैं:
1, 2, 3, 4, 5, 6, \ldots
1, 3, 5, 7, 9, 11, \ldots
2, 4, 6, 8, 10, 12, \ldots
2, 5, 8, 11, 14, 17, \ldots
\pi, \pi + 2, \pi + 4, \pi + 6, \ldots
-5\pi, -4\pi, -3\pi, -2\pi, -\pi, 0, \pi, 2\pi, 3\pi, \ldots
1 + \sqrt{2}, 1 + 2 \sqrt{2}, 1 + 3\sqrt{2}, \ldots
हम देख सकते हैं कि उपरोक्त अनुक्रमों में, दो क्रमागत पदों के बीच समान अंतर हैं. इस प्रकार के विशेष अनुक्रमों को गणित में एक विशेष नाम दिया गया है: समान्तर अनुक्रम (arithmetic sequence). इस प्रकार के अनुक्रम को हम परिशुद्ध रूप में निम्न प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं.
समान्तर अनुक्रम वास्तविक या सम्मिश्र संख्याओं (real or complex numbers) का एक ऐसा अनुक्रम \{a_1, a_2, a_3, \ldots, a_{k-1}, a_k, \ldots\} है जिससे कि
a_2 - a_1 = a_3 - a_2 = a_4 - a_3 = \cdots = a_k - a_{k-1} = \cdots.
दो क्रमागत पदों के बीच का अंतर समान है जिसे दिए गए अनुक्रम का सार्व अंतर (common difference) कहा जाता है. यदि हम इस सार्व अंतर को d से निरुपित करें, तो हम लिख सकते हैं कि
a_2 - a_1 = d
जिससे हमें
a_2 = a_1 + d
प्राप्त होता है. इसी प्रकार,
a_3 - a_2 = d
जिससे हमें
a_3 = a_2 + d = (a_1 + d) + d = a_1 + 2d
प्राप्त होता है. व्यापक रूप में, गणितीय आगमन की सहायता से हम प्रमाणित कर सकते हैं कि
a_n = a_1 + (n-1)d~\text{for}~n = 1, 2, 3, \ldots.
उपरोक्त संबंध को ध्यान में रखते हुए, कभी-कभी गणित में समान्तर अनुक्रम को एक ऐसे अनुक्रम \{a_1, a_2, a_3, \ldots\} की तरह परिभाषित किया जाता है जिससे कि a_n = a_1 + (n-1)d for n = 1, 2, 3, \ldots. यहाँ पद a_1 को अनुक्रम का प्रथम पद (first term), d को अनुक्रम का सार्व अंतर कहा जाता है और a_n को अनुक्रम का n-वाँ पद कहा जाता है. इस प्रकार, समान्तर अनुक्रम का निर्माण अत्यंत आसान है: हम प्रथम पद a_1 और सार्व अंतर d को नियत करते हैं और तत्पश्चात संबंध a_n = a_1 + (n-1)d की सहायता से अन्य पदों को लिखते हैं.
टिप्पणी: समान्तर अनुक्रम को समूह (group) में भी परिभाषित किया जा सकता है. अमूर्त बीजगणित में समूह की अवधारणा से परिचित पाठक इसे अवश्य समझ पाएँगे. इस विषय पर हम यहाँ परिचर्चा नहीं करेंगे.
एक स्वाभाविक प्रश्न उठता है: एक समान्तर अनुक्रम के परिमित संख्या में क्रमागत पदों का योग (शीघ्रता से) कैसे ज्ञात करें ? इस प्रश्न का उत्तर देने से पहले हम कुछ विशेष उदाहरणों पर विचार करेंगे.
उदाहरण-1. प्राकृत संख्याओं के अनुक्रम
1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, , 9, 10, 11,\ldots
पर विचार करें.
योगफल 1 + 2 + 3 + \cdots + 50 क्या है?
उपरोक्त योगफल ज्ञात करने की एक विधि यह है कि हम एक-एक करके के पदों का योग करें. परन्तु यदि योगफल में पदों (योज्य) की संख्या बहुत ज्यादा हों, जैसे कि 1000 या 50000 या 100000000, इत्यादि, तो इस विधि से परिकलन करना कठिन कार्य होगा. हम कोई अन्य विधि खोजने का प्रयास करते हैं. पहले हम
S = 1 + 2 + 3 + \cdots + 48 + 49 + 50.
लिखते हैं. अब इसे हम निम्न प्रकार भी लिख सकते हैं:
S = 50 + 49 + 48 + \cdots + 3 + 2 + 1.
हमने केवल योज्यों (summands) को विपरीत क्रम में लिखा है. प्रेक्षण करने पर हम पाते हैं कि पहले व्यंजक के प्रथम पद और दूसरे व्यंजक के प्रथम पद का योगफल 1 + 50 = 51 है. इसी प्रकार, दोनों व्यंजकों के द्वितीय पदों का योग भी 2 + 49 = 51 है. व्यापक रूप में, पहले व्यंजक के किसी पद का योग दूसरे व्यंजक के संगत पद के साथ लेने पर हमें समान उत्तर 51 प्राप्त होता है. इस प्रकार, यदि हम दोनों व्यंजकों का योग लें, तो हमें प्राप्त होगा:
2S = \underbrace{51 + 51 + 51+ \cdots + 51 + 51 + 51}_{50~\text{times}}.
यह योगफल ज्ञात करना आसन है, क्योंकि यहाँ योज्य समान हैं. हम आसानी से ज्ञात कर सकते हैं कि
2S = 50 \times 51.
ध्यान दें कि हमने कितनी आसानी से 2S का मान ज्ञात कर लिया! परन्तु हमें S का मान ज्ञात करना है.यह अत्यंत आसान है. हम 2S के मान 2 से विभाजित करके आसानी से S$ का मान ज्ञात कर सकते हैं.अतः,
S = \frac{50 \times 51}{2} = 1275.
उदाहरण-2. प्राकृत संख्याओं के अनुक्रम
1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, , 9, 10, 11,\ldots
पर विचार करें. योग 1 + 2 + 3 + \cdots + n का मान क्या है?
यहाँ हम प्रथम n प्राकृत संख्याओं का योग ज्ञात करना चाहते हैं. इससे पहले का उदाहरण इस उदाहरण की एक विशेष स्थिति हैं, जहाँ n = 50. क्या आप पहले उदाहरण के सदृश इस योग का मान ज्ञात कर सकते हैं? प्रयास करके देखें.
हम
S_n = 1 + 2 + 3 + \cdots + (n-2) + (n-1) + n
लिखते हैं. इस योग S_n को हम निम्न प्रकार भी लिख सकते हैं:
S_n = n + (n-1) + (n-2) + \cdots + 3 + 2 + 1.
पुनः, ध्यान दें कि पहले व्यंजक के किसी पद का योग दूसरे व्यंजक के संगत पद के साथ लेने पर हमें सदैव n + 1 प्राप्त होता है.अतः, यदि हम दोनों व्यंजकों का योग लें, तो हमें
2S_n = \underbrace{(n + 1) + (n + 1) + (n + 1) + \cdots + (n + 1) + (n + 1) + (n + 1) }_{n~\text{times}}
प्राप्त होगा.
यह योगफल ज्ञात करना आसन है, क्योंकि यहाँ योज्य समान हैं. हम आसानी से ज्ञात कर सकते हैं कि
2S_n = n(n+1).
हम 2S_nS के मान 2 से विभाजित करके आसानी से S_n$ का मान ज्ञात कर सकते हैं.अतः,
S_n = \frac{n(n +1)}{2}.
यह प्रथम n प्राकृत संख्याओं के योगफल का सूत्र है. ध्यान दें कि किस प्रकार किसी विशेष स्थिति में प्रयुक्त धारणा अत्यधिक व्यापक स्थिति में भी पूर्ण रूप से समस्या के हल में सहायक सिद्ध हुई. उपरोक्त सूत्र में n == 50 प्रतिस्थापित करने पर हमें वही उत्तर प्राप्त होगा, जो पहले उदाहरण में प्राप्त हुआ था.
इस लेख आरम्भ में उद्धृत एक अन्य अनुक्रम \{1, 3, 5, 7, 9, \ldots\} पर विचार करते हैं. हम देख सकते हैं कि इस समान्तर अनुक्रम का सार्व अंतर 2 है. क्योंकि प्रथम पद
a_1 = 1 है, हम n-वें पद के सूत्र का प्रयोग कर सकते हैं और लिख सकते हैं कि a_n = 1 +
2(n-1) = 2n - 1. इस प्रकार, प्रथम n विषम प्राकृत संख्याएँ (odd natural numbers) \{1, 3,
5, \ldots, 2n-5, 2n -3, 2n-1\} हैं.
उदाहरण-3. प्रथम n विषम प्राकृत संख्याओं का योग क्या है? अर्थात,
1 + 3 + 5 + \cdots + (2n-1)
का मान क्या है?
हम पूर्व में प्रयुक्त विधि का प्रयोग कर सकते हैं. पहले हम
T_n = 1 + 3 + 5 + \cdots + (2n-5) + (2n-3) + (2n-1)
लिखते हैं. इस योग T_n को हम निम्न प्रकार भी लिख सकते हैं:
T_n = (2n-1) + (2n-3) + (2n-5) + \cdots + 5 + 3 + 1.
पुनः, ध्यान दें कि पहले व्यंजक के किसी पद का योग दूसरे व्यंजक के संगत पद के साथ लेने पर हमें सदैव 2n प्राप्त होता है.अतः, यदि हम दोनों व्यंजकों का योग लें, तो हमें
2T_n = \underbrace{2n + 2n + 2n + \cdots + 2n + 2n + 2n}_{n~\text{times}}.
प्राप्त होगा. यह योगफल ज्ञात करना आसन है, क्योंकि यहाँ योज्य समान हैं. हम आसानी से ज्ञात कर सकते हैं कि
2T_n = 2n^2.
हम 2T_nS के मान 2 से विभाजित करके आसानी से T_n$ का मान ज्ञात कर सकते हैं.अतः,
T_n = n^2.
यह प्रथम n विषम संख्याओं के योगफल का व्यापक सूत्र है. कई पाठकगण इस सूत्र से परिचित होंगे.
अब आप निम्नलिखित प्रश्न को हल करने का प्रयास कर सकते हैं.
प्रश्न-1. प्रथम n सम संख्याओं का योगफल क्या है?
उपरोक्त धारणा का प्रयोग किसी भी समान्तर अनुक्रम के परिमित संख्या में क्रमागत पदों का योगफल ज्ञात करने में किया जा सकता है. मान लीजिए कि \{a_1, a_2, \ldots, a_n\} एक समान्तर अनुक्रम \{a_1, a_2, \ldots, a_n, \ldots\} के प्रथम n पद हैं.हम
S = a_1 + a_2 + \ldots + a_{n-1} + a_n
ज्ञात करना चाहते हैं. यदि इस अनुक्रम का सार्व अंतर d हों, तो हम लिख सकते हैं कि
S = a_1 + (a_1 + d) + \ldots + (a_1 + (n-2)d) + (a_1 + (n-1)d).
उपरोक्त व्यंजक को हम निम्न प्रकार भी लिख सकते हैं:
S = (a_1 + (n-1)d) + (a_1 + (n-2)d) + \ldots + a_2 + a_1.
अब, दोनों व्यंजकों का योग लेने पर हमें प्राप्त होता है:
2S = n[2a_1 + (n-1)d)].
अतः,
S = \frac{n}{2}[2a_1 + (n-1)d].
यह एक समान्तर अनुक्रम के प्रथम n पदों के योगफल का व्यापक सूत्र है. इस सूत्र को हम अन्य रूप में भी व्यक्त कर सकते हैं. हम लिख सकते हैं कि
S = \frac{n}{2}[a_1 + (a_1 + (n-1)d)].
क्योंकि a_n = a_1 + (n-1)d, हमेंप्राप्त होता है:
S = \frac{n}{2}(a_1 + a_n).
इस प्रकार किसी समान्तर अनुक्रम के प्रथम n पदों का योगफल उस अनुक्रम के प्रथम और n-वें पद के योगफल और n के गुणनफल का आधा होता है. उदाहरण-2 और उदाहरण-3 के सूत्रों को आसानी से इस व्यापक सूत्र से निगमित किया जा सकता है. उदाहरण-2 में a_1 = 1, d = 1 और a_n = n हैं, जबकि उदाहरण 3 में a_1 = 1, d = 2 और a_n = 2n - 1 हैं. हम इन मानों को किसी भी एक सूत्र में प्रतिस्थापित करके वांछित परिणाम प्राप्त कर सकते हैं.
किसी समान्तर अनुक्रम के पदों के योग को समान्तर श्रेणी (arithmetic series) कहा जाता है. हम ऊपर किसी समान्तर श्रेणी के प्रथम n पदों का योगफल ज्ञात कर चुके हैं.
कोई टिप्पणी नहीं :
एक टिप्पणी भेजें