हमारे घर में जब भी कोई वृद्ध अतिथि आते थे और मुझे गणित पढ़ते देखते थे, तो अचानक ही सवाल कर देते थे: $2 + 2 \div 2$ (दो जोड़ दो भागा दो) क्या होगा ? हो सकता है आपलोगों में से भी बहुतों के साथ ऐसा हुआ होगा. इस प्रश्न से जोड़ - घटाव - गुणा - भाग में पारंगत छात्र भी उत्तर देने में कभी कभी असमंजस में पड़ जाते हैं. मेरे साथ भी ऐसा होता था. इस प्रश्न का सही उत्तर क्या होगा ?
बहुभिर्प्रलापैः किम् , त्रयलोके सचरारे। यद्किंचिद्वस्तु तत्सर्वम् , गणितेन् बिना न हि॥ हिंदी में उच्च - स्तरीय गणित - लेखन का एक उद्यम......
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रविवार, 16 अक्टूबर 2016
बुधवार, 12 अक्टूबर 2016
गणितीय आगमन सिद्धांत
माखनलाल चतुर्वेदी की एक कविता है - "दीप से दीप जले" जिसकी प्रथम और अंतिम पंक्तियाँ हैं:
सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें
सुलग-सुलग री जोत! दीप से दीप जलें।
सुलग-सुलग री जोत! दीप से दीप जलें।
आप सोच रहे होंगे कि गणितीय आगमन सिद्धांत (Principle of Mathematical Induction) का इस कविता से क्या संबंध है !
शीघ्र ही यह स्पष्ट हो जाएगा. मान लीजिए एक कतार में अनंत संख्या में दीप
रखे हुए हैं. कल्पना कीजिए कि किसी भी एक दीप के जलना शुरू करते ही अगला
दीप भी जलना शुरू कर देता है. इस स्थिति में यदि आप कतार में पहले स्थान पर
रखे दीप को जलाते हैं, तो क्या सभी दीप स्वयं जल उठेंगे ? शायद आपका उत्तर
भी "हाँ" होगा.
गणितीय आगमन सिद्धांत भी इसी व्यावहारिक प्रेक्षण पर आधारित है. मान लीजिए कि हमें सिद्ध करना है कि कोई कथन किसी भी प्राकृत संख्या $n$ के लिए सत्य है. इसके लिए हम इस कथन को $n = 1$ के लिए सत्य सिद्ध करते हैं. पुनः हम सिद्ध करते हैं कि यदि यह कथन किसी स्वेच्छ संख्या $n = k$ के लिए सत्य है, तो यह अगली संख्या $k + 1$ के लिए भी सत्य होता है. तब यह सिद्ध हो जाता है कि वह कथन सभी $n$ के लिए सत्य है, क्योंकि $n = 1$ के लिए सत्य होने के कारण यह $n = 2$ के लिए सत्य होता है, फिर $n = 2$ के लिए सत्य होने के कारण $n = 3$ के लिए सत्य होता है, इसी प्रकार $n = 4, 5$, इत्यादि के लिए सत्य होता है.
इस सिद्धांत के विषय में विस्तार से जानने के लिए यह लेख पढ़ें: गणितीय आगमन सिद्धांत.
गणितीय आगमन सिद्धांत भी इसी व्यावहारिक प्रेक्षण पर आधारित है. मान लीजिए कि हमें सिद्ध करना है कि कोई कथन किसी भी प्राकृत संख्या $n$ के लिए सत्य है. इसके लिए हम इस कथन को $n = 1$ के लिए सत्य सिद्ध करते हैं. पुनः हम सिद्ध करते हैं कि यदि यह कथन किसी स्वेच्छ संख्या $n = k$ के लिए सत्य है, तो यह अगली संख्या $k + 1$ के लिए भी सत्य होता है. तब यह सिद्ध हो जाता है कि वह कथन सभी $n$ के लिए सत्य है, क्योंकि $n = 1$ के लिए सत्य होने के कारण यह $n = 2$ के लिए सत्य होता है, फिर $n = 2$ के लिए सत्य होने के कारण $n = 3$ के लिए सत्य होता है, इसी प्रकार $n = 4, 5$, इत्यादि के लिए सत्य होता है.
इस सिद्धांत के विषय में विस्तार से जानने के लिए यह लेख पढ़ें: गणितीय आगमन सिद्धांत.
सूचक शब्द :
उपपत्ति की विधियाँ
,
गणितीय आगमन सिद्धांत
स्थान :
India
मंगलवार, 11 अक्टूबर 2016
दाशमिक संख्या प्रणाली
विजयादशमी के बहाने.......
सर्वप्रथम विजयादशमी की मंगलप्रदायी शुभकामनायें !
आज विजयादशमी है. विजयादशमी में "दशमी" शब्द से ध्यान आया "दस" का और "दस"
से ध्यान आया "दाशमिक संख्या प्रणाली" का. दाशमिक संख्या प्रणाली के विषय
में महान गणितज्ञ लाप्लास ने कहा था:
"किसी भी संख्या को केवल दस प्रतीकों (प्रत्येक प्रतीक का एक स्थानीय मान और एक निरपेक्ष मान अर्थात अंकित मान होता है) की सहायता से व्यक्त करने की दक्ष विधि की खोज भारत में की गई. आजकल यह धारणा इतनी आसान लगती है कि इसके महत्त्व और इसकी अगाध उपयोगिता को हम पहली दृष्टि में नहीं समझ पाते हैं. इस धारणा ने परिकलनों को आसान बनाकर अंकगणित को सभी उपयोगी आविष्कारों में शीर्ष स्थान पर सुशोभित कर दिया - यह इसकी सरलता का परिचायक है. हमारी दृष्टि में इस आविष्कार का महत्त्व तब और बढ़ जाता है जब हम सोचते हैं कि यह धारणा प्राचीन काल के दो महापुरुषों आर्किमिडीज और अपोलोनियस की दृष्टि से भी परे था."निश्चय ही दाशमिक संख्या प्रणाली गणित और विज्ञान के इतिहास में एक अभूतपूर्व और महानतम योगदान है, जिसका श्रेय और गौरव भारत को प्राप्त है. जैसा कि लाप्लास ने कहा है कि इसकी महत्ता और इसकी उपयोगिता को हम पहली दृष्टि में नहीं आंक पाते हैं. क्या कभी आपने सोचा है कि दशमिक संख्या पद्धति ही क्यों इतना सहज है ? इस पद्धति में संख्याओं को लिखना और गिनना आसान क्यों है ? द्विआधारी पद्धति का प्रयोग करने में हमें कठिनाई क्यों होती है ? परन्तु यही द्विआधारी पद्धति निर्जीव कम्प्यूटर (जो मानवों की तरह सोच नहीं सकता) के लिए आसान क्यों है ? या इनपर बिना सोचे ही लाप्लास के कहने पर आपने मान लिया कि निश्चय ही यह महानतम आविष्कार है. इन प्रश्नों पर एक बार गहराई से चिंतन कीजिए. तभी आपको इसकी महानता का सही - सही पता चलेगा. अपना चिंतन और प्रेक्षण आप नीचे टिप्पणी कर सकते हैं.
भारतीय अंक प्रणाली की विशेषताएँ:
- इसमें दस संकेतों का उपयोग होता है: $0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9.$
- केवल दस संकेतों से ही छोटी-बड़ी सभी संख्याएँ लिखी जा सकती हैं.
- बड़ी-बड़ी संख्याएं लिखने में भी कम स्थान घेरतीं हैं (रोमन अंक प्रणाली में ऐसा नहीं है).
- भारतीय अंक प्रणाली स्थानीय मान पर आधारित दाशमिक प्रणाली है.
- इसमें 'शून्य' नामक एक अंक की परिकल्पना भी की गयी है जो अत्यन्त क्रांतिकारी कल्पना (खोज) थी। शून्य किसी भी स्थान पर हो, उसका स्थानीय मान 'शून्य' ही होता है। किन्तु किसी अंक या अंक-समूह के दाहिनी ओर शून्य लगाने से उसके बायें के सभी अंकों का स्थानीय मान पहले का दस गुना हो जाता है। वस्तुतः शून्य के बिना कोई भी स्थानीय मान पद्धति काम नहीं कर सकती।
- भारतीय अंकों के प्रयोग से अधिकांश गणितीय संक्रियाएँ (जोड़, घटाव, गुणा, भाग, वर्गमूल आदि) करना बहुत सुविधाजनक है (रोमन आदि अन्य प्रणालियों में यह सम्भव नहीं था).
सूचक शब्द :
दाशमिक पद्धति
,
दाशमिक संख्या प्रणाली
स्थान :
India
शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2016
ABC अनुमान क्या है ?
गणित के अंतर्गत संख्या सिद्धांत में कई ऐसी अनसुलझी समस्याएँ हैं, जो अपनी बोधगम्यता और दुरूहता के कारण गणितज्ञों को शताब्दियों से आकर्षित और अचंभित करते आए हैं. ये समस्याएँ बोधगम्य इसलिए हैं कि इनके कथन गणित का साधारण ज्ञान रखने वाले व्यक्ति भी समझ सकते हैं और दुरूह इसलिए हैं कि गणित में वर्तमान में ज्ञात सिद्धांतों की सहायता से इन समस्याओं को हल करना अत्यंत कठिन प्रतीत होता है - कुछ समस्याओं को शताब्दियों बाद गणित की उच्चस्तरीय तकनीकों और सिद्धांतों की सहायता से सुलझाया जा सका है और कुछ समस्याएँ अभी भी शताब्दियों से अनसुलझे पड़े हैं. इन अनसुलझे समस्याओं में कुछ अभिनव समस्याएँ भी हैं. इन्हीं समस्याओं में एक अत्यंत रोचक समस्या है - $ABC$ अनुमान. इस अनुमान को फ़्रांसिसी गणितज्ञ Joseph Oesterlé और बेसेल विश्वविद्यालय (University of Basel) के गणितज्ञ David Masser ने 1985 में प्रतिपादित किया था. हाल ही में, 2012 में क्योटो विश्विद्यालय में कार्यरत जापानी गणितज्ञ Shinichi Mochizuki ने इस समस्या का हल प्रस्तावित किया है. कई वर्षों के एकांत शोध के पश्चात् उन्होनें लगभग 500 पृष्ठों में इस समस्या का हल प्रस्तुत किया है. यह शोध पत्र एक गणितीय शोध पत्रिका में प्रकाशनार्थ विचाराधीन है और विशेषज्ञ गणितज्ञ इस शोध पत्र के अध्ययन में रत हैं. उनके इस शोध कार्य को कुछ गिने - चुने गणितज्ञ ही कुछ हद तक समझ पाए हैं और गणितज्ञों का विश्वास है कि शोध पत्र में प्रस्तुत हल सही है. पूर्ण सत्यापन के पश्चात ही इसका प्रकाशन किसी शोध पत्रिका में किया जाएगा.
सूचक शब्द :
अनुमान
,
abc अनुमान
स्थान :
India
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