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परिचय


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रविवार, 10 मई 2015

गणितज्ञ कैसे बनें ? दूसरी कड़ी : अभाज्य संख्याओं की अनंतता (Infinitude of Prime Numbers)

"गणितज्ञ कैसे बनें ?" गणितीय आलेखों की एक श्रृंखला है, जिसके अंतर्गत विविध गणितीय विषयों पर ऐसे लेख प्रस्तुत किये जाते हैं, जो पाठकों को ज्ञात गणितीय तथ्यों, परिणामों और सूत्रों को स्वयं खोजने के लिए क्रमबद्ध तरीके से प्रेरित करते हैं और जिनसे उनके अंदर गणितीय शोध की स्वाभाविक प्रवृति जागृत होती है.

एक से बड़ी वैसी प्राकृत संख्या (natural numbers) जिसके गुणनखंड केवल 1 और वही संख्या हों, अभाज्य संख्या (prime number) कहलाती है. दूसरे शब्दों में अभाज्य संख्याओं को 1 और उस संख्या के अतिरिक्त किसी अन्य संख्या से विभाजित नहीं किया जा सकता है. उदाहरण के लिए 2, 3, 5, 7, 11, 13 इत्यादि अभाज्य संख्याएँ हैं. परन्तु 4 एक अभाज्य संख्या नहीं है, क्योंकि इसे 1 और 4 के अतिरिक्त 2 से भी विभाजित किया जा सकता है. इसी प्रकार 6, 8, 9, 10, 12 इत्यादि अभाज्य संख्याएँ नहीं हैं. ये संख्याएँ संयुक्त संख्याएँ है. एक से बड़ी वैसी प्राकृत संख्या, जो अभाज्य नहीं है, संयुक्त संख्या (composite number) कहलाती है. अभाज्य संख्याओं के गुणधर्मों की विस्तृत जानकारी के लिए अभाज्य संख्याएँ देखें. अंकगणित के मूलभूत प्रमेय (Fundamental Theorem of Arithmetic) से हम जानते हैं कि एक से बड़ी किसी भी प्राकृत संख्या को अभाज्य संख्याओं के गुणनफल के रूप में अद्वितीयतः (uniquely) लिखा जा सकता है. अतः अभाज्य संख्याएँ मूलभूत संख्याएँ  हैं और इन्हें संख्याओं की निर्माण - इकाई कहना तर्कसंगत होगा.
 
हम जानते हैं कि प्राकृत संख्याओं की संख्या अनंत हैं. परिभाषा के अनुसार सभी अभाज्य संख्याएँ प्राकृत संख्याएँ हैं. अतः यह स्वाभाविक जिज्ञासा होती है कि क्या अभाज्य संख्याओं की संख्याओं भी अनंत है ? प्रस्तुत लेख में हम इसी विषय पर चर्चा करने जा रहे हैं.

अब प्रश्न यह है कि हम यह निर्णय कैसे करें कि अभाज्य संख्याओं की संख्या परिमित है या अनंत है ? आप कह सकते हैं कि हम उन्हें गिनकर देख सकते हैं. इसके लिए हमें सभी प्राकृत संख्याओं को बारी-बारी से चुनकर उसकी अभाज्यता की जाँच करनी होगी और उनकी सूचि बनानी होगी. सुनने में यह प्रक्रिया आसान लगती है. परन्तु क्या यह संभव है ? क्योंकि प्राकृत संख्याओं की संख्या अनंत है, अतः यह प्रक्रिया कभी समाप्त नहीं हो सकती और यदि प्रक्रिया समाप्त ही नहीं होगी तो फिर हम अंतिम सूचि तैयार नहीं कर सकते. इस प्रकार इस विधि से कुछ भी निर्णय करना असंभव है. क्या आप कोई अन्य विधि बता सकते हैं ?
 
आइये हम कुछ अप्रत्यक्ष तरीकों की खोज करते हैं. हम एक सामान्य सा प्रश्न करते हैं. यदि अभाज्य संख्याओं की संख्या परिमित हो, तो क्या होगा. यदि वास्तव में अभाज्य संख्याओं की संख्या परिमित हों, तो कोई अस्वाभाविक स्थिति उत्पन्न नहीं होगी और उनकी सूचि हम आसानी से बना पाएँगे. परन्तु यदि उनकी संख्या वास्तव में अनंत हों, तो इनकी संख्या परिमित मान लेने पर हमें असुविधाजनक स्थितियों का सामना करना पर सकता है. इस बात को अंकगणित के मूलभूत प्रमेय को ध्यान में रखकर सोचें. ऊपर हमने अभाज्य संख्याओं के उदाहरण के रूप में 2, 3, 5, 7, 11, 13 लिखा था. एक क्षण के लिए मान लीजिए कि हमारे पास केवल यही अभाज्य संख्याएँ हैं. यदि केवल और केवल यही अभाज्य संख्याएँ हैं, तो इन अभाज्य संख्याओं की सहायता से हम सभी प्राकृत संख्याओं को लिखने में सक्षम हो पायेंगे. उदाहरण के लिए हम 6 = 2 \cdot 3 और 150 = 2 \cdot 3 \cdot 5^2 लिख सकते हैं. इस प्रकार हमें किसी भी प्राकृत संख्या को 2^a3^b5^c7^d(11)^e(13)^f के रूप में लिखने में सक्षम हो पाएँगे. इस प्रकार किसी भी दो क्रमागत प्राकृत संख्याओं को उपरोक्त व्यंजक के रूप में लिख पाएँगे. परन्तु उपरोक्त व्यंजक को देखने पर हमारा अंतर्ज्ञान कहता है कि ऐसा संभव नहीं हो सकता. क्या आप बता सकते हैं कि उपरोक्त अभाज्य संख्याओं की सहायता से सबसे छोटी संख्या, जिसमें ये सभी अभाज्य मौजूद हों, कौन सी संख्या होगी ? स्पष्ट है कि यह संख्या m = 2 \cdot 3 \cdot 5 \cdot 7 \cdot 11 \cdot 13 होगी. अब इसकी अगली संख्या लीजिए. यह संख्या n = 2 \cdot 3 \cdot 5 \cdot 7 \cdot 11 \cdot 13 + 1 है. हम आशा करते हैं कि इन्हें उन अभाज्य संख्याओं के गुणनफल के रूप में लिखना असंभव होगा. इसे हम उन अभाज्य संख्याओं से विभाजित कर जाँच कर सकते हैं. परन्तु हम एक अप्रत्यक्ष विधि अपनाते हैं. अंकगणित के मूलभूत प्रमेय के अनुसार यह संख्या किसी न किसी अभाज्य संख्या से अवश्य ही विभाजित होगी. क्योंकि हमारे पास अभाज्य संख्याएँ केवल 2, 3, 5, 7, 11, 13 हैं. अतः यह संख्या इन्हीं में से किसी एक अभाज्य संख्या से विभाजित होगी. मान लीजिए यह अभाज्य संख्या p है. क्योंकि p संख्या m के गुणनखंड में भी मौजूद है, अतः यह m और n दोनों को विभाजित करती है. परन्तु तब विभाज्यता - सिद्धांत के अनुसार p संख्या n - m = 1 को विभाजित करेगी. यह असंभव है, क्योंकि कोई भी अभाज्य संख्या 1 को विभाजित नहीं कर सकती है. इस प्रकार अन्य अभाज्य संख्याओं का भी अस्तित्व होना चाहिए. अब आप जान गए होंगे कि आप एक व्यापक तर्क कैसे दे सकते हैं.
 
मान  लीजिए कि अभाज्य संख्याओं की संख्या परिमित है और ये अभाज्य संख्याएँ p_1, p_2, \ldots, p_n हैं. आप ऊपर दिए गए तर्कों की तरह तर्क देकर यह सिद्ध कर सकते हैं कि अभाज्य संख्याओं की यह सूचि पर्याप्त नहीं है, क्योंकि यह अंकगणित के मूलभूत प्रमेय का विरोध करता है. अतः अभाज्य संख्याओं की सूचि अवश्य ही अनंत होनी चाहिए. इस तथ्य को सर्वप्रथम यूक्लिड (Euclid) ने सिद्ध किया था. हम इस तथ्य को उपपत्ति के साथ नीचे के प्रमेय में प्रस्तुत कर रहे हैं.

प्रमेय (यूक्लिड). अभाज्य संख्याओं की संख्या अनंत है.
 
उपपत्ति: 
मान लीजिए कि अभाज्य संख्याओं की संख्या परिमित है. इन अभाज्यों की सूची p_1, p_2, \ldots , p_n बनाईये. अब एक धन पूर्णांक m = p_1p_2\cdots p_n + 1 परिभाषित कीजिये. क्योंकि m > 1, अंकगणित के मूलभूत प्रमेय के अनुसार, कम से कम एक अभाज्य p धन पूर्णांक m को अवश्य विभाजित करेगा. क्योंकि हमारे पास परिमित संख्या में अभाज्य संख्याएँ हैं, अतः p इन्हीं अभाज्यों में से कोई एक अभाज्य होगा. परन्तु तब p \mid p_1\cdots p_n. क्योंकि p \mid m, इसलिए अवश्य ही p \mid (m - p_1\cdots p_n), अर्थात p \mid 1, जो एक अंतर्विरोध है. अतः अभाज्य संख्याओं की संख्या परिमित नहीं हो सकती. इस प्रकार हमारी उपपत्ति पूर्ण होती है. 

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