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परिचय


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गुरुवार, 4 जून 2015

आव्यूह वियोजन (Matrix Decomposition)

किसी आव्यूह (Matrix) को कुछ विशेष प्रकार के आव्युहों के गुणनफल के रूप में लिखने की प्रक्रिया आव्यूह वियोजन (Matrix Decomposition) कहलाती है. आव्यूह वियोजन के द्वारा किसी आव्यूह के गुणधर्मों और उससे संबंधित समस्याओं का अध्ययन आसान हो जाता है, क्योंकि इस प्रक्रिया के द्वारा किसी आव्यूह को ज्ञात गुणधर्मों वाले आव्यूहों के गुणनफल के रूप में व्यक्त किया जाता है.. अतः आव्यूह - सिद्धांत (Matrix Theory) में और अनुप्रयुक्त गणित में इस प्रक्रिया का विशेष महत्त्व है. यहाँ पर हम कुछ विशेष प्रकार के आव्यूह वियोजन, जैसे - शुर वियोजन (Schur Decomposition), स्पेक्ट्रमी वियोजन (Spectral Decomposition),  विचित्र मान वियोजन (Singular Value Decomposition) और ध्रुवीय वियोजन (Polar Decomposition) पर विस्तृत चर्चा करेंगे.

1. शुर वियोजन
 
शुर वियोजन के द्वारा किसी वर्ग आव्यूह (square matrix) को ऐकिक आव्युहों (unitary matrices) और ऊपरी त्रिभुजीय आव्यूह (upper triangular matrix) के गुणनफल के रूप में व्यक्त किया जा सकता है. इस तथ्य को निम्नलिखित प्रमेय में सिद्ध किया जाएगा.

प्रमेय (शुर वियोजन). मान लीजिए कि \lambda_1, \lambda_2, \ldots, \lambda_n आव्यूह A \in \mathbb{M}_n के आइगेन मान हैं. तब एक ऐसे ऐकिक आव्यूह U \in M_n का अस्तित्वे होता है जिससे कि U^*AU एक ऊपरी त्रिभुजीय आव्यूह होता है. अर्थात
U^*AU =\begin{pmatrix} \lambda_1 & & & * \\ & \lambda_2 & &\\ & &\ddots &\\ 0 & & &\lambda_n \end{pmatrix}.
इस प्रकार
A =U\begin{pmatrix} \lambda_1 & & & * \\ & \lambda_2 & &\\ & &\ddots &\\ 0 & & &\lambda_n \end{pmatrix}U^*.

 
उपपत्ति: 
हम इस प्रमेय को सिद्ध करने के लिए गणितीय आगमन सिद्धांत प्रयुक्त करेंगे. यदि n = 1, तो कथन स्पष्टतः सत्य है. मान लीजिए कि यह कथन n से कम आमाप वाले सभी आव्यूहों के लिए सत्य है. अब मान लीजिए आइगेमान \lambda_1 के संगत एकक आइगेन सदिश x_1 है.तब
Ax_1 = \lambda_1x_1, ~ x_1 \neq 0.
हम x_1 को ऐकिक आव्यूह S = (x_1, y_2, \ldots, y_n) में विस्तृत कर सकते हैं. तब


\begin{align} AS &= (Ax_1, Ay_2, \ldots, Ay_n)\\ &= (\lambda_1x_1, Ay_2, \ldots, Ay_n)\\ &= S(u, S^{-1}Ay_2, \ldots, S^{-1}Ay_n), \end{align}
जहाँ u = (\lambda_1, 0, \ldots, 0)^{T}. अतः हम
S^*AS = \begin{pmatrix} \lambda_1 & \nu\\ 0 & B \end{pmatrix}
लिख सकते हैं, जहाँ \nu एक पंक्ति आव्यूह है और B \in M_{n-1}. अब आव्यूह B पर आगमन परिकल्पना का प्रयोग करने पर हमें एक ऐकिक आव्यूह T \in M_{n-1} प्राप्त है जिससे कि T^*BT ऊपरी त्रिभुजीय आव्यूह होता है. मान लीजिए कि 


U = S\begin{pmatrix} 1 & 0\\ 0 & T \end{pmatrix} .तब U एक ऐकिक आव्यूह है, क्योंकि यह दो ऐकिक आव्युहों का गुणनफल है और U^*AU ऊपरी त्रिभुजीय आव्यूह है. यह स्पष्ट है कि इस ऊपरी त्रिभुजीय आव्यूह के विकर्ण अवयव \lambda_i आव्यूह A के आइगेनमान हैं. यदि इस आव्यूह को हम


\begin{pmatrix} \lambda_1 & & & * \\ & \lambda_2 & &\\ & &\ddots &\\ 0 & & &\lambda_n \end{pmatrix}
 से निरूपित करें, तो हमें
U^*AU =\begin{pmatrix} \lambda_1 & & & * \\ & \lambda_2 & &\\ & &\ddots &\\ 0 & & &\lambda_n \end{pmatrix}
और
A =U\begin{pmatrix} \lambda_1 & & & * \\ & \lambda_2 & &\\ & &\ddots &\\ 0 & & &\lambda_n \end{pmatrix}U^*
प्राप्त होता है. इस प्रकार हमारी उपपत्ति पूर्ण होती है.

2. स्पेक्ट्रमी वियोजन

इस वियोजन के द्वारा प्रसामान्य आव्यूह (normal matrix) को ऐकिक आव्यूहों और विकर्ण आव्यूह (diagonal matrix) के गुणनफल के रूप में लिखा जा सकता है. इस तथ्य को निम्नलिखित प्रमेय में सिद्ध किया गया है.

प्रमेय (स्पेक्ट्रमी वियोजन). मान लीजिए कि A आमाप n का एक सम्मिश्र वर्ग आव्यूह (complex square matrix) है, जिसके आइगेनमान \lambda_1, \ldots, \lambda_n हैं. तब A प्रसामान्य आव्यूह होता है यदि और केवल यदि A ऐकिकतः विकर्णनीय (unitarili diagonalizable) हो, अर्थात एक ऐकिक आव्यूह U का अस्तित्व हो जिससे कि
U^*AU = diag(\lambda_1, \ldots, \lambda_n).

उपपत्ति: 
सर्वप्रथम मान लीजिए कि A एक प्रसामान्य आव्यूह है. शुर वियोजन से एक ऐकिक आव्यूह U और एक ऊपरी त्रिभुजीय आव्यूह D का अस्तित्व होता है, जिससे कि
U^*AU = D.
अब A के प्रसामान्यता से हम लिख सकते हैं:
D^*D = (U^*A^*U)(U^*AU) = U^*A^*AU = U^*AA^*U = (U^*AU)(U^*A^*U) = DD^*.
इसलिए D वास्तव में एक विकर्ण आव्यूह हैं (क्यों ? सिद्ध कीजिए कि यदि T एक ऊपरी त्रिभुजीय आव्यूह हो और T^*T = TT^*, तो यह एक विकर्ण आव्यूह होता है.), जिसके विकर्ण अवयव स्पष्टतः \lambda_1, \ldots, \lambda_n हैं. इस प्रकार
U^*AU = diag(\lambda_1, \ldots, \lambda_n).
विलोमतः मान लीजिए कि A ऐकिकतः विकर्णनीय है, अर्थात
U^*AU =D,
जहाँ U ऐकिक आव्यूह है और D विकर्ण आव्यूह है. तब A = UDU^* और इसीलिए D की विकर्णनीयता का प्रयोग करने पर हमें प्राप्त होता है:
A^*A = (UD^*U^*)(UDU^*) = UD^*DU^* = UDD^*U^* = (UDU^*)(UD^*U^*) = AA^* .
अतः A एक प्रसामान्य आव्यूह है. इस प्रकार हमारी उपपत्ति पूर्ण होती है.

किसी आव्यूह A को धनात्मक निश्चित (ध.नि.) आव्यूह (positive definite matrix) कहते हैं, यदि सभी x \in \mathbb{C}^n के लिए प्रतिबंध x^*Ax > 0 संतुष्ट होता हो. किसी आव्यूह A को अऋणात्मक निश्चित (positive semidefinite) कहते हैं, यदि सभी x \in \mathbb{C}^n के लिए प्रतिबंध x^*Ax \geq 0 संतुष्ट होता हो. इसी प्रकार ऋणात्मक निश्चित आव्यूह (negative definite matrix) और अधनात्मक निश्चित आव्यूह (negative semidefinite matrix) को परिभाषित किया जा सकता है.

मान लीजिए कि A एक अऋणात्मक निश्चित आव्यूह है. मान लीजिए कि \lambda इसका कोई आइगेनमान है और x संगत आइगेनसदिश है. तब
x^*Ax = \lambda x^*x = \lambda |x|^2.
इसलिए \lambda |x|^2 \geq 0. अतः \lambda \geq 0, क्योंकि x शून्येतर सदिश है. इस प्रकार किसी  अऋणात्मक निश्चित आव्यूह के सभी आइगेनमान ॠणेतर होते हैं.

3. विचित्र मान वियोजन

यदि A कोई आव्यूह हो, तो A^*A अऋणात्मक निश्चित आव्यूह होता है, क्योंकि x^*(A^*A)x = (Ax)^*(Ax) \geq 0. इस प्रकार आव्यूह A^*A के आइगेनमान ॠणेतर होंगे. किसी आव्यूह A के विचित्र मान (singular values) आव्यूह A^*A के आइगेनमान के ॠणेतर वर्गमूल होते हैं.  यदि हम विचित्र मान को \sigma_i से निरूपित करें और \lambda_i एक आइगेनमान हो, तो
\sigma_i(A) = \sqrt{\lambda_i(A^*A)}.
अब हम एक महत्त्वपूर्ण आव्यूह वियोजन - विचित्र मान वियोजन को निम्नलिखित प्रमेय में व्यक्त करते हैं.

प्रमेय (विचित्र मान वियोजन). मान लीजिए A एक m \times n आव्यूह है जिसके विचित्र मान \sigma_1, \ldots, \sigma_r हैं. तब एक m \times m ऐकिक आव्यूह U और एक n \times n आव्यूह V का अस्तित्व होता है जिससे कि
A = U\begin{pmatrix}  D_r & 0\\ 0 & 0 \end{pmatrix} V,
होता है, जहाँ खंड आव्यूह (block matrix) का आमाप m \times n है और D_r = diag(\sigma_1, \ldots, \sigma_r) है.


उपपत्ति: 
यदि A एक संख्या c हो, तो इसका विचित्र मान इसका निरपेक्ष मान |c| होता है और तब हम A = |c|e^{i\theta} लिख सकते हैं, जहाँ \theta कोई उपयुक्त वास्तविक संख्या है. यदि A कोई शून्येतर पंक्ति सदिश या स्तम्भ सदिश, मान लीजिए A = (a_1, \ldots, a_n) हो, तो इसका विचित्र मान \sigma इस सदिश का मानांक (norm) होता है. मान लीजिए कि V एक ऐकिक आव्यूह है, जिसकी पहली पंक्ति \frac{1}{\sigma}a_1, \ldots, \frac{1}{\sigma}a_n है. तब हम A = (\sigma, 0, \ldots, 0)V लिख सकते हैं.
अतः अब मान लेते हैं कि m > 1, n > 1 और A \neq \mathbf{0}. मान लीजिए कि \sigma_1^2 के संगत मात्रक (unit) सदिश u_1 है; अर्थात
(A^*A)u_1 = \sigma_1^2u_1, ~ u_1^*u_1 = 1.
मान लीजिए कि v_1 = \frac{1}{\sigma_1}Au_1. तब v_1 एक मात्रक सदिश है और u_1^*A^*v_1 = \sigma_1.
मान लीजिए कि P और Q ऐकिक आव्यूह हैं, जिनके पहले सतम्भ क्रमशः u_1 और v_1 हैं. तब A^*v_1 = \sigma_1u_1 और u_1^*A^* = (Au_1)^* = \sigma_1v_1^*. इसलिए P^*A^*Q के पहला सतम्भ और पहली पंक्ति क्रमशः (\sigma_1, 0, \ldots, 0)^T और (\sigma_1, 0, \ldots, 0) होंगे. अतः
P^*A^*Q = \begin{pmatrix} \sigma_1 & 0\\ 0 & B \end{pmatrix} ~\text{या} ~ A = Q\begin{pmatrix} \sigma_1 & 0\\ 0 & B \end{pmatrix}P^*,
जहाँ B एक (n-1) \times (m-1) आव्यूह है. इस प्रक्रिया को बार-बार दुहराने पर हमें अभीष्ट परिणाम प्राप्त होता है. इस प्रकार हमारी उपपत्ति पूर्ण होती है.

4. आव्यूह का वर्गमूल (Square root of a matrix)

वास्तविक या सम्मिश्र संख्याओं के वर्गमूल से हम अच्छी तरह परिचित है. यदि z कोई सम्मिश्र संख्या हो, तो इसका वर्गमूल z ^{1/2} एक सम्मिश्र संख्या w होती है, जिससे कि w^2 = z. किसी सम्मिश्र संख्या का वर्गमूल अद्वितीय नहीं होता है. परन्तु यदि z कोई ॠणेतर वास्तविक संख्या हो, इसका ॠणेतर वर्गमूल सदैव अद्वितीय होता है. अब यदि कोई आव्यूह A दिया हुआ हो, तो इसके वर्गमूल से हमारा क्या तात्पर्य हो सकता है. स्पष्ट है कि हम एक ऐसे आव्यूह B की खोज करना चाहेंगे जिससे कि B^2 = A. यह आवश्यक नहीं है कि ऐसे आव्यूह B का अस्तित्व हो ही. आप आसानी से एक ऐसे आव्यूह A का उदाहरण खोज सकते हैं, जिसके वर्गमूल का अस्तित्व नहीं है, अर्थात ऐसे किसी आव्यूह B का अस्तित्व नहीं होगा जिससे कि B^2 = A हो. परन्तु यदि ऐसे आव्यूह B का अस्तित्व हो, तो हम B को A का वर्गमूल कहते हैं और B = A^{1/2} लिखते हैं. आव्यूहों का एक ऐसा वर्ग है, जिनके वर्गमूल का अस्तित्व होता है. निम्नलिखित प्रमेय में हम सिद्ध करेंगे कि यदि A कोई अऋणात्मक निश्चित n \times n वर्ग आव्यूह हो, तो इसके वर्गमूल का अस्तित्व होता है और यह वर्गमूल अद्वितीय होता है. परन्तु सर्वप्रथम हम दिखाएँगे कि अऋणात्मक निश्चित आव्यूह आवश्यक रूप से एक हर्मिटी आव्यूह होता है और क्योंकि प्रत्येक हर्मिटी आव्यूह प्रसामान्य आव्यूह होता है, अतः इसका स्पेक्ट्रमी वियोजन संभव है. मान लीजिए A एक अऋणात्मक निश्चित आव्यूह है. मान लीजिए कि x एक स्तम्भ सदिश है, जिसका s-वाँ निर्देशांक 1, t-वाँ निर्देशांक c \in \mathbb{C} और अन्य निर्देशांक शून्य हैं. तब
x^*Ax = a_{ss} + a_{tt}|c|^2 + a_{ts}\bar{c} + a_{st}c \geq 0.
यदि हम c = 0 प्रतिस्थापित करें, तो a_{ss} \geq 0 प्राप्त होता है. अतः सभी विकर्ण अवयव ॠणेतर हैं. 
अब यदि हम c = 1 प्रतिस्थापित करें, तो हमें प्राप्त होगा:
a_{ss} + a_{tt} + a_{ts} + a_{st} \geq 0.
क्योंकि उपरोक्त व्यंजक का वाम पक्ष एक वास्तविक संख्या है, अतः यह अपने सम्मिश्र संयुग्मी के बराबर होगा. फलस्वरूप हमें निम्नलिखित संबंध प्राप्त होता है:
a_{ss} + a_{tt} + a_{ts} + a_{st} = \overline{a_{ss}} + \overline{a_{tt}} + \overline{a_{ts}} + \overline{a_{st}}.
क्योंकि सभी विकर्ण अवयव ॠणेतर हैं, अतः हमें निम्नलिखित संबंध प्राप्त होता है:
\begin{equation} \label{coeff-rel1}  a_{ts} + a_{st} = \overline{a_{ts}} + \overline{a_{st}}. \end{equation}
इसी प्रकार c=i प्रतिस्थापित करने पर उपरोक्त प्रक्रिया के फलस्वरूप हमें निम्नलिखित संबंध प्राप्त होता है:
\begin{equation} \label{coeff-rel2}  -ia_{ts} + ia_{st} =  i\overline{a_{ts}} -i \overline{a_{st}}. \end{equation} 
समीकरण (\ref{coeff-rel1}) को i से गुणा कर समीकरण (\ref{coeff-rel2}) में जोड़ने पर हमें प्राप्त होता है:
2ia_{st} = 2i\overline{a_{ts}}.
अतः a_{st} = \overline{a_{ts}}. क्योंकि यह संबंध सभी s और t के लिए सत्य है, अतः A = A^*. इस प्रकार प्रत्येक अऋणात्मक निश्चित सम्मिश्र आव्यूह हर्मिटी आव्यूह होता है. अब हम निम्नलिखित प्रमेय की उपपत्ति दे सकते हैं.

प्रमेय (आव्यूह के वर्गमूल का अस्तित्व और अद्वितीयता). मान लीजिए कि A एक n \times n अऋणात्मक निश्चित वर्ग आव्यूह है. तब एक अद्वितीय अऋणात्मक निश्चित वर्ग आव्यूह B का अस्तित्व होता है जिससे कि B^2 = A.

उपपत्ति: 
मान लीजिए कि A = U^*diag(\lambda_1, \ldots, \lambda_n)U आव्यूह A का स्पेक्ट्रमी वियोजन है. मान लीजिए B = U^*diag(\sqrt{\lambda_1}, \ldots, \sqrt{\lambda_n})U. तब B एक अऋणात्मक निश्चित आव्यूह है और यह आसानी से देखा जा सकता है कि B^2 = A. अब हम इस आव्यूह की अद्वितीयता सिद्ध करेंगे. मान लीजिए C भी एक अऋणात्मक निश्चित वर्ग आव्यूह है और C^2 = A. स्पेक्ट्रमी वियोजन के द्वारा हम C = V^*diag(\mu_1, \ldots, \mu_n)V लिख सकते हैं. तब B^2 = C^2 = A से हमें प्राप्त होता है:
U^*diag(\lambda_1, \ldots, \lambda_n)U = V^*diag(\mu_1^2, \ldots, \mu_n^2)V.
अर्थात,
Wdiag(\lambda_1, \ldots, \lambda_n) = diag(\mu_1^2, \ldots, \mu_n^2)W,
जहाँ W = (w_{ij}) = VU^*. इससे हमें सभी i, j के लिए w_{ij}\lambda_j = \mu_i^2w_{ij} प्राप्त होता है. इसलिए
W diag(\sqrt{\lambda_1}, \ldots, \sqrt{\lambda_n}) = diag(\mu_1, \ldots, \mu_n)W,
जिससे हमें B = C प्राप्त होता है. इस प्रकार हमारी उपपत्ति पूर्ण होती है.

5. ध्रुवीय वियोजन

मान लीजिए A एक n \times n वर्ग आव्यूह है. तब हम जानते हैं कि A^*A अऋणात्मक निश्चित वर्ग आव्यूह होता है. अतः इसका अद्वितीय वर्गमूल (A^*A)^{1/2} होगा, जिसे |A| से निरूपित किया जाता है और इसे आव्यूह A का मापांक (modulus) कहते हैं. ध्यान दें कि |A| भी अऋणात्मक निश्चित आव्यूह होता है. अब हम ध्रुवीय वियोजन से संबंधित निम्नलिखित प्रमेय दे सकते हैं.

प्रमेय (ध्रुवीय वियोजन). किसी भी वर्ग आव्यूह A के लिए ऐसे ऐकिक आव्यूहों W और V का अस्तित्व होता है, जिससे कि 
A = W|A| = |A^*|V.

उपपत्ति: 
स्पेक्ट्रमी वियोजन के द्वारा हम A = UDV लिख सकते हैं, जहाँ D एक विकर्ण आव्यूह है और U, V ऐकिक आव्यूह हैं. इसलिए A = UVV^*DV = WP, जहाँ W = UV ऐकिक आव्यूह है और P = V^*DV अऋणात्मक निश्चित आव्यूह है. क्योंकि A^*A = PW^*WP = P^2, हमें आव्यूह A से P = (A^*A)^{1/2} अद्वितीयतः प्राप्त हो जाता है. अतः A = W|A|. इसी प्रकार हम A = |A^*|V दिखा सकते हैं. इस प्रकार हमारी उपपत्ति पूर्ण होती है.

इन वियोजनों के अतिरिक्त और भी कई आव्यूह वियोजन होते हैं. उनकी चर्चा यहाँ हम नहीं करेंगे.


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