पूर्णांकों के विभाजन से संबंधित सिद्धांतों में एक आधारभूत
सिद्धांत "विभाजन - कलन विधि" है | इस विधि से प्रायः हम सब परिचित है :
यदि एक पूर्णांक $a$ को किसी धनपूर्णांक $b$ से विभाजित किया जाए, तो शेषफल
(remainder) सदैव $b$ से कम होता है | उदाहरण के लिए, यदि $13$ को $5$ से
विभाजित किया जाए, तो हमें शेषफल $3$ प्राप्त होता है और इसे हम इस प्रकार
व्यक्त करते हैं :
\[13 = 5 \times 2 + 3.\]
यहाँ
हम संख्या $13$ को भाज्य (dividend), संख्या $5$ को भाजक (divisor),
संख्या $2$ को भागफल (quotient) और संख्या $3$ को शेषफल या शेष कहते हैं |
अधिक व्यापक रूप में, यदि भाज्य $a$ को भाजक $b$ से विभाजित करने पर भागफल
और शेष क्रमशः $q$ और $r$ हों, तो हम लिखते हैं :
\[a = bq + r.\]
क्या
ऐसा करना किन्हीं भी संख्या - युग्म $(a, b)$ के लिए संभव है ? हमारा
अंतर्ज्ञान कहता है कि ऐसा करना सदैव संभव है, यदि भाजक $b$ धनात्मक हो |
निम्नलिखित प्रमेय इसी तथ्य को व्यक्त करता है |
प्रमेय (विभाजन - कलन विधि). यदि $a$ और $b$ दो पूर्णांक हों, और $b > 0$, तो अद्वितीय पूर्णांकों $q$ और $r$ का अस्तित्व होता है, जिससे कि
\[a = bq + r, ~ 0 \leq r < b.\]
पूर्णांकों $q$ और $r$ को क्रमशः भागफल और शेषफल कहा जाता है | उल्लेखनीय है कि उपरोक्त प्रमेय में प्रतिबन्ध b > 0 को हटाया जा सकता है और व्यापक विभाजन - कलन विधि का कथन दिया जा सकता है |
इस प्रमेय की उपपत्ति और इस विषय से संबंधित अन्य जानकारी के लिए मूल आलेख विभाज्यता - सिद्धांत (The Theory of Divisibility) देखें |
(चैत्र शुक्ल पक्ष, प्रथमा, वि. सं. 2072)
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