गणितीय कथन को प्रमाणित या अप्रमाणित करने के लिए
गणितीय तर्क पर आधारित जिन कथनों को प्रस्तुत किया जाता है, उन्हें
उपपत्ति (प्रमाण) कहा जाता है. उपपत्ति की कई विधियाँ होती हैं, जिनका
अध्ययन प्रायः गणितीय तर्कशास्त्र के अंतर्गत किया जाता है. इन विधियों में एक महत्वपूर्ण विधि गणितीय आगमन सिद्धांत है. प्रस्तुत लेख में इस विधि पर विस्तार से चर्चा की जाएगी.
गणितीय आगमन सिद्धांत प्रारंभिक बीजगणित में प्रायः प्रयुक्त होने वाली उपपत्ति की एक विधि है. (उपपत्ति की
अन्य विधियों पर विस्तृत चर्चा किसी अन्य लेख में की जायेगी.) आइये हम एक
उदाहरण लेते हैं. प्रारंभिक $n$ प्राकृत
संख्याओं का योग $\frac{n(n+1)}{2}$ होता है. अर्थात, \[1 + 2 + \cdots + n = \frac{n(n+1)}{2}. \]
उपरोक्त कथन को हम $P(n)$ से व्यक्त करते हैं. तब हम सिद्ध करना चाहते है कि यह कथन सभी प्राकृत संख्याओं $n$ के लिए सत्य है. आइये सर्वप्रथम हम कुछ प्राकृत संख्याओं को लेकर इसकी सत्यता जॉंच करें. यदि $n = 1$, तो $\frac{n(n+1)}{2} = \frac{1(1+1)}{2} = 1$ और इस प्रकार $P(1)$ सत्य है. यदि $n = 2$, तो $1 + 2 = 3$ और $\frac{2(2+1)}{2} = 3$ और इस प्रकार $P(2)$ भी सत्य है. पुनः यदि $n = 3$, तो $1 + 2 + 3 = 6$ और $\frac{3(3+1)}{2} = 6$ और इस प्रकार $P(3)$ भी सत्य है. इसी प्रकार हम $P(4)$, $P(5)$, $P(6)$ इत्यादि के सत्यता की जॉंच कर सकते हैं. ध्यान दीजिये कि $P(3)$ की सत्यता जॉंचने के लिए हमें $P(2)$ में प्राप्त $1 + 2$ में केवल $3$ जोड़ने की आवश्यकता होती है. इसी प्रकार $P(4)$ की सत्यता सिद्ध करने के लिए हमें $P(3)$ में प्राप्त $1 + 2 + 3$ में केवल $4$ जोड़ने की आवश्यकता होती है. इस प्रकार $P(1)$ की सत्यता से $P(2)$ की सत्यता परिलक्षित होती है, $P(2)$ से $P(3)$ की सत्यता परिलक्षित होती है और $P(3)$ से $P(4)$ की सत्यता परिलक्षित होती है, इत्यादि. व्यापक रूप में, हम दिखा सकते हैं कि किसी प्राकृत संख्या $n$ के लिए $P(n)$ की सत्यता से $P(n + 1)$ की सत्यता परिलक्षित होती है, जिसे नीचे दिखाया गया है :
\[1 + 2 + \cdots + n + (n + 1) = \frac{n(n+1)}{2} + (n + 1) = \frac{(n+1)(n+2)}{2},\] और इस प्रकार हम देखते हैं कि यदि $P(n)$ सत्य हों, तो $P(n+1)$ भी सत्य होता है. इस स्थिति में हम कहते हैं कि $P(n)$ सभी प्राकृत संख्याओं $P(n)$ के लिए सत्य है. इस प्रक्रिया को ही गणितीय आगमन कहते हैं. परन्तु, क्या इस तरह निष्कर्ष निकालना तार्किक है क्या ? वास्तव में ऐसा ही है. अब हम गणितीय आगमन सिद्धांत को शुद्ध गणितीय रूप में व्यक्त करेंगे और अपने पिछले लेख प्राकृत संख्याएँ में स्थापित अभिगृहितों की सहायता से इसे प्रमाणित करेंगे.
उपरोक्त कथन को हम $P(n)$ से व्यक्त करते हैं. तब हम सिद्ध करना चाहते है कि यह कथन सभी प्राकृत संख्याओं $n$ के लिए सत्य है. आइये सर्वप्रथम हम कुछ प्राकृत संख्याओं को लेकर इसकी सत्यता जॉंच करें. यदि $n = 1$, तो $\frac{n(n+1)}{2} = \frac{1(1+1)}{2} = 1$ और इस प्रकार $P(1)$ सत्य है. यदि $n = 2$, तो $1 + 2 = 3$ और $\frac{2(2+1)}{2} = 3$ और इस प्रकार $P(2)$ भी सत्य है. पुनः यदि $n = 3$, तो $1 + 2 + 3 = 6$ और $\frac{3(3+1)}{2} = 6$ और इस प्रकार $P(3)$ भी सत्य है. इसी प्रकार हम $P(4)$, $P(5)$, $P(6)$ इत्यादि के सत्यता की जॉंच कर सकते हैं. ध्यान दीजिये कि $P(3)$ की सत्यता जॉंचने के लिए हमें $P(2)$ में प्राप्त $1 + 2$ में केवल $3$ जोड़ने की आवश्यकता होती है. इसी प्रकार $P(4)$ की सत्यता सिद्ध करने के लिए हमें $P(3)$ में प्राप्त $1 + 2 + 3$ में केवल $4$ जोड़ने की आवश्यकता होती है. इस प्रकार $P(1)$ की सत्यता से $P(2)$ की सत्यता परिलक्षित होती है, $P(2)$ से $P(3)$ की सत्यता परिलक्षित होती है और $P(3)$ से $P(4)$ की सत्यता परिलक्षित होती है, इत्यादि. व्यापक रूप में, हम दिखा सकते हैं कि किसी प्राकृत संख्या $n$ के लिए $P(n)$ की सत्यता से $P(n + 1)$ की सत्यता परिलक्षित होती है, जिसे नीचे दिखाया गया है :
\[1 + 2 + \cdots + n + (n + 1) = \frac{n(n+1)}{2} + (n + 1) = \frac{(n+1)(n+2)}{2},\] और इस प्रकार हम देखते हैं कि यदि $P(n)$ सत्य हों, तो $P(n+1)$ भी सत्य होता है. इस स्थिति में हम कहते हैं कि $P(n)$ सभी प्राकृत संख्याओं $P(n)$ के लिए सत्य है. इस प्रक्रिया को ही गणितीय आगमन कहते हैं. परन्तु, क्या इस तरह निष्कर्ष निकालना तार्किक है क्या ? वास्तव में ऐसा ही है. अब हम गणितीय आगमन सिद्धांत को शुद्ध गणितीय रूप में व्यक्त करेंगे और अपने पिछले लेख प्राकृत संख्याएँ में स्थापित अभिगृहितों की सहायता से इसे प्रमाणित करेंगे.
गणितीय आगमन सिद्धांत (प्रथम रूप): मान लीजिए कि $P(n)$ एक गणितीय कथन है, जो प्राकृत संख्या $n$ के लिए परिभाषित है और निम्नलिखित परिकल्पनाओं को संतुष्ट करता है :
- कथन $P(1)$ सत्य है,
- यदि किसी प्राकृत संख्या $n$ के लिए कथन $P(n)$ सत्य हों, तो कथन $P(n + 1)$ भी सत्य हों.
याद कीजिये कि किसी प्राकृत संख्या $n$ के लिए, इसकी उत्तरवर्ती संख्या $n + 1$ को $n'$ से परिभाषित करते हैं. अतः उपरोक्त आगमन सिद्धांत को निम्नलिखित रूप में भी व्यक्त किया जा सकता है :
गणितीय आगमन सिद्धांत (द्वितीय रूप): मान लीजिए कि $P(n)$ एक गणितीय कथन है, जो प्राकृत संख्या $n$ के लिए परिभाषित है और निम्नलिखित परिकल्पनाओं को संतुष्ट करता है :
- कथन $P(1)$ सत्य है,
- यदि किसी प्राकृत संख्या $n$ के लिए कथन $P(n)$ सत्य हों, तो कथन $P(n')$ भी सत्य हों.
आइये, अब हम इसे प्रमाणित करें. इसके लिए हम अपने पिछले लेख प्राकृत संख्याएँ में स्थापित अभिगृहितों का प्रयोग करेंगे.
उपपत्ति : मान लीजिये कि $S$ वैसे प्राकृत संख्याओं $n$ का समुच्चय है, जिसके लिए कथन $P(n)$ सत्य है. चुँकि कथन $P(1)$ सत्य है, अतः $1 \in S$ और किसी भी प्राकृत संख्या $n$ के लिए, यदि $n \in S$, समुच्चय $S$ की परिभाषा से कथन $P(n)$ सत्य है, जिससे कथन $P(n+1)$ की सत्यता भी इंगित होती है. अतः $n' \in S$ प्राप्त होता है. इस प्रकार, प्राकृत संख्याओं के अभिगृहितों के प्रयोग से हम कह सकते हैं कि सभी प्राकृत संख्याओं $n$ के लिए $n \in S$, जिससे सिद्ध होता है कि कथन $P(n)$ सभी प्राकृत संख्याओं $n$ के लिए सत्य है. इस तरह हमारी उपपत्ति पूर्ण होती है.
गणितीय आगमन सिद्धांत के अनुप्रयोग :
- हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं कि आगमन सिद्धांत उपपत्ति की एक विधि है. आइये हम इसका उपयोग कथन "$1 + 2 + \cdots + n = \frac{n(n+1)}{2}$" को प्रमाणित करने के लिए करें. ऐसा हम अनौपचारिक रूप से पहले ही कर चुके हैं. यहाँ हम इस कथन की औपचारिक उपपत्ति प्रस्तुत करेंगे. मान लीजिये कि $P(n)$ उपरोक्त कथन है. यदि $n =1$, तो $1 = \frac{1(1+1)}{2}$. अतः $P(1)$ सत्य है. मान लीजिये कि $n=k$ के लिए उपरोक्त कथन सत्य है, अर्थात $P(k)$ सत्य है. अतः \[1 + 2 + \cdots + k = \frac{k(k+1)}{2}.\] अब, इस आगमन परिकल्पना का प्रयोग करने पर हमें प्राप्त होता है : \[ 1 + 2 + \cdots +k + (k+1) = \frac{k(k+1)}{2} + (k+1) = \frac{(k+1)(k+2)}{2}.\] अतः कथन $P(k +1)$ सत्य है. इस प्रकार आगमन सिद्धांत से सभी प्राकृत संख्याओं $n$ के लिए कथन $P(n)$ की सत्यता प्रमाणित होती है. अर्थात, \[1 + 2 + \cdots + n = \frac{n(n+1)}{2}.\]
- आगमन सिद्धांत का प्रयोग कुछ चीजों को परिभाषित करने के लिए भी किया जाता है. उदाहरण के लिए, बीजगणित में $n!$ को निम्न प्रकार परिभाषित करते हैं :\[n! = 1\times 2\times \cdots \times n.\] इस परिभाषा का अर्थ है कि $n!$ ज्ञात करने के लिए हमें संख्याओं $1$ से $n$ तक की संख्याओं को गुणा करना होगा. पहले हम $1\times 2$, अर्थात $2!$ ज्ञात करते हैं. पुनः हम प्राप्त परिणाम को $3$ से गुणा करते हैं और हमें $1 \times 2 \times 3$, अर्थात $3!$ प्राप्त होता है. $(n-2)$वें चरण में हमें $(n-1)!$ प्राप्त होता है, जिसे हम $n$ से गुणा करते है, तो हमें $1 \times 2\times \cdots \times n$, अर्थात $n!$ प्राप्त होता है. अतः $n!$ की आगमानिक परिभाषा निम्न प्रकार दी जा सकती है : \[1! = 1,\] और यदि $n > 1$, तो \[n! = (n-1)! \times n.\]
\[*** *** ***\]
अतिउत्तम लेख.धन्यवाद.
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