संख्या - सिद्धांत में "गोल्डबाख़-अनुमान (Goldbach's Conjecture)" अनसुलझे
समस्याओं में अत्यंत प्राचीन व सर्वविदित समस्या है | यह समस्या लगभग 273
वर्षों से गणितज्ञों के लिए चुनौती बनी हुई है | इस अनुमान को जर्मन
गणितज्ञ गोल्डबाख़ ने 7 जून 1742 को ऑयलर को लिखे एक पत्र में व्यक्त किया
था | इस अनुमान के अनुसार "दो से बड़ी प्रत्येक सम संख्या को दो अभाज्य
संख्याओं के योग के रूप में व्यक्त किया जा सकता है |" सम संख्याएँ वैसी
प्राकृत संख्याएँ हैं, जिन्हें दो से पूर्णतः विभाजित किया जा सकता
है, जैसे 0, 2, 4, 6 इत्यादि | अभाज्य संख्याएँ वैसी प्राकृत संख्याएँ
हैं, जिन्हें 1 और उसी संख्या के अतिरक्त और किसी संख्या से विभाजित नहीं
किया जा सके | उदाहरण के लिए, 2, 3, 5, 7, 11, 13 इत्यादि अभाज्य संख्याएँ
हैं, परन्तु 4 अभाज्य संख्या नहीं है, क्योंकि इसे 1 और 4 के अतिरिक्त 2 से
भी विभाजित किया जा सकता है | उपरोक्त समस्या का सत्यापन 4 × 10^18 (4 पर
अठारह शून्य) तक की संख्याओं के लिए कम्प्यूटर द्वारा किया जा चुका है और
गणितज्ञों द्वारा ऐसा विश्वास किया जाता है कि यह अनुमान सत्य है |
नीचे के चित्र में 4 से 50 तक की सम संख्या को दो अभाज्य संख्याओं के योगफल के रूप में दर्शाया गया है |
नीचे के चित्र में 4 से 50 तक की सम संख्या को दो अभाज्य संख्याओं के योगफल के रूप में दर्शाया गया है |
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