एक धन पूर्णांक $a$ को पूर्णांक $n$ का गुणनखंड कहते हैं, यदि $a$
पूर्णांक $n$ को विभाजित करता है. इस स्थिति में हम $n$ को $a$ और किसी
अन्य पूर्णांक $b$ के गुणनफल के रूप में व्यक्त कर सकते हैं. अर्थात $n =
ab$ और इस स्थिति में $b$ भी $n$ का एक गुणनखंड होता है. उदाहरण के लिए,
$30$ का एक गुणनखंड $2$ है. इसलिए हम $30 = 2 \cdot 15$ लिखते हैं. इस
प्रकार हम $30$ को दो पूर्णांकों $2$ और $15$ के गुणनफल के रूप में लिख
सकते हैं. हम देख सकते हैं कि दोनों ही गुणनखंड $30$ से छोटे हैं. अब
इसके एक गुणनखंड $15$ पर विचार कीजिये. हम आसानी से कह सकते हैं कि $15$
का एक गुणनखंड $3$ है और इसलिए $15 = 3 \cdot 5$ लिख सकते हैं. इस प्रकार
हम $30$ का पुनः गुणनखंडन कर सकते हैं. अर्थात हम $30 = 2 \cdot 3 \cdot
5$ लिख सकते हैं. पुनः हम देखते हैं कि $30$ का प्रत्येक गुणनखंड $30$ से
छोटा है. क्या हम इन गुणनखंडों में से किसी गुणनखंड को पुनः छोटे
गुणनखंडों के रूप में लिख सकते हैं ? हम $2$ को $1 \cdot 2$ के रूप में
लिख सकते हैं. क्योंकि किसी संख्या को $1$ से गुणा करने पर गुणनफल के रूप
में वही संख्या प्राप्त होती है, अतः हम ऐसे गुणनखंड पर विचार नहीं करेंगे.
इस प्रकार हम देखते हैं $30$ का और अधिक गुणनखंडन नहीं किया जा सकता,
जिससे कि प्रत्येक गुणनखंड $1$ से बड़ा और $30$ से छोटा हो. इस प्रकार के
गुणनखंडन को अभाज्य गुणनखंडन कहते हैं और गुणनखंडन में सम्मिलित प्रत्येक
गुणनखंड को अभाज्य गुणनखंड कहते हैं, क्योंकि इन गुणनखंडों का पुनः विभाजन
संभव नहीं है. जिस धन पूर्णांक को $1$ या उस संख्या के अतरिक्त किसी अन्य
धन पूर्णांकों के गुणनफल के रूप में व्यक्त नहीं किया जा सके, उसे हम
अभाज्य संख्या कहते हैं. दूसरे शब्दों में हम इसे निम्न प्रकार परिभाषित
करते हैं:
परिभाषा (अभाज्य संख्या). एक धन
पूर्णांक $p > 1$ को अभाज्य संख्या कहा जाता है, यदि इसके गुणनखंड
केवल $1$ और $p$ हों. एक से बड़ी वैसी संख्या, जो अभाज्य नहीं है, उसे
संयुक्त संख्या कहा जाता है. $1$ न तो अभाज्य संख्या है और न ही संयुक्त
संख्या.
उदाहरण के लिए $2, 3, 5, 7, 11, 13, 17, 19, 23, 29, 31, 37, 41, 43, 47,
53, 59, 61, 67, 71$ प्रथम बीस अभाज्य संख्याएँ हैं. इस प्रकार $30$ के
गुणनखंडन $2 \cdot 3 \cdot 5$ में सभी गुणनखंड अभाज्य संख्याएँ हैं. क्या
सभी धन पूर्णांकों का अभाज्य गुणनखंडन संभव है ? अपने अनुभव और अंतर्ज्ञान
से हम जानते हैं कि ऐसा करना सदैव ही संभव है. वास्तव में, ऐसा करना संभव
है. इस तथ्य को हम निम्नलिखित प्रमेय, जिसे "अंकगणित का मूलभूत प्रमेय" कहा जाता है, में व्यक्त करते हैं.
प्रमेय (अंकगणित का मूलभूत प्रमेय). प्रत्येक धन पूर्णांक $n > 1$ को अभाज्य संख्याओं के गुणनफल के रूप में निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है:
\[n = p_1^{e_1} \cdots p_k^{e_k},\]
जहाँ
$p_1, \ldots, p_k$ भिन्न - भिन्न अभाज्य संख्याएँ हैं और $e_1, \ldots,
e_k$ धन पूर्णांक हैं. यदि इस निरूपण में अभाज्य गुणनखंडों के क्रम को
महत्त्व न दिया जाये तो यह निरूपण अद्वितीय होता है.
इस प्रमेय की उपपत्ति और इस विषय से संबंधित अन्य जानकारी के लिए मूल आलेख अभाज्य संख्याएँ देखें.
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