संख्या - सिद्धांत की यह विशेषता है कि इस विषय से संबंधित समस्याओं या प्रश्नों को आसानी से समझा जा सकता है और व्यक्त किया जा सकता है | परन्तु इन समस्याओं का हल करना अत्यंत दुरूह हो सकता है | परन्तु किसी प्रश्न को हल करने हेतु उस प्रश्न के कथन को ठीक – ठीक समझना अत्यंत आवश्यक है | गणित की अन्य शाखाओं में ऐसी बातें देखने को बहुत कम मिलती हैं | वहाँ किसी प्रश्न या समस्या को ही समझना अत्यंत कठिन होता है और बिना प्रश्न समझे उसे हल करना संभव नहीं है | संख्या – सिद्धांत के साथ ऐसी बातें नहीं हैं | इनकी समस्याओं को माध्यमिक कक्षा के छात्र भी समझ सकते हैं और उन्हें हल करने के लिए चिंतन - मनन कर सकते हैं | कोई छात्र भले ही किसी दिए गए प्रश्न को पूर्णतः हल नहीं कर पाएँ, परन्तु इस दिशा में प्रयास करने पर उन्हें कई गणितीय संकल्पनाओं की जानकारी हो जाती है, उनकी रूचि गणित और गणितीय शोध में बढ़ जाती है | यहाँ हम संख्या – सिद्धांत की एक ऐसी ही समस्या प्रस्तुत कर रहे हैं, जो 75 वर्षों से ज्यादा पुरानी हैं और इस समस्या का हल खोजने में गणितज्ञ अभी तक सफल नहीं हुए हैं | समस्या इस प्रकार है:
कोई भी धनात्मक प्राकृत संख्या चुनें | यदि यह संख्या सम संख्या है, तो इसे दो से विभाजित करें और यदि यह संख्या विषम संख्या है, तो इसे तीन से गुणा करें और गुणनफल में एक जोड़ें | इस प्रक्रिया के फलस्वरूप हमें एक अन्य धनात्मक प्राकृत संख्या प्राप्त होगी | इस संख्या पर पुनः उपरोक्त प्रक्रिया दुहरायें और यह प्रक्रिया तब तक दुहराते रहें, जबतक की संख्या एक प्राप्त न हो जाएँ | अब प्रश्न यह है की क्या यह संभव है कि हमें सदैव ही कुछ चरणों के बाद संख्या 1 अवश्य प्राप्त होगा ? यदि हाँ, तो इसे कैसे सिद्ध किया जा सकता है ? यदि नहीं, तो इसका कोई प्रतिउदाहरण खोजें, जिसपर उपरोक्त प्रक्रिया बार – बार लागू करने पर कभी भी 1 प्राप्त न हो |
इस अनुमान को जर्मन गणितज्ञ कोलाज़ (Collatz) ने 1937 में प्रस्तुत किया था और उनके नाम पर इस समस्या को कोलाज़ अनुमान (Collatz Conjecture) कहा जाता है | कोलाज़ अनुमान को कम्प्युटर द्वारा 1 से लेकर 19•2^(58) = 5.48×10^(18) (सन्निकट मान) तक जाँच किया गया और सही पाया गया है | परन्तु इसका कोई प्रति – उदाहरण अभी तक नहीं खोजा जा सका है और न ही इसकी सत्यता सिद्ध की गई है | उदाहरण के लिए, यदि हम 6 से शुरुआत करें तो उपरोक्त प्रक्रिया से क्रमशः निम्नलिखित संख्याएँ प्राप्त होती हैं और अंततः 1 प्राप्त होता है: 6, 3, 10, 5, 16, 8, 4, 2, 1.
थ्वाइत्स (Thwaites) ने 1996 में इस समस्या के हल करने पर £1000 का पुरस्कार रखा है | महान गणितज्ञ इर्दोस (Erdos) ने इस समस्या के बारे में कहा था – “गणित इस तरह की समस्याओं के लिए अभी सक्षम नहीं है |”
इस समस्या से संबंधित अत्यधिक जानकारी यहाँ उपलब्ध हैं:
http://en.wikipedia.org/wiki/Collatz_conjecture
http://mathworld.wolfram.com/CollatzProblem.html
कोई भी धनात्मक प्राकृत संख्या चुनें | यदि यह संख्या सम संख्या है, तो इसे दो से विभाजित करें और यदि यह संख्या विषम संख्या है, तो इसे तीन से गुणा करें और गुणनफल में एक जोड़ें | इस प्रक्रिया के फलस्वरूप हमें एक अन्य धनात्मक प्राकृत संख्या प्राप्त होगी | इस संख्या पर पुनः उपरोक्त प्रक्रिया दुहरायें और यह प्रक्रिया तब तक दुहराते रहें, जबतक की संख्या एक प्राप्त न हो जाएँ | अब प्रश्न यह है की क्या यह संभव है कि हमें सदैव ही कुछ चरणों के बाद संख्या 1 अवश्य प्राप्त होगा ? यदि हाँ, तो इसे कैसे सिद्ध किया जा सकता है ? यदि नहीं, तो इसका कोई प्रतिउदाहरण खोजें, जिसपर उपरोक्त प्रक्रिया बार – बार लागू करने पर कभी भी 1 प्राप्त न हो |
इस अनुमान को जर्मन गणितज्ञ कोलाज़ (Collatz) ने 1937 में प्रस्तुत किया था और उनके नाम पर इस समस्या को कोलाज़ अनुमान (Collatz Conjecture) कहा जाता है | कोलाज़ अनुमान को कम्प्युटर द्वारा 1 से लेकर 19•2^(58) = 5.48×10^(18) (सन्निकट मान) तक जाँच किया गया और सही पाया गया है | परन्तु इसका कोई प्रति – उदाहरण अभी तक नहीं खोजा जा सका है और न ही इसकी सत्यता सिद्ध की गई है | उदाहरण के लिए, यदि हम 6 से शुरुआत करें तो उपरोक्त प्रक्रिया से क्रमशः निम्नलिखित संख्याएँ प्राप्त होती हैं और अंततः 1 प्राप्त होता है: 6, 3, 10, 5, 16, 8, 4, 2, 1.
थ्वाइत्स (Thwaites) ने 1996 में इस समस्या के हल करने पर £1000 का पुरस्कार रखा है | महान गणितज्ञ इर्दोस (Erdos) ने इस समस्या के बारे में कहा था – “गणित इस तरह की समस्याओं के लिए अभी सक्षम नहीं है |”
इस समस्या से संबंधित अत्यधिक जानकारी यहाँ उपलब्ध हैं:
http://en.wikipedia.org/wiki/Collatz_conjecture
http://mathworld.wolfram.com/CollatzProblem.html