परिचय


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गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

द्विघातीय समीकरण

द्विघातीय समीकरण प्रारंभिक बीजगणित के क्षेत्र में अध्ययन की एक महत्त्वपूर्ण विषय - वस्तु है. प्रस्तुत लेख में इस समीकरण ,इसके हल की विधियों  और इसके इतिहास पर विस्तृत चर्चा की गई है.

1. परिचय 

द्विघातीय समीकरण  (quadratic equation) द्वितीय घात वाला एक बहुपद समीकरण (polynomial equation) है, जिसका व्यापक रूप
\begin{equation}\label{qe}
ax^2 + bx + c = 0
\end{equation}
होता है, जहाँ $a, b, c$ अचर (constant) हैं और $a$ शून्येतर (nonzero) है. यदि $a = 0$, तो उपरोक्त समीकरण रैखिक समीकरण (linear equation) होता है. ये अचर या तो वास्तविक संख्या (real numbers) होते हैं या सम्मिश्र संख्या (complex numbers) या किसी व्यापक क्षेत्र (field) के अवयव हो सकते हैं. यदि सभी अचर वास्तविक संख्याएँ हों, तो उपरोक्त समीकरण को वास्तविक द्विघातीय समीकरण  (real quadratic equation) कहा जाता है. ध्यान दें कि उपरोक्त समीकरण में केवल एक चर (variable) $x$ विद्यमान है. अतः ऐसे समीकरण को कभी - कभी एक चर वाले द्विघातीय समीकरण  (quadratic equation of single variable) भी कहते हैं. प्रस्तुत लेख में हम केवल वास्तविक द्विघातीय समीकरण पर चर्चा करेंगे और जब तक कि स्पष्ट रूप से न कहा जाए, द्विघातीय समीकरण से हमारा तात्पर्य होगा - वास्तविक द्विघातीय समीकरण. द्विघातीय समीकरण के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं.
\begin{align}
x^2 &= 0  \label{ex1} \\
x^2 - 1 &= 0 \label{ex2}\\
x^2 + 1 &= 0 \label{ex3}\\
x^2 + 5x + 6 &= 0  \label{ex4}\\
x^2 +2 x + 1 &= 0 \label{ex5}\\
x^2 - x + 1 &= 0 \label{ex6}\\
\sqrt{2}x^2 + 3x - \sqrt{3} &= 0. \label{ex7}
\end{align}

समीकरण $(\ref{qe})$ और समीकरण $(\ref{ex3})$ द्विघातीय समीकरण का मानक रूप (standard form) है. कुछ द्विघातीय  समीकरण मानक रूप में नहीं होते हैं. परन्तु इन्हें मानक रूप में परिवर्तित किया जा सकता है. उदाहरण के लिए समीकरण 
\[2x + 1 = \frac{5x + 1}{3x-1}\]
एक द्विघातीय समीकरण है, जो मानक रूप में नहीं है. इस समीकरण को सरल कर मानक रूप में निम्नलिखित द्विघातीय समीकरण के रूप में लिखा जा सकता है.
\[6x^2 - 4x - 2 = 0.\]

किसी संख्या (वास्तविक या सम्मिश्र) $\alpha$ को समीकरण $(\ref{qe})$ का मूल (root) या शून्यक (zero) कहा जाता है, यदि चर $x$ के इस मान के लिए यह समीकरण संतुष्ट होता हो, अर्थात
\[a\alpha^2 + b\alpha + c = 0.\]
किसी भी द्विघातीय समीकरण के सदैव दो मूल होते हैं. ये मूल भिन्न - भिन्न या समान हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, समीकरण $(\ref{ex1})$ के दोनों मूल शून्य $(0)$ हैं. परन्तु समीकरण $(\ref{ex2})$ के दो भिन्न - भिन्न मूल $-1$ और $1$ हैं. द्विघातीय समीकरण के मूल अवास्तविक अर्थात सम्मिश्र संख्या भी हो सकते हैं. उदाहरण के लिए समीकरण $(\ref{ex3})$ के दो सम्मिश्र मूल $-i$ और $-i$ हैं.  ध्यान दें कि किसी भी द्विघातीय समीकरण के सदैव दो मूल होते हैं, परन्तु अलग - अलग वास्तविक मूलों की संख्या $0, 1$ या $2$ हो सकती है. उदाहरण के लिए, समीकरण $(\ref{ex1})$ दो समान वास्तविक मूल $0$ हैं, जबकि समीकरण $(\ref{ex2})$ के दो अलग - अलग वास्तविक मूल हैं. परन्तु समीकरण $(\ref{ex3})$ का कोई  भी मूल वास्तविक नहीं है. मूलों की संख्या और उनकी प्रकृतियों पर चर्चा हम आगे के अनुच्छेद में करेंगे. द्विघातीय समीकरण के इतिहास पर प्रकाश डालने से पहले आइए, इसके हल की विधियों पर चर्चा करें. 

2. द्विघातीय समीकरण के हल की विधियाँ (Methods of Solutions)

द्विघातीय समीकरण के हल की कई विधियाँ हैं. उदाहरण के लिए, गुणनखंडन विधि (factorization method), बीजीय विधियाँ (algebraic methods), ज्यामितीय या आलेखी विधि (geometrical or graphical method),  सांख्यिक विधियाँ (numerical methods), इत्यादि. इनमें से यहाँ हम केवल गुणनखंडन विधि और बीजीय विधियों पर चर्चा करेंगे. जैसा कि हम आगे देखेंगे कि गुणनखंडन विधि सभी समीकरणों को हल करने में सक्षम सिद्ध नहीं होती है. परन्तु बीजीय विधियाँ सरल हैं और सभी समीकरणों को हल करने में प्रयुक्त होती हैं. ज्यामितीय या आलेखी विधि द्वारा भी सभी समीकरणों को हल किया जा सकता है, परन्तु प्राप्त हल की परिशुद्धता आलेख की परिशुद्धता भी निर्भर करती है. अतः सटीक हल प्राप्त करना कठिन हो सकता है. सांख्यिक विधियों का विकास संगणक के माध्यम से समीकरण को हल करने के लिए किया गया है. परन्तु ये विधियाँ भी अधिकांश स्थितियों में मूलों का सन्निकट मान देने में ही सक्षम है.

2.1 गुणनखंडन विधि

इस विधि में हम समीकरण $(\ref{qe})$ के वाम पक्ष को दो रैखिक बहुपदों के गुणनफल के रूप में लिखते हैं:
\begin{equation}\label{qef}
ax^2 + bx + c = (px + q)(rx + s).
\end{equation}
तब समीकरण $(\ref{qe})$ का हल रखिक समीकरणों $px + q = 0$ और $rx + s = 0$ को हल करने के तुल्य होता है. इनके हल क्रमशः $-\frac{q}{p}$ और $-\frac{s}{r}$ हैं. अतः समीकरण $(\ref{qe})$ के मूल$-\frac{q}{p}$ और $-\frac{s}{r}$ होंगे. परन्तु इन रैखिक बहुपदों को ज्ञात करना सदैव आसान नहीं है. कभी - कभी हम अनुमान द्वारा इन्हें ज्ञात कर सकते हैं. आइये देखें कि अनुमान कैसे लगाया जा सकता है. यदि समीकरण $(\ref{qef})$ को सरल करें, तो हमें प्राप्त होगा:
\[ax^2 + bx + c = prx^2 + (ps + qr)x + qs.\]
यदि हम $\ell = ps$ और $m = qr$ मान लें, तो हम देख सकते हैं कि
\[b = \ell + m\]
और
\[ac = \ell m.\]
इस प्रकार हम देखते हैं कि $ax^2 + bx + c$ का गुणनखंडन करने के लिए हमें दो संख्याएँ $\ell$ और $m$ ज्ञात करनी होंगी, जो उपरोक्त संबंध को संतुष्ट करता हो. अर्थात हम $b$ को दो ऐसी संख्याओं के योग के रूप में व्यक्त करते हैं, जिनका गुणनफल $ac$ हो. इस प्रकार मध्य पद $bx$ दो भागों में विभक्त हो जाता है. एक भाग को हम पद $ax^2$ के साथ रखते हैं और दुसरे भाग को $c$ के साथ और तब हम प्रत्येक भाग में गुणनखंडन की प्रक्रिया आसानी से कर सकते है. आइये इसे एक उदाहरण के द्वारा समझें. हम इस विधि से समीकरण $(\ref{ex4})$ को हल करेंगे. यहाँ $a = 1, b= 5$ और $c = 6$ हैं. हम दो संख्याएँ $\ell$ और $m$ प्राप्त करना चाहते हैं, जिससे कि $\ell + m = 5$ और $\ell m = ac = 6$ हों. ध्यान दें कि संख्याएँ $\ell$ और $m$ संख्या $ac$ के गुणनखंड होते हैं. हम $6$ को दो संख्याओं के गुणनफल के रूप में निम्न प्रकार लिख सकते हैं.
\[6 = 1 \times 6 = 2 \times 3.\]
इन गुणनखंड-युग्मों में से हमें एक युग्म चुनना होगा जो $\ell + m = 5$ को संतुष्ट करें. आप देख सकते हैं कि $\ell = 2$ और $m = 3$ इस प्रतिबंध को संतुष्ट करता है. अतः
\[x^2 + 5x + 6 = x^2 + 2x + 3x + 6 = x(x+2) + 3(x+2) = (x+2)(x+ 3).\]
इस प्रकार
\[x^2 + 5x + 6 = 0 \Rightarrow (x+2)(x+3) = 0.\]
अतः या तो $x+ 2 = 0$ या $x + 3 =0$. हल करने पर हमें $x = -2$ और $x = -3$ प्राप्त होता है.
देखने में यह विधि आसान लगती है. परन्तु यह सदैव व्यावहारिक सिद्ध नहीं होती. मूल समस्या है: $ac$ के गुणनखंडों में से $\ell$ और $m$ का चयन करना. परन्तु ये संख्याएँ पूर्णांक नहीं भी हो सकती हैं. कभी - कभी तो वास्तविक भी नहीं हो सकती. ये संख्याएँ सम्मिश्र संख्याएँ भी हो सकती हैं. चूँकि $ac$ के अनंत वास्तविक और सम्मिश्र गुणनखंड हैं. अतः इन संख्याओं का पता लगाना कठिन हो जाता है. ये संख्याएँ पूर्णांक तभी हो सकती है, यदि समीकरण के मूल परिमेय संख्याएँ हों. परन्तु प्रारंभ में हमें समीकरण के मूलों की प्रकृति के विषय में कुछ भी ज्ञान नहीं होता है. उदाहरण के लिए आप समीकरण $(\ref{ex3})$ को इस विधि से हल करने का प्रयास कर सकते हैं. यहाँ $a = 1, b=0$ और $c = 1$. अतः $ac = 1$. आप $1$ को केवल $1 \times 1$ या $(-1)\times(-1)$ के रूप में पूर्णांकों के गुणनफल के रूप में लिख सकते हैं. इन गुणनखंडों में से किसी भी युग्म का योग $0$ नहीं हैं. वास्तव में, कोई भी वास्तविक संख्याओं का युग्म उपरोक्त प्रतिबंधों को संतुष्ट नहीं कर सकता है (क्यों ?). अतः यह विधि निरर्थक सिद्ध होती है.

2.2. बीजीय विधि  

यह विधि वर्ग पूर्ण करने की विधि (method of completing the square) पर आधारित है. वर्ग पूर्ण करने की विधि में तत्समक $x^2 + 2xy + y^2  = (x+y)^2$ का प्रयोग किया जाता है.  यहाँ पर हम श्रीधराचार्य विधि (Shridharacharya Method) द्वारा द्विघातीय समीकरण हल करने की विधि का वर्णन करेंगे. द्विघातीय समीकरण का हल प्रस्तुत करने वाले आरम्भिक गणितज्ञों में श्रीधराचार्य का नाम अग्रणी है. श्रीधराचार्य प्राचीन भारत के एक महान गणितज्ञ थे. इन्होंने अन्य गणितज्ञों की तुलना में शून्य की सर्वाधिक स्पष्ट व्याख्या की तथा द्विघातीय समीकरण को हल करने के लिए सूत्र का प्रतिपादन किया. श्रीधर ने बीजगणित पर एक वृहद् ग्रन्थ की रचना की थी जो अब उपलब्ध नहीं है. परन्तु भारतीय गणितज्ञ भास्कर द्वितीय ने  अपने बीजगणित में द्विघातीय समीकरणों के हल के लिए श्रीधर के नियम को उद्धृत किया है -
चतुराहतवर्गसमै रुपैः पक्षद्वयं गुणयेत |
अव्यक्तवर्गरुयैर्युक्तौ पक्षौ ततो मूलम्‌ ||
अर्थात, समीकरण के दोनों पक्षों को अज्ञात चर के वर्ग के गुणांक के चार गुने से गुणा करें, दोनों पक्षों में अज्ञात चर के गुणांक का वर्ग जोड़ें और तब दोनों पक्षों का वर्गमूल लें. ध्यान रखें कि उपरोक्त श्रीधराचार्य ने द्विघातीय समीकरण को $ax^2 + bx = c$ के रूप में लिया था. अतः हम समीकरण $(\ref{qe})$ को $ax^2 + bx = -c$ के रूप में लिखकर उपरोक्त प्रक्रिया अपनाते हैं:
\[ax^2 + bx = -c.\]
दोनों पक्षों को $4a$ से गुणा करने पर प्राप्त होता है:
\[4a^2x^2 + 4abx =  -4ac.\]
दोनों पक्षों में $b^2$ जोड़ने और सरल करने पर प्राप्त होता है:
\[4a^2x^2 + 4abx + b^2=b^2 - 4ac \]
\[(2ax+b)^2 = b^2 - 4ac.\] 
दोनों पक्षों का वर्गमूल लेने पर प्राप्त होगा:
\[2ax + b = \sqrt{(b^2 - 4ac)}.\]
यहाँ पर इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि श्रीधराचार्य ने वर्गमूल के दोनों मान लिए थे. यहाँ हम दोनों मान लेते हैं, जिन्हें हम $\sqrt{b^2 -4ac}$ और $-\sqrt{b^2 -4ac}$ से निरूपित करेंगे. तब हमें दो रैखिक समीकरण प्राप्त होते हैं:
\[2ax + b = \sqrt{(b^2 - 4ac)}.\]
और
\[2ax + b =- \sqrt{(b^2 - 4ac)}.\]
इन समीकरणों को हल करने पर हमें $x$ के दो मान प्राप्त होते हैं जिन्हें हम $\alpha$ और $\beta$ से निरूपित करते है. इस प्रकार
\[\alpha = \frac{-b + \sqrt{b^2 - 4ac}}{2a}.\]
\[\beta = \frac{-b - \sqrt{b^2 - 4ac}}{2a}.\]
यदि हम $b^2 - 4ac$ को $D$ से व्यक्त करें, तो हमें समीकरण $(\ref{qe})$ के मूलों को ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र प्राप्त होता है:
\begin{equation}\label{roots}
\alpha = \frac{-b + \sqrt{D}}{2a} ~ \text{और}~ \beta = \frac{-b - \sqrt{D}}{2a}.
\end{equation}
आइए हम सूत्र $(\ref{roots})$ की सहायता से समीकरण $(\ref{ex3})$ को हल करते हैं. यहाँ $a = 1, b= 0, c= 1$ हैं. इसीलिए, $D = b^2 - 4ac = -4$. अतः
\[\alpha = \frac{-0 +\sqrt{-4}}{2}= \frac{2i}{2} =i. \]
इसी प्रकार, $\beta = -i.$ इस प्रकार इस समीकरण के मूल अवास्तविक हैं, जैसा कि पहले कहा गया था. ध्यान दें के यदि $D < 0$, तो हमें सम्मिश्र मूल प्राप्त होते हैं, क्योंकि ऋणात्मक संख्या का वर्गमूल सम्मिश्र संख्या होता है. परन्तु यदि $D \geq 0$, तो हमें $D$ का वास्तविक वर्गमूल प्राप्त होगा और हमें वास्तविक मूल प्राप्त होंगे. आइये मूलों की प्रकृति पर विस्तार से चर्चा करें.

2.3. मूलों की प्रकृति (Nature of Roots)

स्थिति 1 ($D > 0$). इस स्थिति में हमें दो वास्तविक और असमान मूल प्राप्त होंगे (असमान कयों ?), जिन्हें उपरोक्त सूत्र से ज्ञात किया जा सकता हैं.

स्थिति 2 (D = 0). इस स्थिति में स्पष्ट है कि $\alpha = \beta = - \frac{b}{2a}$. अतः हमें  वास्तविक और समान मूल प्राप्त होते हैं.

स्थिति 3 (D < 0). इस स्थिति में $D$ का वर्गमूल अवास्तविक होता है. अतः हमें दो सम्मिश्र और असमान मूल प्राप्त होते है, जिन्हें उपरोक्त सूत्र की सहायता से ज्ञात किया जा सकता है. ध्यान दें कि इस स्थिति में $\alpha$ और $\beta$ परस्पर सम्मिश्र संयुग्मी होते है.

इस प्रकार हम देखते हैं सम्मिश्र मूल की संख्या कभी भी एक नहीं हो सकती. वास्तव में निम्नलिखित परिणाम सत्य होता है.
प्रमेय 1. मान लीजिए $a$ और $b$ वास्तविक संख्याएँ हैं. यदि $a + ib$ द्विघातीय समीकरण $(\ref{qe})$ का एक मूल हो, तो इसका संयुग्मी $a - ib$ भी समीकरण $(\ref{qe})$ का मूल होगा.

इसी से मिलता जुलता एक और परिणाम सत्य है.
प्रमेय 2. मान लीजिए $a$ और $b$ वास्तविक संख्याएँ हैं और $b$ धनात्मक हैं जिससे कि $\sqrt{b}$ एक अपरिमेय संख्या है. यदि $a + \sqrt{b}$ समीकरण $(\ref{qe})$ का एक मूल हो, तो $a - \sqrt{b}$ भी इस समीकरण का मूल होगा.

उपरोक्त प्रमेय के अनुसार, सम्मिश्र मूलों की तरह अपरिमेय मूल भी युग्मों में प्राप्त होते हैं. क्योंकि व्यंजक $D$ मूलों की प्रकृति की विवेचना करता है, इसलिए हम इसे विवेचक  कहते हैं.

2.4. मूलों का योग और गुणन

द्विघातीय सूत्र $(\ref{roots})$ की सहायता से यह आसानी से सत्यापित किया जा सकता है कि
\begin{equation}\label{relation}
\alpha + \beta = -\frac{b}{a} ~ \text{और}~ \alpha \beta = \frac{c}{a}.
\end{equation}

2.5. द्विघातीय बहुपद का गुणनखंडन

द्विघातीय सूत्र $(\ref{roots})$ और संबंध $(\ref{relation})$ की सहायता से यह आसानी से सत्यापित किया जा सकता है कि
\[ax^2 + bx + c = a(x - \alpha)(x - \beta). \]

यह लेख अभी प्रगति में है.......

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