परिचय


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मंगलवार, 11 अक्टूबर 2016

दाशमिक संख्या प्रणाली

विजयादशमी के बहाने.......
सर्वप्रथम विजयादशमी की मंगलप्रदायी शुभकामनायें ! 

आज विजयादशमी है. विजयादशमी में "दशमी" शब्द से ध्यान आया "दस" का और "दस" से ध्यान आया "दाशमिक संख्या प्रणाली" का. दाशमिक संख्या प्रणाली के विषय में महान गणितज्ञ लाप्लास ने कहा था:

"किसी भी संख्या को केवल दस प्रतीकों (प्रत्येक प्रतीक का एक स्थानीय मान और एक निरपेक्ष मान अर्थात अंकित मान होता है) की सहायता से व्यक्त करने की दक्ष विधि की खोज भारत में की गई. आजकल यह धारणा इतनी आसान लगती है कि इसके महत्त्व और इसकी अगाध उपयोगिता को हम पहली दृष्टि में नहीं समझ पाते हैं. इस धारणा ने परिकलनों को आसान बनाकर अंकगणित को सभी उपयोगी आविष्कारों में शीर्ष स्थान पर सुशोभित कर दिया - यह इसकी सरलता का परिचायक है. हमारी दृष्टि में इस आविष्कार का महत्त्व तब और बढ़ जाता है जब हम सोचते हैं कि यह धारणा प्राचीन काल के दो महापुरुषों आर्किमिडीज और अपोलोनियस की दृष्टि से भी परे था."
निश्चय ही दाशमिक संख्या प्रणाली गणित और विज्ञान के इतिहास में एक अभूतपूर्व और महानतम योगदान है, जिसका श्रेय और गौरव भारत को प्राप्त है. जैसा कि लाप्लास ने कहा है कि इसकी महत्ता और इसकी उपयोगिता को हम पहली दृष्टि में नहीं आंक पाते हैं. क्या कभी आपने सोचा है कि दशमिक संख्या पद्धति ही क्यों इतना सहज है ? इस पद्धति में संख्याओं को लिखना और गिनना आसान क्यों है ? द्विआधारी पद्धति का प्रयोग करने में हमें कठिनाई क्यों होती है ? परन्तु यही द्विआधारी पद्धति निर्जीव कम्प्यूटर (जो मानवों की तरह सोच नहीं सकता) के लिए आसान क्यों है ? या इनपर बिना सोचे ही लाप्लास के कहने पर आपने मान लिया कि निश्चय ही यह महानतम आविष्कार है. इन प्रश्नों पर एक बार गहराई से चिंतन कीजिए. तभी आपको इसकी महानता का सही - सही पता चलेगा. अपना चिंतन और प्रेक्षण आप नीचे टिप्पणी कर सकते हैं.

भारतीय अंक प्रणाली की विशेषताएँ:
  • इसमें दस संकेतों का उपयोग होता है: $0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9.$
  • केवल दस संकेतों से ही छोटी-बड़ी सभी संख्याएँ लिखी जा सकती हैं.
  • बड़ी-बड़ी संख्याएं लिखने में भी कम स्थान घेरतीं हैं (रोमन अंक प्रणाली में ऐसा नहीं है).
  • भारतीय अंक प्रणाली स्थानीय मान पर आधारित दाशमिक प्रणाली है.
  • इसमें 'शून्य' नामक एक अंक की परिकल्पना भी की गयी है जो अत्यन्त क्रांतिकारी कल्पना (खोज) थी। शून्य किसी भी स्थान पर हो, उसका स्थानीय मान 'शून्य' ही होता है। किन्तु किसी अंक या अंक-समूह के दाहिनी ओर शून्य लगाने से उसके बायें के सभी अंकों का स्थानीय मान पहले का दस गुना हो जाता है। वस्तुतः शून्य के बिना कोई भी स्थानीय मान पद्धति काम नहीं कर सकती।
  • भारतीय अंकों के प्रयोग से अधिकांश गणितीय संक्रियाएँ (जोड़, घटाव, गुणा, भाग, वर्गमूल आदि) करना बहुत सुविधाजनक है (रोमन आदि अन्य प्रणालियों में यह सम्भव नहीं था).

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