परिचय


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रविवार, 2 जुलाई 2017

अद्वितीय गुणनखंडन: पुनरावलोकन

एक से बड़े किसी भी धन पूर्णांक (positive integers) को अभाज्य संख्याओं (prime numbers) के गुणनफल के रूप में लिखने की प्रक्रिया से हमलोग प्रारंभिक कक्षा में ही परिचित हो जाते हैं. अभाज्य संख्याओं के गुणनफल के रूप में यह निरूपण उस संख्या का अभाज्य गुणनखंडन (prime factorization) कहलाता है. यह निरूपण अद्वितीय (unique) भी होता है, यदि अभाज्य गुणनखंडों के क्रम को महत्त्व न दिया जाए. इस तथ्य को अंकगणित का मूलभूत प्रमेय  (Fundamental Theorem of Arithmetic) के नाम से जाना जाता है. इस प्रमेय का स्पष्ट कथन नीचे दिया गया है. इस प्रमेय की उपपत्ति और इससे संबंधित विस्तृत जानकारी के लिए अंकगणित का मूलभूत प्रमेय नामक लेख पढ़ें.





प्रमेय (अंकगणित का मूलभूत प्रमेय). प्रत्येक धन पूर्णांक $n > 1$ को अभाज्य संख्याओं के गुणनफल के रूप में निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है:
\[n = p_1^{e_1} \cdots p_k^{e_k},\]
जहाँ $p_1, \ldots, p_k$ भिन्न - भिन्न अभाज्य संख्याएँ हैं और $e_1, \ldots, e_k$ धन पूर्णांक हैं. यदि इस निरूपण में अभाज्य गुणनखंडों के क्रम को महत्त्व न दिया जाये तो यह निरूपण अद्वितीय होता है.
 

उदाहरण के लिए, $30$ के दो अभाज्य गुणनखंडन $30 =  2\cdot3\cdot5$ और $30 = 3 \cdot 2 \cdot 5$ समान कहे जाएँगे. $30$ का कोई अन्य अभाज्य गुणनखंडन अभाज्य गुणनखंडन संभव नहीं है. अब एक स्वाभाविक प्रश्न उठता है - क्या ऐसा कोई उदाहरण है, जहाँ अभाज्य गुणनखंडन अद्वितीय नहीं हो, अर्थात किसी संख्या के एक से अधिक अभाज्य गुणनखंडन हों ? मैंने भी पहली बार जब इस प्रमेय को पढ़ा था, तो यह प्रश्न मन में उठा था. परन्तु मैं उत्तर नहीं खोज सका था. इसका उत्तर स्नातक की कक्षा में अमूर्त बीजगणित की पुस्तक में मिला. परन्तु उस उदाहरण को समझने के लिए, हमें वलय, गुणनखंडनीय प्रांत, अखंडनीय अवयव, अभाज्य अवयव इत्यादि की व्यापक परिभाषा की जानकारी आवश्यक है. परन्तु हम एक ऐसे उदाहरण पर चर्चा करना चाहते हैं, जिसे समझने के लिए इन सब चीजों को जानना आवश्यक नहीं है और यह आसान भी है. (दसवीं कक्षा तक के गणित जानने वाले छात्र भी इसे समझ सकेंगे.) इस उदाहरण से मेरा सामना कुछ दिन पहले फ्रेज़र जारविस (Frazer Jarvis) द्वारा लिखित बीजगणितीय संख्या सिद्धांत (Algebraic Number Theory) की पुस्तक [1] पढ़ने के क्रम में हुई. यह उदाहरण इस पुस्तक के अध्याय 4 में पृष्ठ संख्या  65 पर उदाहरण 4.1 में दिया गया है. यह पुस्तक स्नातक-स्तरीय पाठ्यक्रम के लिए है. यहाँ पर हम इस उदाहरण को अत्यंत विस्तार से समझाएँगे.


यदि आप अंकगणित के मूलभूत प्रमेय को ध्यान से पढ़ेंगे, तो आप पाएँगे कि इस प्रमेय में धन पूर्णांको के अभाज्य गुणनखंडन पर चर्चा की गई है, अर्थात हमें अभाज्य गुणनखंडन पर चर्चा करने से पहले संख्याओं का एक नियत समुच्चय होना चाहिए और साथ ही उस समुच्चय में अभाज्य संख्याओं की एक सुनिश्चित परिभाषा होनी चाहिए. इन संकल्पनाओं से हम अच्छी तरह परिचित हैं. जानकारी के लिए अभाज्य संख्याएँ नामक लेख देखें. अब हम संख्याओं के एक नए समुच्चय पर विचार करेंगे और इस समुच्चय में अभाज्य संख्याओं को पहले की ही तरह परिभाषित करेंगे. हमारा नया समुच्चय है - $3n + 1$ के रूप में व्यक्त किये जा सकने वाला धन पूर्णांक. इसे आप $3n + 1$ में $ n= 0, 1, 2, 3,$ इत्यादि रखकर ज्ञात कर सकते हैं. इस प्रकार हमारा समुच्चय है - $S = \{1, 4, 7, 10, 13, 16, 19 , 22, \ldots\}.$ ध्यान दीजिए कि यह समुच्चय गुणन संक्रिया के सापेक्ष संवृत (closed with respect to multiplication) है, अर्थात इस समुच्चय के किन्हीं भी दो संख्याओं का गुणनफल भी इस समुच्चय का अवयव होता है. क्या आप इसे प्रमाणित कर सकते हैं. पहले स्वयं प्रयास करें और सफलता नहीं मिलने के बाद ही नीचे के बॉक्स को प्रसारित करके देखें.

$3x + 1$ के रूप की दो संख्याओं का गुणनफल  >>>
मान लीजिए कि $3x + 1$और $3y + 1$ समुच्चय $S$ के दो अवयव हैं. तब
 \[(3x + 1)(3y + 1) = 9xy + 3x + 3y + 1 = 3(xy + x + y) + 1,\]
 जो $3n + 1$ के रूप का है, जहाँ $n =xy + x + y $. अतः इनका गुणनफल भी $S$ का अवयव है.

परन्तु यह समुच्चय योग संक्रिया के सापेक्ष संवृत नहीं है, क्योंकि आप इस समुच्चय के किन्हीं भी दो अवयवों का योगफल इस समुच्चय के अवयव नहीं हैं. उदाहरण के लिए, $1 + 4 = 5$, परन्तु $5$ इस समुच्चय का अवयव नहीं है. व्यापक रूप में, यदि $3x + 1$ और $3y + 1$ इस समुच्चय के दो अवयव हों, तो इनका योगफल $(3x + 1) + (3y + 1) = 3(x + y) + 2$ है, जो विचाराधीन समुच्चय का अवयव नहीं है, क्योंकि यह $3n + 1$ के रूप का नहीं है.

अब हम इस समुच्चय में अभाज्य संख्याओं को परिभाषित करेंगे. धन पूर्णांकों के समुच्चय में अभाज्य संख्याओं की परिभाषा याद कीजिए. वही परिभाषा यहाँ भी है. विस्तृत जानकारी के लिए अभाज्य संख्याएँ नामक लेख देखें. समुच्चय $S$ में किसी संख्या $n > 1$ को अभाज्य संख्या कहा जाता है, यदि $S$ में इस संख्या के गुणनखंड $1$ और केवल $n$ हों. उदाहरण के लिए, समुच्चय $S$ में $4, 7, 10, 13,$ इत्यादि अभाज्य संख्याएँ हैं. ध्यान दीजिये कि यहाँ $4$ और $10$ भी अभाज्य संख्याएँ हैं, परन्तु ये संख्याएँ धन पूर्णांकों के समुच्चय $\{1, 2, 3, 4, 5, \ldots\}$ में अभाज्य संख्याएँ नहीं हैं. ध्यान दीजिये कि $4$ और $10$ के गुणनखंडन $4 = 2\times 2$ और $10 = 2 \times 5$ इस समुच्चय में मान्य नहीं हैं, क्योंकि गुणनखंडन में प्रयुक्त संख्याएँ $2$ और $5$ समुच्चय $S$ के अवयव नहीं हैं. अब $16$ के गुणनखंडन $16 = 4 \times 4$ पर विचार कीजिए. यह गुणनखंडन इस समुच्चय में मान्य है, क्योंकि गुणनखंडन में प्रयुक्त संख्या $4$ समुच्चय $S$ का अवयव है. अतः $16$ के $1$ और $16$ के अतिरिक्त एक अन्य गुणनखंड $4$ है. इसलिए $16$ समुच्चय $S$ में अभाज्य संख्या नहीं है.

इस समुच्चय के अभाज्य संख्याओं से परिचित हो जाने के बाद आइए, अब हम इस समुच्चय में एक ऐसी संख्या खोजते हैं, जिसके दो अलग - अलग अभाज्य गुणनखंडन हैं. ऐसी ही एक संख्या $100$ है. यह समुच्चय $S$ का अवयव है, क्योंकि हम $100 = 3 \times 33 + 1$ लिख सकते हैं. अब आप आसानी से देख सकते हैं कि $S$ में इसके दो अभाज्य गुणनखंडन निम्नलिखित हैं -
\[100 = 10 \times 10,\]
और
\[100 = 4 \times 25.\]
ध्यान रखें कि $4, 10$ और $25$ समुच्चय $S$ में अभाज्य हैं. इस प्रकार हम देखते हैं कि अभाज्य गुणनखंडन की अद्वितीयता विचाराधीन समुच्चय पर निर्भर करता हैं. क्योंकि समुच्चय $S$ में पर्याप्त धन पूर्णांक नहीं हैं, अतः कुछ संख्याओं का पुनः गुणनखंडन संभव नहीं हो पाता है. अतः कुछ वैसी संख्याएँ, जो धन पूर्णांकों के समुच्चय में अभाज्य नहीं हैं, इस समुच्चय $S$ में अभाज्य बने रहते हैं.

संदर्भ
[1] Frazer Jarvis, Algebraic Number Theory, Springer Undergraduate Mathematics Series, Springer, 2014.
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5 टिप्‍पणियां :

  1. बहुत ही अच्छी तरह से समझाया गया है।

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  2. शून्य की अधिक जानकारी के लिए CSIR, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित "विज्ञान प्रगति" (जनवरी 2019 पृष्ठ 52) मेरी रचना "मै शून्य हूँ" पढ़े| कुछ अंश-
    मै कुछ नहीं पर पूर्ण हूँ, आरम्भ नहीं सम्पूर्ण हूँ|
    सांख्य के गर्भ से प्रस्फुटित प्रकाश हूँ |
    मै शून्य हूँ | मै शून्य हूँ | मै शून्य हूँ |

    आदि से अनंत तक, ऋणतल से धनाकाश तक |
    मूल में हूँ, मध्य में हूँ, संतुलन हूँ, शांत हूँ |
    निर्विकार भाव से केंद्र की कमान हूँ |
    मै शून्य हूँ | मै शून्य हूँ | मै शून्य हूँ |
    ...
    ...
    इस प्रकार कविता के शेष 8 छंदों में शून्य का पूरा परिचय है|
    डॉ. गर्ग Ph.D.(Maths)

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