परिचय


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मंगलवार, 10 मई 2016

गणितज्ञ कैसे बनें ? तीसरी कड़ी : $ab =ba$ क्यों ?


"गणितज्ञ कैसे बनें ?" गणितीय आलेखों की एक श्रृंखला है, जिसके अंतर्गत विविध गणितीय विषयों पर ऐसे लेख प्रस्तुत किये जाते हैं, जो पाठकों को ज्ञात गणितीय तथ्यों, परिणामों और सूत्रों को स्वयं खोजने के लिए क्रमबद्ध तरीके से प्रेरित करते हैं और जिनसे उनके अंदर गणितीय शोध की स्वाभाविक प्रवृति जागृत होती है.

 
प्रारंभिक बीजगणित (elementary algebra) के पाठ्यक्रम में बीजीय व्यंजकों (algebraic expressions) से संबंधित समस्याओं को हल करते समय  हम सदैव $ab$ और $ba$ को समान मानते हैं. उदाहरण के लिए, हम तत्समक (identity) $(a + b)^2 = a^2 + 2ab + b^2$ को सिद्ध करते समय इस मान्यता का प्रयोग करते हैं कि $ab = ba$. इसे नीचे सपष्ट किया गया है :
\begin{align*}
(a+b)^2 &= (a+b)(a+b) \\
&= a(a+b)+ b(a+b)\\
&=a^2 + ab + ba + b^2\\
&=a^2 + ab + ab + b^2 ~~~~~~~~~~~~~~~~\text{[क्योंकि $ab =ba$]}\\
&=a^2 + 2ab + b^2
\end{align*}

       इसी प्रकार, यदि हमें $7$ और $143$ या $219$ और $37549723$ का गुणनफल (product) ज्ञात करना हो, तो अपनी सुविधा के लिए हम क्रमशः $143$ को $7$ से और $37549723$ को $219$ से गुणा करना पसंद करते हैं, न कि $7$ को $143$ से और $37549723$ को $219$ से, क्योंकि हम जानते हैं कि दोनों ही स्थितियों में समान उत्तर प्राप्त होगा.

       परन्तु क्या सदैव $ab = ba$ होता है ? इस प्रश्न का कथन जितना आसान दीखता है, उससे कहीं ज्यादा कठिन इस प्रश्न का उत्तर है. वास्तव में, गणित में कई स्थितियों में $ab$ और $ba$ का मान अलग - अलग होता है. अर्थात, यदि $a$ और $b$ के क्रम को उलट दिया जाए, तो अलग - अलग मान प्राप्त होगा. यह बात प्रारंभिक गणित के पाठकों को असामान्य लग रहा होगा और यह स्वाभाविक भी है. शीघ्र ही हम इसकी व्याख्या कुछ सरल उदाहरणों की सहायता से करेंगे. परन्तु क्या सामान्य पाठकों का उत्तर गलत है ? वास्तव में उनका उत्तर बहुत सारी स्थितियों में सत्य है. जबतक आप "गुणन" की "संक्रिया" चिर-परिचित प्राकृत संख्याओं (natural numbers), पूर्णांक संख्याओं (integers), वास्तविक संख्याओं (real numbers) या सम्मिश्र संख्याओं (complex numbers) के साथ करते हैं, तबतक आप $ab = ba$ का प्रयोग निःसंदेह कर सकते हैं. क्योंकि सामान्य पाठकों का परिचय केवल इन्हीं संख्याओं से होता है, अतः यह कथन कि $ab = ba$ सदैव सत्य नहीं होता है, उन्हें अतार्किक लगता है. तो आइए हम इस प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयास करते हैं.

        यदि आप व्यंजक $ab$ को ध्यान से देखें, तो आपको दो बातें सोचनी होंगी: (1) $a$ और $b$ क्या है ? (2) $a$ और $b$ के गुणनफल से क्या तात्पर्य है ? यदि $a$ और $b$ उपरोक्त संख्याएँ हों, तो हमें यह ज्ञात है कि $ab = ba$ सत्य है. यहाँ पर हमने चिर - परिचित गुणनफल का ही प्रयोग किया है. अतः यदि हमें कोई ऐसा प्रति-उदाहरण खोजना हो, जिसमें $ab \neq ba$ हो, तो अवश्य ही या तो संकेत $a$ और $b$ उपरोक्त संख्याओं के जगह कोई अन्य चीजें होनी चाहिए या "गुणनफल" का कोई अन्य अर्थ होना चाहिए.  आइए सबसे पहले हम "गुणनफल"  पर बातें करते हैं.

       "गुणनफल" क्या है ? यदि आप इस प्रश्न पर गहराई से सोचें, तो आप पाएँगे कि इस प्रश्न का उत्तर वास्तव में कठिन है. यदि आप वास्तविक संख्याओं के ही गुणनफल पर विचार करें, तो उत्तर प्राप्त करना कठिन होगा. आइए, इस  कठिनाई को हम कुछ उदाहरणों की सहायता से स्पष्ट करते हैं. मान लीजिए, आपसे कहा जाए कि $3$ को $5$ से गुणा करें, तो आपका शीघ्र ही उत्तर होगा : $15$. वास्तव में, आप $3$ को $5$ बार जोड़ते हैं.
\[3 \times 5 = 3 + 3+ 3+ 3+ 3 = 15.\]
इसी प्रकार,
\[23 \times 19 = \underbrace{23 + \cdots + 23}_{19~ \text{बार}}.\]
यद्यपि, इस बार आपने इस प्रक्रिया का उपयोग नहीं किया होगा, और गुणा करने की व्यावहारिक विधियों का उपयोग किया होगा. क्या आपने कभी प्रश्न किया है कि गुणा हम उसी विधि से ही क्यों करते हैं ? वास्तव में यह प्रश्न पूछना यह पूछने के समान है कि गुणनफल क्या है ? अत्यधिक व्यापक रूप में, यदि $a$ और $b$ दो प्राकृत संख्याएँ हों, तो
\[ab := a \times b = \underbrace{a + \cdots + a}_{b ~\text{बार}}.\]
परन्तु आप गुणनफल की इस संकल्पना का उपयोग सदैव नहीं कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, इस विधि से आप $1.5$ को $0.7$ से गुणा नहीं कर पाएँगे, क्योंकि $0.7$ बार का उस तरह का कोई अर्थ नहीं है. समस्या को थोड़ा और कठिन बनाते हैं. आप $\sqrt{2}$ और $\sqrt{3}$ के गुणनफल पर विचार करें, तो आपको कठिनाई पता चल जाएगी. अतः दो वास्तविक संख्याओं का गुणनफल उपरोक्त विधि से परिभाषित नहीं किया जा सकता है. वास्तविक संख्याओं के गुणनफल को परिभाषित करने की व्यवस्थित विधि है. परन्तु यहाँ हम इसकी चर्चा नहीं करेंगे, क्योंकि यह अत्यंत तकनीकी विषय है और सामान्य पाठकों के लिए दुरूह है और पाठकों से गणित के उच्च-स्तरीय ज्ञान की अपेक्षा रखता है. परन्तु यहाँ हम "गुणनफल" के व्यापक अर्थ पर चर्चा करेंगे, जिन्हें समझना सामान्य पाठको के लिए आसान है. यह भी उल्लेखनीय है कि वास्तविक संख्याओं के  गुणनफल के क्रमविनिमेयता (commutativity) का गुणधर्म (ab = ba) भी कुछ अभिगृहीतों (axioms) की सहायता से स्थापित किया जा सकता है. इन विषयों पर विस्तृत चर्चा हम अपने लेखों की शृंखला संख्याओं की आधारशिला  (foundation of numbers) में करेंगे.

       यदि आप दो वास्तविक संख्याओं को गुणा करते हैं, तो आपको एक अन्य वास्तविक संख्या प्राप्त होती है. इस प्रकार चिर-परिचित गुणनफल की प्रक्रिया ($\times$) एक प्रकार की गणितीय "संक्रिया" हैं, जो किन्हीं वास्तविक संख्याओं के क्रमित युग्म $(a, b)$ का सम्बन्ध  एक अद्वितीय वास्तविक मान $c$ से स्थापित करता है और हम लिखते हैं
\[ab := a \times b = c.\]
अर्थात $a \times b = c$. उदाहरण के लिए, यदि $a = 2$ और $b = 3$, तो $c = 6$ होता है. इसी प्रकार, यदि $a = 1.5$ और $b = 0.7$, तो $c = 1.05$ होता है.

       गुणनफल की यह संक्रिया एक प्रकार की ''द्विआधारी संक्रिया (binary operation)'' है, क्योंकि यह संक्रिया क्रमित युग्मों पर लागू किया जाता है. गणित में कई प्रकार की द्विआधारी संक्रियाएँ हैं. उदाहरण के लिए, योग की संक्रिया ($+$) और व्यवकलन यानि घटाव (subtraction) की संक्रिया  ($-$). अत्यधिक व्यापक रूप में, द्विआधारी संक्रिया को निम्न प्रकार परिभाषित किया जा सकता है.

परिभाषा (द्विआधारी संक्रिया): मान लीजिए $S$ एक अरिक्त समुच्चय  (nonempty set)है. एक द्विआधारी संक्रिया $\ast$ एक फलन होता है, जो क्रमित युग्मों $(a, b)$, जहाँ $a$ और $b$ समुच्चय $S$ के अवयव हैं, का संबंध समुच्चय $S$ के एक अद्वितीय अवयव $c$ से करता है. हम संकेत में लिखते हैं :
\[\ast(a, b) = a \ast b = c. \]

उदाहरण के लिए , $3 \times 5 = 15$ में $(a, b) = (3, 5)$ और $c = 15$ है, जहाँ द्विआधारी संक्रिया $\ast$ गुणनफल की संक्रिया $\times $ है. ध्यान दें कि वास्तविक संख्याओं के समुच्चय $\mathbb{R}$ में घटाव की संक्रिया ($-$) एक द्विआधारी संक्रिया है, परन्तु यही संक्रिया प्राकृत संख्याओं के समुच्चय $\mathbb{N}$ में द्विआधारी संक्रिया नहीं हैं, क्योंकि सभी संख्या -युग्मों पर इस द्विआधारी संक्रिया के पश्चात् प्राप्त परिणाम समुच्चय $\mathbb{N}$ के अवयव नहीं होते हैं. उदाहरण के लिए, $3 - 5 = -2$, परन्तु $-2$ प्राकृत संख्या नहीं है. अब हम इस स्थिति में पहुँच गए हैं कि पूर्व में उठाए प्रश्न का उत्तर खोज सके. हम इसे निम्नलिखित उदाहरणों की सहायता से स्पष्ट करेंगे.

उदाहरण 1. हम प्राकृत संख्याओं के समुच्चय $\mathbb{N}$ में एक ऐसी द्विआधारी संक्रिया $\ast$ परिभाषित करेंगे जिससे कि दो भिन्न - भिन्न प्राकृत संख्याओं $a$ और $b$ के लिए $a \ast b \neq ba$ होता हो. हम
\[a \ast b = a \times (b + 1)\]
परिभाषित करते हैं. यह देखना आसान है कि यह संक्रिया एक द्विआधारी संक्रिया है, क्योंकि यह प्रत्येक संख्या - युग्म $(a, b)$ का संबंध एक अन्य संख्या $a \times (b + 1)$ से करता है, जो एक प्राकृत संख्या है. आप आसानी से देख सकते हैं कि $a \ast b \neq b\ast a$, क्योंकि
\[a \ast b = a \times(b + 1) = ab + a ~ \text{जबकि }~ b \ast a = b\times(a + 1) = ba + b. \]
इसे संख्यात्मक उदाहरण लेकर समझते हैं. हम $a = 3$ और $b = 5$ चुनते हैं, तब
\[3 \ast 5 = 3\times(5 + 1) = 3 \times 6 = 18,\]
जबकि
\[5 \ast 3 = 5 \times(3+1) = 5 \times 4 = 20.\]

उदाहरण 2. मान लीजिये $X$ सभी प्रांत $\mathbb{R}$ वाले वास्तविक मान फलनों (real valued functions) का समुच्चय है. इस प्रकार के फलनों से हमारा तात्पर्य है: ये फलन वास्तविक संख्याओं के समुच्चय पर परिभाषित हैं और इनके मान भी वास्तविक संख्याएँ हैं. हम समुच्चय $X$ में किन्हीं दो फलनों $f$ और $g$ का संयोजन $f \circ g$ निम्न प्रकार परिभाषित करते हैं:
\[f \circ g(x) = f(g(x)).\]
ध्यान दीजिए कि संक्रिया $\circ$ समुच्चय $X$ में एक द्विआधारी संक्रिया है, क्योंकि इस संक्रिया के परिणामस्वरूप समुच्चय $X$ के किन्हीं दो फलनों  $f$ और $g$ का संयोजन $f \circ g$ एक वास्तविक प्रांत वाले वास्तविक मान फलन है. अब मान लीजिये $f(x) = 2x$ और $g(x) = x + 1$. तब सभी $x$ के लिए,
\[f \circ g(x) = f(g(x)) = f(x+1) = 2(x+1) = 2x + 2\]
और
\[g \circ f(x) = g(f(x)) = g(2x) = 2x + 1.\]
क्योंकि $2x + 2 \neq 2x + 1$, इसलिए, सभी $x$ के लिए, $f \circ g(x) \neq g\circ f(x)$. अतः
\[f \circ g \neq g \circ f.\]

इस उदाहरण में हमने देखा कि यहाँ समुच्चय संख्याओं का नहीं था और न ही द्विआधारी संक्रिया चिर-परिचित गुणनफल की संक्रिया थी.

        हम एक अन्य उदाहरण देंगे. इस उदाहरण के समुच्चय के अवयव वास्तविक संख्याओं का व्यापकीकरण (generalization) माना जा सकता है. उदाहरण देने से पहले, हम एक परिभाषा देना चाहते हैं. एक $m \times n$ वास्तविक आव्यूह (real matrix) $A$,  $m$ पंक्तियों (rows) और $n$ स्तंभों (columns) वाली सारणी है, जिसके $i$वें पंक्ति और $j$वें स्तम्भ की प्रविष्टि (entry) को $a_{ij}$ से व्यक्त किया जाता है. इस स्थिति में हम संक्षिप्त में $A = (a_{ij})$ लिखते हैं और विस्तार में इसे इस प्रकार निरूपित करते हैं:
\[A=\begin{pmatrix}
a_{11} & a_{12} & \cdots & a_{1n}\\
a_{21} & a_{22} & \cdots & a_{2n}\\
& & \vdots&\\
a_{m1} & a_{m2} & \cdots & a_{mn}
\end{pmatrix}.
\]
यदि $A = (a_{ij})$ और $B = (b_{ij})$ क्रमशः $m \times n$ और $n \times p$ वास्तविक आव्यूह हों, तो इनका गुणनफल $AB$ एक $m \times p$ आव्यूह $C = (c_{ij})$ होता है, जहाँ $c_{ij}$ निम्न प्रकार परिभाषित है:
\[c_{ij} = \sum_{k = 1}^{n}a_{ik}b_{kj}.\]
ध्यान दें कि दो आव्यूहों का गुणनफल (product of matrices) परिभाषित होने के लिए पहले आव्यूह के स्तंभों की संख्या दुसरे आव्यूहों की पंक्तियों की संख्या के बराबर होना चाहिए. दो $m \times n$ आव्यूह $A = (a_{ij})$ और $B = (b_{ij})$ समान कहे जाते हैं अर्थात $A = B$ यदि और केवल यदि इनकी संगत प्रविष्टियाँ समान हों, अर्थात सभी $i$ और $j$ के लिए $a_{ij} = b_{ij}$. आव्यूहों पर विस्तृत चर्चा हम किसी अन्य लेख में करेंगे. यदि उपरोक्त परिभाषाएँ आपको कठिन प्रतीत होती हैं, तो आप कुछ विशेष स्थितियों को समझने का प्रयास करें, जिसकी चर्चा हम नीचे कर रहे हैं. हम केवल $2 \times 2$ आव्यूहों पर विचार करते हैं. मान लीजिये


\[A=\begin{pmatrix}
a_1 & a_2\\
b_1 & b_2

\end{pmatrix}
~\text{और}~
B=
\begin{pmatrix}
c_1 & c_2\\
d_1 & d_2

\end{pmatrix}
\]
दो आव्यूह हैं. हम कहते हैं कि $A = B$ यदि और केवल यदि $a_1 = c_1, a_2 = c_2, b_1 = d_1, b_2 = d_2$. इनका गुणनफल $AB$ निम्न प्रकार परिभाषित है:


\[AB = \begin{pmatrix}
a_1c_1 + a_2d_1 & a_1c_2+a_2d_2\\
b_1c_1 + b_2d_1 & b_1c_2+ b_2d_2

\end{pmatrix}.
\]
इसी प्रकार, हम देख सकते हैं कि 
\[BA = \begin{pmatrix}
c_1a_1 + c_2b_1 & c_1a_2+c_2b_2\\
d_1a_1 + d_2b_1 & d_1a_2+ d_2b_2

\end{pmatrix}.
\]
यह ध्यान देने योग्य है कि $AB $ और $BA$ के मान सभी स्थितियों में समान नहीं हो सकते हैं. नीचे हम एक उदाहरण देते हैं.
उदाहरण 3. मान लीजिये 
\[A=\begin{pmatrix}
1 & 2\\
3 & 4

\end{pmatrix}
~\text{और}~
B=
\begin{pmatrix}
2 & 5\\
1 & 3

\end{pmatrix}
\]
दो आव्यूह हैं. तब
\[AB = \begin{pmatrix}
4 & 11\\
10 & 27

\end{pmatrix}
~\text{और}~
BA = \begin{pmatrix}
17 & 24\\
10 & 14

\end{pmatrix}.
\]
स्पष्ट है कि $AB \neq BA$. 

       इस प्रकार हमने देखा कि ऐसी सुपरिभाषित गणितीय वस्तुओं (well-defined mathematical objects) $a, b$ और उनपर परिभाषित द्विआधारी संक्रियाओं $\ast$ का अस्तित्व है, जिससे कि $ab \neq ba$.

       यदि $S$ कोई अरिक्त समुच्चय हों और $\ast $ इस समुच्चय पर परिभाषित कोई द्विआधारी संक्रिया हों, तो समुच्चय $S$ और द्विआधारी संक्रिया $\ast$ को संयुक्त रूप से एक बीजीय संरचना (algebraic structure) कहते हैं, और इस प्रकार एक बीजीय संरचना एक युग्म $(S, \ast)$ होता है, जहाँ $S$ एक अरिक्त समुच्चय है और $\ast $ उस समुच्चय पर परिभाषित एक द्विआधारी संक्रिया है. उदाहरण के लिए, गुणन की संक्रिया ($\times$) के साथ प्राकृत संख्याओं का समुच्चय एक बीजीय संरचना है, जिसे $(\mathbb{N}, \times)$ से व्यक्त किया जाता है. परन्तु घटाव ($-$) की संक्रिया के साथ प्राकृत संख्याओं का समुच्चय एक बीजीय संरचना नहीं है, क्योंकि घटाव की संक्रिया प्राकृत संख्याओं के समुच्चय में एक द्विआधारी संक्रिया नहीं है. बीजीय संरचना होने के लिए संक्रिया का द्विआधारी संक्रिया होना आवश्यक है. यह भी ध्यान दें कि एक ही समुच्चय पर एक से अधिक द्विआधारी संक्रिया परिभाषित किया जा सकता है और इस प्रकार हमें एक ही समुच्चय के लिए भिन्न - भिन्न बीजीय संरचना प्राप्त होगी. उदाहरण के लिए, $(\mathbb{N}, \times)$ और $(\mathbb{N}, +)$ दो भिन्न - भिन्न बीजीय संरचना है, यद्यपि यहाँ निहित समुच्चय एक ही है. यदि किसी समुच्चय $S$ पर परिभाषित कोई द्विआधारी संक्रिया $\ast$ क्रमविनिमेय हो, तो बीजीय संरचना $(S, \ast)$ को क्रमविनिमेय बीजीय संरचना (commutative algebraic structure) कहते हैं, अन्यथा इसे अक्रमविनिमेय बीजीय संरचना (noncommutative algebraic structure) कहते हैं. बीजीय संरचनाओं के विषय में गहन अध्ययन उच्च-स्तरीय गणित के पाठ्यक्रम "अमूर्त बीजगणित (abstract algebra)" में किया जाता है.


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