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परिचय


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विभाज्यता - परीक्षण का व्यापक सिद्धांत (General Theory of Divisibility Tests)

विभाज्यता-नियम वे नियम हैं जिनके द्वारा मूल संख्या पर लम्बी भाग की प्रक्रिया किये बिना हम किसी एक संख्या से दूसरी संख्या के विभाज्यता का पता  कर सकते हैं. परंतु विभाज्यता से हमारा क्या तात्पर्य है ? हम कहते हैं कि कोई  पूर्णांक b एक अन्य पूर्णांक a से विभाज्य है (या पूर्णांक a पूर्णांक b को विभाजित करता है), यदि एक ऐसे पूर्णांक c का अस्तित्व हो, जिससे कि b = ac हो, और इस स्थिति में हम a \mid b लिखते हैं और इसे "a ~ b को विभाजित करता है" पढ़ते हैं.उदाहरण के लिए, 12 अभाज्य संख्या 3 से विभाज्य है, क्योंकि एक पूर्णांक 4 का अस्तित्व है, जिससे कि 12 = 3 \times 4. विभाज्यता से संबंधित कुछ नियमों से पाठक संभवतः परिचित होंगे - जैसे कोई धन पूर्णांक 2 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि इसका इकाई अंक एक सम संख्या हो, और कोई धन पूर्णांक 3 से विभाज्य होता है, यदि और केवल यदि इनके अंकों का योग 3 से विभाज्य हों, इत्यादि. अलग - अलग धन पूर्णांक से विभाज्यता के अलग - अलग नियम हैं, जिन्हें याद रख पाना प्रायः कठिन होता है. परन्तु ये सभी नियम कुछ विभाज्यता के कुछ आधारभूत सिद्धांतों पर आधारित हैं, जिन्हें याद रखना और समझना आसान हैं. इन सिद्धांतों को समझ लेने के पश्चात आप किसी भी संख्या से विभाज्यता का नियम स्वयं खोज सकते हैं. प्रस्तुत लेख में हम विभाज्यता-नियमों का उल्लेख करने से पहले इन आधारभूत सिद्धांतों पर चर्चा करेंगे, उन्हें प्रमाणित करेंगे और फिर बताएँगे कि किस प्रकार इन सिद्धांतों का प्रयोग विभाज्यता नियमों के निर्धारण में किया जा सकता है.

1. विभाज्यता - परीक्षण का व्यापक सिद्धांत


हम जानते हैं कि शून्य (0) प्रत्येक संख्या से विभाज्य है. निम्नलिखित परिणाम से स्पष्ट है कि हमें केवल धन पूर्णांकों पर विचार करने की आवश्यकता है.

प्रमेय 1. मान लीजिये a और b धन पूर्णांक हैं. तब निम्नलिखित कथन तुल्य हैं: (i) a \mid b, (ii) (-a) \mid b, (iii) a \mid (-b), (iv) (-a) \mid (-b).

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उपरोक्त कथनों की तुल्यता सिद्ध करने के लिए हमें दिखाना होगा कि किसी भी एक कथन के सत्य होने पर दूसरा कथन भी सत्य होता है. इसके लिए यह दिखाना ही पर्याप्त है कि कथन (i) सत्य होने पर कथन (ii) सत्य होता है, कथन (ii) सत्य होने पर कथन (iii) सत्य होता है, कथन (iii) सत्य होने पर कथन (iv) सत्य होता है, और कथन (iv) सत्य होने पर कथन (i) सत्य होता है.यहाँ हम केवल पहले निहितार्थ की ही उपपत्ति देंगे. अन्य निहितार्थों की उपपत्तियाँ समान हैं. मान लीजिए कि कथन (i) एक सत्य है. तब विभाजन की परिभाषा के अनुसार, एक ऐसे पूर्णांक c का अस्तित्व है जिससे कि b = ac. तब हम लिख सकते हैं कि b = (-a)(-c), अर्थात एक ऐसे पूर्णांक c' = -c का अस्तित्व है, जिससे कि b = (-a)c'. अतः (-a) | b. इस प्रकार उपपत्ति पूर्ण होती है.


विभाज्यता - परीक्षण के व्यापक सिद्धांत का उल्लेख करने से पहले हम एक उदाहरण पर विचार करते हैं. मान लीजिए हम एक संख्या 343 लेते हैं. यह संख्या 7 से विभाज्य है. अब इस संख्या को हम विस्तृत रूप b = 10^2 \times 3 + 10 \times 4 + 3 के रूप में लिखते हैं. अब हम b के व्यंजक में 10^2 और 10 को क्रमशः 2 और 3 से प्रतिस्थापित करते हैं, जो कि 10^2 और 10 को 7 से विभाजित करने पर प्राप्त शेषफल है. तब हमें एक नई संख्या r = 2 \times 3 + 3 \times 4 + 3 = 21 प्राप्त होती है, जो मूल संख्या से अत्यंत छोटी है और यह संख्या भी 7 से विभाज्य है. विभाज्यता का व्यापक परीक्षण - सिद्धांत इसी महत्त्वपूर्ण प्रेक्षण पर आधारित है, जिसके अंतर्गत हम संख्या को विस्तृत रूप में लिखने के पश्चात किसी स्थान के अंक के गुणांक, जो 10 के घात होते हैं, को कुछ शेषफलों से प्रतिस्थापित करते हैं.

अब हम विभाज्यता - परीक्षण से संबंधित  व्यापक परिणाम का कथन और उसकी उपपत्ति देंगे, जिसकी सहायता से किसी भी धन पूर्णांक से विभाज्यता का नियम ज्ञात किया जा सकता है. यह प्रमेय युक्लिडीय विभाजन - कलन विधि ( विभाज्यता - सिद्धांत में प्रमेय 2.1 देखें ) पर आधारित है.

प्रमेय 2 (विभाज्यता - परीक्षण का व्यापक सिद्धांत). मान लीजिये a और b धन पूर्णांक हैं, जहाँ b के इकाई, दहाई, सैकड़ा,......, k-वें स्थानों के अंक क्रमशः b_0, b_1, b_2, \ldots, b_k, इत्यादि हैं, अर्थात b = 10^kb_k + 10^{k-1}b_{k-1} + \cdots + 10^2b_2 + 10b_1 + b_0.मान लीजिए 10^i = aq_i + r_i, जहाँ प्रत्येक i = 1, 2, \ldots, k के लिए  0 \leq r_i < a या a/2 \leq r_2 < a/2. मान लीजिए r = r_kb_k + r_{k-1}b_{k-1} + \cdots + r_2b_2 + r_1b_1 + b_0.तब a \mid b यदि और केवल यदि a \mid r

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हम लिख सकते हैं कि
\begin{align*} b &= 10^kb_k + 10^{k-1}b_{k-1} + \cdots + 10^2b_2 + 10b_1 + b_0\\  & = (aq_k + r_k)b_k + (aq_{k-1} + r_{k-1})b_{k-1}+ \cdots + (aq_2 + r_2)b_2 + (aq_1 + r_1)b_1 + b_0\\ & =  a(q_kb_k + q_{k-1}b_{k-1} + \cdots + q_2b_2 + q_1b_1) + (r_kb_k + r_{k-1}b_{k-1} + \cdots + r_2b_2 + r_1b_1 + b_0), \end{align*}
और इसलिए,
\begin{equation}\label{eq-expanded} b = a (q_k b_k + q_{k-1}b_{k-1} + \cdots + q_2b_2 + q_1b_1) + r. \end{equation}
अब सर्वप्रथम मान लीजिए कि a \mid r. तब एक ऐसे पूर्णांक c का अस्तित्व होता है, जिससे कि r = ac. अतः
\begin{align*} b &= a (q_kb_k + q_{k-1}b_{k-1} + \cdots + q_2b_2 + q_1b_1) + ac\\ & = a (q_kb_k + q_{k-1}b_{k-1} + \cdots + q_2b_2 + q_1b_1 + c).\\ \end{align*}
इसलिए,विभाजन की परिभाषा के अनुसार, a \mid b.
विलोमतः मान लीजिए कि a | b. तब एक ऐसे पूर्णांक d का अस्तित्व होता है, जिससे कि b = ad. अब समीकरण (\ref{eq-expanded}) के अनुसार,
\begin{align*} r &= b - a (q_kb_k + q_{k-1}b_{k-1} + \cdots + q_2b_2 + q_1b_1)\\ & =ad - a (q_kb_k + q_{k-1}b_{k-1} + \cdots + q_2b_2 + q_1b_1)\\ & = a (d - q_kb_k + q_{k-1}b_{k-1} + \cdots + q_2b_2 + q_1b_1). \end{align*}
इसलिए, a \mid r. इस प्रकार हमारी उपपत्ति पूर्ण होती है.

टिप्पणी: यदि हम उपरोक्त प्रमेय में r के व्यंजक में कुछ r_i के स्थान पर 10^i ही रहने दे, तो भी उपरोक्त प्रमेय सही होता है. अत्यधिक व्यापक रूप में, यदि r के व्यंजक में कुछ r_i के स्थान पर 10^i के समशेष संख्याएँ लें, तो भी उपरोक्त प्रमेय सही होता है.यहाँ पर हम समशेष संख्याओं पर चर्चा नहीं करेंगे, क्योंकि इस लेख को प्रारंभिक कक्षाओं (कक्षा -7 से 10) के छात्रों को ध्यान में रखकर लिखा जा रहा है. इच्छुक पाठक इस विषय में अत्यधिक जानकारी समशेषता सिद्धांत नामक लेख में प्राप्त कर सकते हैं. इस संकल्पना का प्रयोग कर उपरोक्त प्रमेय की उपपत्ति और आगे आने वाले प्रेमयों की उपपत्तियाँ और आसान शब्दों में दी जा सकती है.

आइए, अब हम उपरोक्त परिणाम की सहायता से 2 से विभाज्यता का नियम ज्ञात करते हैं. इसके लिए हमें r_1, r_2, \ldots, r_k का मान ज्ञात करना होगा. क्योंकि 10, 10^2, \ldots, 10^k सभी 2 से विभाज्य हैं, अतः r_1 = r_2 = \cdots = r_k = 0, और r = r_kb_k + \cdots + r_2b_2+ r_1b_1 + b_0 = b_0. अतः उपरोक्त परिणाम के अनुसार कोई धन पूर्णांक a दो से विभाज्य होगा यदि और केवल यदि 2 \mid b_0. क्योंकि b_0 उस संख्या का इकाई अंक है, अतः कोई धन पूर्णांक 2 से विभाज्य होगा यदि और केवल यदि उस संख्या का इकाई अंक 2 से विभाज्य हो. उदाहरण के लिए, 23576 दो से विभाज्य है, परन्तु 3457 दो से विभाज्य नहीं है. नीचे के अनुच्छेद में दिए गए विभाज्यता - नियम से इसका मिलान करें.

आइये, अब हम हम उपरोक्त परिणाम की सहायता से 3 से विभाज्यता का नियम ज्ञात करते हैं. इसके लिए हमें पुनः r_1, r_2, \ldots, r_k का मान ज्ञात करना होगा. क्योंकि 10, 10^2, \ldots, 10^k में प्रत्येक को 3 से विभाजित करने पर शेषफल 1 प्राप्त होता है. अतः r_1 = r_2 = \cdots = r_k = 1, और r = r_kb_k + \cdots + r_2b_2+ r_1b_1 + b_0 = b_k + \cdots + b_2 + b_1 + b_0, जो कि उस संख्या के अंकों का योग है. अतः उपरोक्त परिणाम के अनुसार कोई धन पूर्णांक a तीन से विभाज्य होगा यदि और केवल यदि 3 \mid (b_k + \cdots + b_2 + b_1 + b_0). इस प्रकार कोई धन पूर्णांक 3 से विभाज्य होगा यदि और केवल यदि उस संख्या के अंकों का योग 3 से विभाज्य हो. उदाहरण के लिए, 342 तीन से विभाज्य है, क्योंकि इसके अंकों का योग 3 + 4+ 2 = 9 है, जो 3 से विभाज्य है. परंतु 325 तीन से विभाज्य नहीं है, क्योंकि इसके अंको का योग 3+2+5 = 10 है, जो 3 से विभाज्य नहीं है. पुनः नीचे के अनुच्छेद में दिए गए विभाज्यता नियम से इसका मिलान करें.

अब हम 4 से विभाज्यता का नियम ज्ञात करेंगे. इस स्थिति में आप आसानी से जाँच कर सकते हैं कि r_1 = 2 और r_2 = r_3 = \cdots = r_k = 0. इसलिए, r = 2b_1 + b_0. इस प्रकार 4 से विभाज्यता का नियम निम्न प्रकार दिया जा सकता है - कोई धन पूर्णांक 4 से विभाज्य होता है, यदि और केवल यदि उस संख्या के दहाई अंक के दूने और इकाई अंक का योगफल 4 से विभाज्य है. उदाहरण के लिए, यदि b = 132 लें, तो हमें 2 \times 3 + 2 = 8 प्राप्त होता है, जो 4 से विभाज्य है. अतः 132 भी 4 से विभाज्य है.

यदि हम प्रमेय 2 के नीचे की टिप्पणी पर ध्यान दें, तो हम r_1 के स्थान पर 10 ही रख सकते हैं और तब r = 10b_1 + b_0 प्राप्त होगा, जो मूल संख्या के दहाई और इकाई अंको से बनी संख्या है. अतः 4 से विभाज्यता का एक और नियम इस प्रकार होता है - कोई धन पूर्णांक 4 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि उस संख्या के इकाई और दहाई अंक (मूल संख्या के ही क्रम में) से बनी संख्या 4 से विभाज्य हो. उदाहरण के लिए, 2017 चार से विभाज्य नहीं है, क्योंकि 17 चार से विभाज्य नहीं है. परन्तु 2016 चार से विभाज्य है, क्योंकि 16 चार से विभाज्य है.

आइये, अब हम हम उपरोक्त परिणाम की सहायता से 7 से विभाज्यता का नियम ज्ञात करते हैं. इसके लिए हमें पुनः r_1, r_2, \ldots, r_k का मान ज्ञात करना होगा. क्योंकि 10, 10^2,10^3, 10^4, 10^5  में प्रत्येक को 7 से विभाजित करने पर शेषफल क्रमशः 3, 2, 6, 4, 5 प्राप्त होता है और इसके आगे के छह 10 के घातों को लेने पर शेषफल क्रमशः 1, 3, 2, 6, 4, 5 प्राप्त होता है और पुनः इसी क्रम में शेषफल की पुनरावृत्ति होती है. अतः इकाई अंक के गुणांक 1 को r_0 से निरूपित करने पर हमें प्राप्त होता है: r_0 = 1, r_1 = 3, r_2 = 2, r_3 = 6, r_4 = 4, r_5 = 5, और यही क्रम प्रत्येक अगले छह मानों के लिए होता है. अतः r = r_kb_k + \cdots + r_2b_2+ r_1b_1 + b_0 =  \cdots +5b_5 + 4b_4 + 6b_3 + 2b_2 + 3b_1 + b_0. अतः उपरोक्त परिणाम के अनुसार किसी धन पूर्णांक a के लिए 7 से विभाज्यता का निम्नलिखित नियम प्राप्त होता है: धन पूर्णांक b के अंकों को दायीं ओर से इकाई अंक से आरंभ कर पहले छह अंकों को क्रमशः 1, 3, 2, 6, 4, 5 से गुणा करें, पुनः अगले छह अंकों को भी इसी क्रम में इन संख्याओं से गुणा करें और इस प्रक्रिया की पुनरावृत्ति तबतक करते रहे, जबतक सभी अंकों में गुणा न हो जाएँ. अंत में सभी गुणनफल का योग ले लें. यह संख्या ही r का मान होगा. अब यदि r सात से विभाज्य हो, तो मूल संख्या भी सात से विभाज्य होगी. एक उदाहरण लेकर इसे समझते हैं. मान लीजिए दी गई संख्या b = 17325132 है. तब 4 \times 1 + 5 \times 7 + 5 \times 3 + 4 \times 2 + 6 \times 5 + 2 \times 1 + 3 \times 3 + 1 \times 2 = 4 + 35 + 15 + 8 + 30 + 2  + 9 + 2 = 105, जो 7 से विभाज्य है. अतः मूल संख्या भी 7 से विभाज्य होगी. आप भाग देकर इसका सत्यापन कर सकते हैं.

ऊपर आपने देखा कि उपरोक्त परिणाम की सहायता से सदैव सुगम परीक्षण - विधि प्राप्त नहीं होती है. ऐसा होने का कारण है - कई स्थितियों में अलग - अलग शेषफल प्राप्त होना. यदि हमें किसी संख्या a से विभाज्यता का नियम ज्ञात करना हो, तो इस क्रम प्राप्त होने वाले भिन्न - भिन्न शेषफलों की अधिकतम संख्या a होगी. यदि प्राप्त शेषफलों में अधिकतर शेषफल समान होते हैं, तो हमें आसान नियम प्राप्त होता है. उदाहरण के लिए, हम 11 से विभाज्यता का नियम  ज्ञात करते हैं. ध्यान दीजिए कि
\begin{align*} 10 = 11 \times 1 +  (-1),\\ 10^2 = 11 \times 9 + 1,\\ 10^3 = 11 \times 91 + (-1),\\ 10^4 = 11 \times 909  + 1, \vdots\\  \end{align*}
इसलिए,
r_1 = -1, ~r_2 = 1, r_3 = -1, r_4 = 1, \ldots.
इस प्रकार बारी-बारी से हमें न्यूनतम निरपेक्ष शेषफल -1 और 1 प्राप्त होता है. अतः r = (-1)^kb_k + \cdots + b_2 - b_1 + b_0 = (b_0 + b_2 + \cdots) - (b_1 + b_3 + \cdots). प्राप्त होता है. अतः विभाज्यता का निम्नलिखित नियम प्राप्त होता है - कोई धन पूर्णांक 11 से विभाज्य होता है, यदि और केवल यदि इसके सम स्थान के अंकों के योगफल और विषम स्थान के अंकों के योगफल का अंतर 11 से विभाज्य हो. उदाहरण के लिए यदि हम b = 14641 लें, तो इसके विषम स्थान के अंकों का योगफल 1 + 6 + 1 = 8 है और सम स्थान पर के अंकों का योगफल 4 + 4 = 8 है. इन दोनों योगफलों का अंतर 8 - 8 = 0 है, जो 11 से विभाज्य है. अतः 14641 भी 11 से विभाज्य है.

अगले अनुच्छेद में इन संख्याओं के अतिरिक्त 5, 8, 9, 10, 16, 20 और 25 का विभाज्यता - नियम भी इसी परिणाम पर आधारित हैं.

यद्यपि उपरोक्त परिणाम की सहायता से किसी भी धन पूर्णांक के लिए विभाज्यता का नियम ज्ञात किया जा सकता है, तो भी नीचे दिया गया परिणाम कुछ विषम संख्याओं से विभाज्यता का आसान नियम ज्ञात करने में सहायक होता है. अगले अनुच्छेद में 7 सहित अन्य अनेक विषम संख्याओं के विभाज्यता का  नियम इसी परिणाम पर आधारित है.

प्रमेय 3 (विषम धन पूर्णांकों के लिए विभाज्यता का नियम). मान लीजिए d एक विषम धन पूर्णांक है, जहाँ \gcd(d, 10) = 1. मान लीजिए कि n एक ऐसा पूर्णांक है, जिससे कि d \mid (10n - 1), अर्थात एक ऐसे पूर्णांक k का अस्तित्व है जिससे कि n = (1 + dk)/ 10. मान लीजिए b एक धन पूर्णांक है, जिसे हम b = 10m + a के रूप में लिख रहे हैं, अर्थात b का इकाई अंक a है और इकाई अंक को हटाने पर प्राप्त संख्या m है. तब d \mid b यदि और केवल यदि d \mid (m + na).
सारणी-1

ध्यान दीजिए कि इस परिणाम की सहायता से केवल वैसे विषम संख्या d से विभाज्यता का नियम ज्ञात कर सकते हैं जिसके लिए \gcd(d, 10) = 1. सारणी - 1 में हम d के कुछ विशिष्ट मानों के लिए n का मान सूचीबद्ध कर रहे हैं. इस सारणी में दिए गए d के मानों के लिए संगत n और m + na के मानों को देखकर विभाज्यता - नियम का कथन लिखें और उनकी मिलान अगले अनुच्छेद में दिए गए नियमों से करें. ध्यान दीजिए कि एक ही d के लिए n के एक से अधिक मान हो सकते हैं. उपरोक्त प्रमेय के अनुसार, d के किसी निश्चित मान के लिए n का मान निम्नलिखित समीकरण को हल करके ज्ञात किया जा सकता है:
10n - dk = 1,
जहाँ n और k अज्ञात चर हैं और \gcd(d, 10) = 1. क्योंकि \gcd(d, 10) = 1, अतः विभाज्यता - सिद्धांत के प्रमेय 2.9 के अनुसार इस समीकरण का पूर्णांकीय हल अवश्य होता है. वास्तव में यह दो चरों वाला एक अनिधार्य समीकरण है, जिसको हल करने की एक व्यवस्थित विधि है, जिसपर चर्चा हम उसी लेख में भविष्य में करेंगे.

अन्य विषम संख्याओं के लिए विभाज्यता के नियम पर हम आगे चर्चा करते हैं. प्रमेय 3 की उपपत्ति के लिए हमें निम्नलिखित प्रमेयिका की आवश्यकता होगी, जिसकी उपपत्ति के लिए आप विभाज्यता - सिद्धांत का प्रमेय 2.12 देख सकते हैं.

प्रमेयिका 4 (युक्लिड प्रमेयिका). मान लीजिए a, b और c पूर्णांक हैं, जहाँ \gcd(a, b) = 1. यदि a \mid bc, तो a \mid c.

प्रमेय 3 की उपपत्ति देखने के लिए यहाँ क्लिक करें >>>
क्योंकि d \mid (10n - 1), इसलिए एक ऐसे पूर्णांक k का अस्तित्व है जिससे कि 10n - 1 = dk. अतः 10n = 1 + dk और 1 = 10n - dk. अब सर्वप्रथम मान लीजिए कि d \mid (m + na). हम सिद्ध करेंगे कि d \mid b. क्योंकि d \mid (m + na), इसलिए एक ऐसे पूर्णांक c का अस्तित्व है जिससे कि m + na = dc. अब
b = 10m + a = 10m + (10n - dk)a,
क्योंकि 10n - dk = 1. अतः
b = 10m + 10na - dka = 10(m + na) - dka = 10dc - dka,
क्योंकि m + na = dc. इसलिए,
b = d(10c - ka).
अतः d \mid b. विलोमतः मान लीजिए कि d \mid b. तब हम सिद्ध करेंगे कि d \mid (m + na). क्योंकि b = 10m + a, अतः d \mid (10m + a). अर्थात d \mid [10 m +(10n -dk)a], क्योंकि 10n - dk =1. इस प्रकार, d \mid [10(m + na) - dka]. क्योंकि d \mid dka, इसलिए d \mid [10(m + na) -dka + dka], अर्थात d \mid 10(m + na). अब क्योंकि \gcd(d, 10) = 1, इसलिए युक्लिड प्रमेयिका के अनुसार, d \mid (m + na). इस प्रकार हमारी उपपत्ति पूर्ण होती है.


हमें सभी धन पूर्णांकों पर भी विचार करने की आवश्यकता नहीं है. हमें केवल परस्पर अभाज्य संख्याओं पर ही विचार करने की आवश्यकता है. यह निम्नलिखित परिणाम से स्पष्ट है, जिसकी उपपति आप विभाज्यता-सिद्धांत नामक लेख (उपप्रमेय 2.11 देखें ) में देख सकते हैं.

प्रमेयिका 5. मान लीजिए a, b और c पूर्णांक हैं, जहाँ \gcd(a, b) = 1. यदि a \mid c और b \mid c, तो ab \mid c.

उपरोक्त प्रमेयिका का प्रयोग कर हम निम्नलिखित परिणाम सिद्ध कर सकते हैं.

प्रमेय 6 (असहभाज्य संख्याओं के गुणनफल से विभाज्यता का नियम). मान लीजिए a_1, a_2, \ldots, a_k और c पूर्णांक हैं, जहाँ \gcd(a_1, a_2, \ldots, a_k) = 1. यदि प्रत्येक i = 1, 2, \ldots, k के लिए, a_i \mid c, तो a_1a_2\cdots a_k \mid c.

अंकगणित के मूलभूत प्रमेय (देखें अभाज्य संख्याएँ  में अनुच्छेद 3.2) के अनुसार, किसी भी धन पूर्णांक n > 1 को अभाज्य संख्याओं के गुणनफल के रूप में (क्रम का ध्यान रखे बिना) निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया जा सकता है:
n = p_1^{e_1}\cdots p_k^{e_k},
जहाँ p_1, \ldots, p_k अलग - अलग अभाज्य संख्याएँ हैं और e_1, \ldots, e_k धन पूर्णांक हैं. महत्तम समापवर्तक की परिभाषा से हम यह आसानी से सिद्ध कर सकते हैं कि \gcd(p_1^{e_1},\ldots, p_k^{e_k}) = 1.  तब प्रमेय 3 के अनुसार, कोई धन पूर्णांक a धन पूर्णांक n = p_1^{e_1}\cdots p_k^{e_k} से विभाज्य होगा यदि और केवल यदि यह प्रत्येक p_1^{e_1}, p_2^{e_2}, \ldots, p_k^{e_k} सभी से विभाज्य हों. उदाहरण के लिए, कोई संख्या 6 से विभाज्य होगी, यदि और केवल यदि यह 2 और 3 दोनों से विभाज्य हों, क्योंकि 6 = 2\times 3. इसी प्रकार कोई संख्या 18 से विभाज्य होगी यदि और केवल यदि यह 2 और 9 दोनों से विभाज्य हों, क्योंकि 18 = 2 \times 3^2 = 2 \times 9. अगले अनुच्छेद में इन संख्याओं के अतिरिक्त 6, 12, 14, 15, 18, 21, 22, 24, 26, 28 और 30 से विभाज्यता - नियम इसी परिणाम पर आधारित हैं.

2. शून्य (0) से इकतीस (31) तक के विभाज्यता - नियम

  • 0 से विभाज्यता का नियम: 0 से 0 के अतिरिक्त कोई पूर्णांक विभाज्य नहीं है.
  • 1 से विभाज्यता का नियम: 1 से सभी पूर्णांक विभाज्य हैं.
  • 2 से विभाज्यता का नियम: कोई ॠणेतर पूर्णांक 2 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि उस संख्या का इकाई अंक 2 से विभाज्य हों, अर्थात इकाई अंक 0, 2, 4, 6, 8 में से कोई एक अंक हों. उदाहरण के लिए, 2017 दो से विभाज्य नहीं है, क्योंकि इसका इकाई अंक 7 दो से विभाज्य नहीं है. परन्तु 2016 दो से विभाज्य है, क्योंकि इसका इकाई अंक 6 दो से विभाज्य है.
  • 3 से विभाज्यता का नियम: कोई ॠणेतर पूर्णांक 3 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि उस संख्या के अंकों का योग 3 से विभाज्य हों. उदाहरण के लिए, 2017 तीन से विभाज्य नहीं है, क्योंकि इसके अंकों का योग 10 है जो तीन से विभाज्य नहीं है. परन्तु 2016 तीन से विभाज्य है, क्योंकि इसके अंकों का योग 9 है जो तीन से विभाज्य है.
  • 4 से विभाज्यता का नियम: कोई ॠणेतर पूर्णांक 4 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि उस संख्या के इकाई और दहाई अंक (मूल संख्या के ही क्रम में) से बनी संख्या 4 से विभाज्य हो. उदाहरण के लिए, 2017 चार से विभाज्य नहीं है, क्योंकि 17 चार से विभाज्य नहीं है. परन्तु 2016 चार से विभाज्य है, क्योंकि 16 चार से विभाज्य है.
    द्वितीय नियम: कोई ॠणेतर पूर्णांक 4 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि उस संख्या के इकाई और दहाई अंक (मूल संख्या के ही क्रम में) से बनी संख्या 4 से विभाज्य हो. उदाहरण के लिए, 2017 चार से विभाज्य नहीं है, क्योंकि 17 चार से विभाज्य नहीं है. परन्तु 2016 चार से विभाज्य है, क्योंकि 16 चार से विभाज्य है.
  • 5 से विभाज्यता का नियम: कोई ॠणेतर पूर्णांक 5 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि उस संख्या का इकाई 5 से विभाज्य हो. उदाहरण के लिए, 2016 पाँच से विभाज्य नहीं है, क्योंकि 6 पाँच से विभाज्य नहीं है. परन्तु 2015 पाँच से विभाज्य है, क्योंकि 5 पाँच से विभाज्य है.
  • 6 से विभाज्यता का नियम: कोई ॠणेतर पूर्णांक 6 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि वह संख्या 2 और 3 दोनों से विभाज्य हों, अर्थात उस संख्या का इकाई अंक सम संख्या हों और उसके अंकों का योग 3 से विभाज्य हों.
  • 7 से विभाज्यता का नियम: मान लीजिये किसी ॠणेतर पूर्णांक n का इकाई अंक a है और इकाई अंक को हटाने पर प्राप्त नई संख्या m है. तब संख्या n अभाज्य संख्या 7 से विभाज्य होती है यदि और केवल यदि m - 2a अभाज्य संख्या 7 से विभाज्य हों.

    यदि इस चरण के पश्चात प्राप्त संख्या m - 2a ज्यादा बड़ी है, तो इस संख्या पर भी उपरोक्त प्रक्रिया लागू करते हैं. यह प्रक्रिया तबतक करते रहते हैं, जबतक कि हमें दो या एक अंक की संख्या प्राप्त न हो जाएँ या ऐसी संख्या न प्राप्त हो जाएँ जिसकी 7 से विभाज्यता का पता आसानी से लग जाए. यदि अंत में प्राप्त संख्या 7 से विभाज्य हों, तो मूल संख्या भी 7 से विभाज्य होगी, और यदि अंत में प्राप्त संख्या 7 से विभाज्य नहीं हों, तो मूल संख्या भी 7 से विभाज्य नहीं होगी.

    उदाहरण के लिए, यदि n = 361, तो a = 1 और m = 36. इसलिए, m - 2a = 36 - 2= 34, जो 7 से विभाज्य नहीं है. अतः 361 भी 7 से विभाज्य नहीं है. यदि n = 364, तो a = 4 और m = 36. इसलिए m - 2a = 36 - 8= 28, जो 7 से विभाज्य है. अतः 364 भी 7 से विभाज्य है.
  • 8 से विभाज्यता का नियम: कोई ॠणेतर पूर्णांक 8 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि उस संख्या के सैकड़ा, दहाई और इकाई स्थानों पर के अंकों से बनी संख्या (मूल संख्या के अंकों के क्रम में ही ) 8 से विभाज्य हों. उदाहरण के लिए, 352368 संख्या 8 से विभाज्य है, क्योंकि इसके सैकड़ा, दहाई और इकाई अंकों से बनी संख्या 368 है, जो 8 से विभाज्य है.
  • 9 से विभाज्यता का नियम: कोई ॠणेतर पूर्णांक 9 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि उस संख्या के अंकों का योग 9 से विभाज्य हों. उदाहरण के लिए, 352368 नौ से विभाज्य है, क्योंकि इसके अंकों का योग 9 से विभाज्य है.
  • 10 से विभाज्यता का नियम: कोई ॠणेतर पूर्णांक 10 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि उस संख्या का इकाई अंक 0 (शून्य) हो. उदाहरण के लिए, 352360 दस से विभाज्य है, परन्तु 352362 दस से विभाज्य नहीं है.
  • 11 से विभाज्यता का नियम:
    मान लीजिये किसी कोई ॠणेतर पूर्णांक n का इकाई अंक a है और इकाई अंक को हटाने पर प्राप्त नई संख्या m है. तब
    11 से विभाज्यता का प्रथम नियम: संख्या n संख्या 11 से विभाज्य होती है यदि और केवल यदि m - a संख्या 11 से विभाज्य हों.

    11 से विभाज्यता का द्वितीय नियम: संख्या n संख्या 11 से विभाज्य होती है यदि और केवल यदि m + 10a संख्या 11 से विभाज्य हों.

    यदि इस चरण के पश्चात प्राप्त संख्या m - a (या m + 10a) ज्यादा बड़ी हो, तो इस संख्या पर भी उपरोक्त प्रक्रिया लागू करते हैं. यह प्रक्रिया तबतक करते रहते हैं, जबतक कि हमें दो या एक अंक की संख्या प्राप्त न हो जाएँ या ऐसी संख्या न प्राप्त हो जाएँ जिसकी 11 से विभाज्यता का पता आसानी से लग जाए. यदि अंत में प्राप्त संख्या 11 से विभाज्य हों, तो मूल संख्या भी 11 से विभाज्य होगी, और यदि अंत में प्राप्त संख्या 11 से विभाज्य नहीं हों, तो मूल संख्या भी 11 से विभाज्य नहीं होगी.

    उदाहरण के लिए, यदि n = 273, तो यह 11 से विभाज्य नहीं होगी, क्योंकि इस स्थिति में m - a = 27 - 3 = 24, जो 11 से विभाज्य नहीं है. यदि n = 242, तो m - a = 24 - 2 = 22 जो 11 से विभाज्य है. अतः 242 भी 11 से विभाज्य है.
  • 12 से विभाज्यता का नियम: कोई ॠणेतर पूर्णांक 12 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि वह संख्या 3 और 4 दोनों से विभाज्य हों.
  • 13 से विभाज्यता का नियम: मान लीजिये किसी ॠणेतर पूर्णांक n का इकाई अंक a है और इकाई अंक को हटाने पर प्राप्त नई संख्या m है. तब संख्या n अभाज्य संख्या 13 से विभाज्य होती है यदि और केवल यदि m + 4a अभाज्य संख्या 13 से विभाज्य हों.

    यदि इस चरण के पश्चात प्राप्त संख्या m + 4a ज्यादा बड़ी है, तो इस संख्या पर भी उपरोक्त प्रक्रिया लागू करते हैं. यह प्रक्रिया तबतक करते रहते हैं, जबतक कि हमें दो या एक अंक की संख्या प्राप्त न हो जाएँ या ऐसी संख्या न प्राप्त हो जाएँ जिसकी 13 से विभाज्यता का पता आसानी से लग जाए. यदि अंत में प्राप्त संख्या 13 से विभाज्य हों, तो मूल संख्या भी 13 से विभाज्य होगी, और यदि अंत में प्राप्त संख्या 13 से विभाज्य नहीं हों, तो मूल संख्या भी 13 से विभाज्य नहीं होगी.

    उदाहरण के लिए, यदि n = 361, तो a = 1 और m = 36. इसलिए, m + 4a = 36 + 4 = 40, जो 13 से विभाज्य नहीं है. अतः 361 भी 13 से विभाज्य नहीं है. यदि n = 312, तो a = 2 और m = 31. इसलिए, m + 4a = 31 + 8 = 39, जो 13 से विभाज्य है. अतः 312 भी 13 से विभाज्य है.
  • 14 से विभाज्यता का नियम: कोई ॠणेतर पूर्णांक 14 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि वह संख्या 2 और 7 दोनों से विभाज्य हों.
  • 15 से विभाज्यता का नियम: कोई ॠणेतर पूर्णांक 15 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि वह संख्या 3 और 5 दोनों से विभाज्य हों.
  • 16 से विभाज्यता का नियम: कोई ॠणेतर पूर्णांक 16 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि उस संख्या के दायें से चौथे, तीसरे, दूसरे और पहले अंक से बनी चार अंकों की संख्या (जिसके अंक मूल संख्या के अंकों के क्रम में ही है) 16 से विभाज्य हों.
  • 17 से विभाज्यता का नियम:
    मान लीजिये किसी ॠणेतर पूर्णांक n का इकाई अंक a है और इकाई अंक को हटाने पर प्राप्त नई संख्या m है. तब संख्या n अभाज्य संख्या 17 से विभाज्य होती है यदि और केवल यदि m - 5a अभाज्य संख्या 17 से विभाज्य हों.

    यदि इस चरण के पश्चात प्राप्त संख्या m - 5a ज्यादा बड़ी है, तो इस संख्या पर भी उपरोक्त प्रक्रिया लागू करते हैं. यह प्रक्रिया तबतक करते रहते हैं, जबतक कि हमें ऐसी संख्या न प्राप्त हो जाएँ जिसकी 17 से विभाज्यता का पता आसानी से लग जाए. यदि अंत में प्राप्त संख्या 17 से विभाज्य हों, तो मूल संख्या भी 17 से विभाज्य होगी, और यदि अंत में प्राप्त संख्या 17 से विभाज्य नहीं हों, तो मूल संख्या भी 17 से विभाज्य नहीं होगी.

    उदाहरण के लिए, यदि n = 361, तो a = 1 और m = 36. इसलिए,  m - 5a = 36 - 5 = 31, जो 17 से विभाज्य नहीं है. अतः 361 भी 17 से विभाज्य नहीं है. यदि n = 391, तो a = 1 और m = 39. इसलिए m - 5a = 39 -5 = 34, जो 17 से विभाज्य है. अतः 391 भी 17 से विभाज्य है.

    एक दूसरा नियम इस प्रकार है: कोई ॠणेतर पूर्णांक nअभाज्य संख्या 17 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि m + 12a अभाज्य संख्या 17 से विभाज्य हों.
  • 18 से विभाज्यता का नियम: कोई ॠणेतर पूर्णांक 18 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि वह संख्या 2 और 9 दोनों से विभाज्य हों.
  • 19 से विभाज्यता का नियम:
    मान लीजिये किसी ॠणेतर पूर्णांक n का इकाई अंक a है और इकाई अंक को हटाने पर प्राप्त नई संख्या m है. तब संख्या n अभाज्य संख्या 19 से विभाज्य होती है यदि और केवल यदि m + 2a अभाज्य संख्या 19 से विभाज्य हों.

    यदि इस चरण के पश्चात प्राप्त संख्या m + 2a ज्यादा बड़ी है, तो इस संख्या पर भी उपरोक्त प्रक्रिया लागू करते हैं. यह प्रक्रिया तबतक करते रहते हैं, जबतक कि हमें दो या एक अंक की संख्या प्राप्त न हो जाएँ या ऐसी संख्या न प्राप्त हो जाएँ जिसकी 19 से विभाज्यता का पता आसानी से लग जाए. यदि अंत में प्राप्त संख्या 19 से विभाज्य हों, तो मूल संख्या भी 19 से विभाज्य होगी, और यदि अंत में प्राप्त संख्या 19 से विभाज्य नहीं हों, तो मूल संख्या भी 19 से विभाज्य नहीं होगी.

    उदाहरण के लिए, यदि n = 361, तो a = 1 और m = 36. इसलिए, m + 2a = 36 + 2 = 38, जो 19 से विभाज्य है. अतः 361 भी 19 से विभाज्य है.
  • 20 से विभाज्यता का नियम: कोई संख्या 20 से विभाज्य होती है यदि और केवल यदि उस संख्या के इकाई और दहाई अंक (मूल संख्या के ही क्रम में) से बनी संख्या 20 से विभाज्य हों.

    उदाहरण के लिए, 12360 बीस से विभाज्य है, क्योंकि 60 बीस से विभाज्य है. परन्तु 13545 बीस से विभाज्य नहीं है, क्योंकि 45 बीस से विभाज्य नहीं है.

    इस तरह संख्या कितनी भी बड़ी क्यों न हों, 20 से इसकी विभाज्यता की जाँच करने के लिए हमें केवल इकाई और दहाई अंक ही देखने की आवश्यकता होती है.

    यह भी ध्यान दीजिए कि 20 = 2^2 \cdot 5, अतः किसी संख्या को 20 से विभाज्य होने के लिए उसे 2 और 5 से भी विभाज्य होना पड़ेगा. अतः इनमें से किसी एक संख्या से भी यदि मूल संख्या विभाज्य नहीं हो, तो संख्या विभाज्य नहीं होगा. यह भी ध्यान दीजिए कि यदि कोई संख्या 20 से विभाज्य है, तो इसका इकाई अंक अवश्य 0 होगा. अतः यदि किसी संख्या का इकाई अंक शून्य नहीं हो, तो वह संख्या 20 से विभाज्य नहीं हो सकती.
  • 21 से विभाज्यता का नियम: कोई ॠणेतर 21 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि यह संख्या 3 और 7 दोनों से विभाज्य हों.
    द्वितीय नियम: मान लीजिये किसी ॠणेतर पूर्णांक n का इकाई अंक a है और इकाई अंक को हटाने पर प्राप्त नई संख्या m है. तब संख्या n संख्या 21 से विभाज्य होती है यदि और केवल यदि m - 2a अभाज्य संख्या 21 से विभाज्य हों.

    द्यदि इस चरण के पश्चात प्राप्त संख्या m - 2a ज्यादा बड़ी है, तो इस संख्या पर भी उपरोक्त प्रक्रिया लागू करते हैं. यह प्रक्रिया तबतक करते रहते हैं, जबतक कि हमें दो या एक अंक की संख्या प्राप्त न हो जाएँ या ऐसी संख्या न प्राप्त हो जाएँ जिसकी 21 से विभाज्यता का पता आसानी से लग जाए. यदि अंत में प्राप्त संख्या 21 से विभाज्य हों, तो मूल संख्या भी 21 से विभाज्य होगी, और यदि अंत में प्राप्त संख्या 21 से विभाज्य नहीं हों, तो मूल संख्या भी 21 से विभाज्य नहीं होगी.

    उदाहरण के लिए, यदि n = 273, तो a = 3 और m = 27. इसलिए,  m - 2a = 27 - 6 = 21, जो 21 से विभाज्य है. अतः 273 भी 21 से विभाज्य है. ध्यान दीजिए कि 21 = 3 \cdot 7, अतः 21 से विभाज्य संख्या 3 और 7 से भी अवश्य विभाज्य होगी. इसप्रकार कोई संख्या यदि 3 और 7 में से किसी एक संख्या से भी विभाज्य न हों, तो मूल संख्या 21 से विभाज्य नहीं होगी. उदाहरण के लिए, 2017 तीन से विभाज्य नहीं है, अतः यह 21 से भी विभाज्य नहीं है.
  • 22 से विभाज्यता का नियम: कोई ॠणेतर पूर्णांक 22 से विभाज्य होती है यदि और केवल यदि यह 2 और 11 दोनों से ही विभाज्य हों.
  • 23 से विभाज्यता का नियम:
    मान लीजिये किसी ॠणेतर पूर्णांक n का इकाई अंक a है और इकाई अंक को हटाने पर प्राप्त नई संख्या m है. तब संख्या n अभाज्य संख्या 23 से विभाज्य होती है यदि और केवल यदि m + 7a अभाज्य संख्या 23 से विभाज्य हों.

    यदि इस चरण के पश्चात प्राप्त संख्या m + 7a ज्यादा बड़ी है, तो इस संख्या पर भी उपरोक्त प्रक्रिया लागू करते हैं. यह प्रक्रिया तबतक करते रहते हैं, जबतक कि हमें दो या एक अंक की संख्या प्राप्त न हो जाएँ या ऐसी संख्या न प्राप्त हो जाएँ जिसकी 23 से विभाज्यता का पता आसानी से लग जाए. यदि अंत में प्राप्त संख्या 23 से विभाज्य हों, तो मूल संख्या भी 23 से विभाज्य होगी, और यदि अंत में प्राप्त संख्या 23 से विभाज्य नहीं हों, तो मूल संख्या भी 23 से विभाज्य नहीं होगी.

    उदाहरण के लिए, यदि n = 361, तो a = 1 और m = 36. इसलिए m + 7a = 36 + 7 = 43, जो 23 से विभाज्य नहीं है. अतः 361 भी 23 से विभाज्य नहीं है. यदि n = 322, तो a = 2 और m = 32. इसलिए,  m + 7a = 32 + 14 = 46, जो 23 से विभाज्य है. अतः 322 भी 23 से विभाज्य है.
  • 24 से विभाज्यता का नियम: कोई ॠणेतर पूर्णांक 24 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि यह 3 और 8 दोनों से विभाज्य होती हों.
  • 25 से विभाज्यता का नियम:
    कोई ॠणेतर पूर्णांक 25 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि उस संख्या के इकाई और दहाई अंक (मूल संख्या के ही क्रम में) से बनी संख्या 25 से विभाज्य हों.

    क्योंकि 25 से विभाज्य होने वाली दो अंकों की ॠणेतर प्राकृत संख्याएँ केवल 00, 25, 50 और 75 हैं, अतः कोई ॠणेतर पूर्णांक 25 से विभाज्य होगा यदि और केवल यदि उस संख्या की दायीं ओर के प्रथम दो अंक 00, 25, 50 या 75 हों.

    उदाहरण के लिए, 12360 पच्चीस से विभाज्य नहीं है, क्योंकि 60 पच्चीस से विभाज्य नहीं है. परन्तु 13575 पच्चीस से विभाज्य है, क्योंकि 75 पच्चीस से विभाज्य है.
  • 26 से विभाज्यता का नियम:
    कोई ॠणेतर पूर्णांक 26 से विभाज्य होती है यदि और केवल यदि यह 2 और 13 दोनों से ही विभाज्य हों.

    क्योंकि 2 से विभाज्य संख्याएँ आवश्यक रूप से सम संख्याएँ होती हैं, अतः विषम संख्याएँ कभी भी 26 से विभाज्य नहीं हो सकती. इसप्रकार हमें 26 से विभाज्यता की जाँच करने के लिए केवल सम संख्याओं की 13 से विभाज्यता की जाँच करनी होती है.
  • 27 से विभाज्यता का नियम: मान लीजिये किसी ॠणेतर पूर्णांक n का इकाई अंक a है और इकाई अंक को हटाने पर प्राप्त नई संख्या m है. तब संख्या n संख्या 27 से विभाज्य होती है यदि और केवल यदि m - 8a संख्या 27 से विभाज्य हों.

    यदि इस चरण के पश्चात प्राप्त संख्या m - 8a ज्यादा बड़ी है, तो इस संख्या पर भी उपरोक्त प्रक्रिया लागू करते हैं. यह प्रक्रिया तबतक करते रहते हैं, जबतक कि हमें दो या एक अंक की संख्या प्राप्त न हो जाएँ या ऐसी संख्या न प्राप्त हो जाएँ जिसकी 27 से विभाज्यता का पता आसानी से लग जाए. यदि अंत में प्राप्त संख्या 27 से विभाज्य हों, तो मूल संख्या भी 27 से विभाज्य होगी, और यदि अंत में प्राप्त संख्या 27 से विभाज्य नहीं हों, तो मूल संख्या भी 27 से विभाज्य नहीं होगी.

    उदाहरण के लिए, यदि n = 361, तो a = 1 और m = 36. इसलिए, m - 8a = 36 - 8 = 28, जो 27 से विभाज्य नहीं है. अतः 361 भी 27 से विभाज्य नहीं है. यदि n = 431, तो a = 2 और m = 43. इसलिए, m - 8a = 43 - 16 = 27, जो 27 से विभाज्य है. अतः 431 भी 27 से विभाज्य है.
  • 28 से विभाज्यता का नियम: कोई ॠणेतर पूर्णांक 28 से विभाज्य होता है यदि और केवल यदि यह 4 और 7 दोनों से विभाज्य होती हों.
  • 29 से विभाज्यता का नियम:
    मान लीजिये किसी ॠणेतर पूर्णांक n का इकाई अंक a है और इकाई अंक को हटाने पर प्राप्त नई संख्या m है. तब संख्या n संख्या 29 से विभाज्य होती है यदि और केवल यदि m + 3a संख्या 29 से विभाज्य हों.

    यदि इस चरण के पश्चात प्राप्त संख्या m + 3a ज्यादा बड़ी है, तो इस संख्या पर भी उपरोक्त प्रक्रिया लागू करते हैं. यह प्रक्रिया तबतक करते रहते हैं, जबतक कि हमें दो या एक अंक की संख्या प्राप्त न हो जाएँ या ऐसी संख्या न प्राप्त हो जाएँ जिसकी 29 से विभाज्यता का पता आसानी से लग जाए. यदि अंत में प्राप्त संख्या 29 से विभाज्य हों, तो मूल संख्या भी 29 से विभाज्य होगी, और यदि अंत में प्राप्त संख्या 29 से विभाज्य नहीं हों, तो मूल संख्या भी 29 से विभाज्य नहीं होगी.

    उदाहरण के लिए, यदि n = 361, तो a = 1 और m = 36. इसलिए,  m + 3a = 36 + 3 = 39, जो 29 से विभाज्य नहीं है. अतः 361 भी 29 से विभाज्य नहीं है. यदि n = 435, तो a = 5 और m = 43. इसलिए,  m + 3a = 43 + 15 = 58, जो 29 से विभाज्य है. अतः 435 भी 29 से विभाज्य है.
  • 30 से विभाज्यता का नियम: कोई ॠणेतर पूर्णांक 30 से विभाज्य होती है यदि और केवल यदि यह 3 और 10 दोनों से ही विभाज्य हों.
  • 31 से विभाज्यता का नियम: मान लीजिये किसी ॠणेतर पूर्णांक n का इकाई अंक a है और इकाई अंक को हटाने पर प्राप्त नई संख्या m है. तब संख्या n संख्या 31 से विभाज्य होती है यदि और केवल यदि m - 3a अभाज्य संख्या 31 से विभाज्य हों.

    यदि इस चरण के पश्चात प्राप्त संख्या m - 3a ज्यादा बड़ी है, तो इस संख्या पर भी उपरोक्त प्रक्रिया लागू करते हैं. यह प्रक्रिया तबतक करते रहते हैं, जबतक कि हमें दो या एक अंक की संख्या प्राप्त न हो जाएँ या ऐसी संख्या न प्राप्त हो जाएँ जिसकी 31 से विभाज्यता का पता आसानी से लग जाए. यदि अंत में प्राप्त संख्या 31 से विभाज्य हों, तो मूल संख्या भी 31 से विभाज्य होगी, और यदि अंत में प्राप्त संख्या 31 से विभाज्य नहीं हों, तो मूल संख्या भी 31 से विभाज्य नहीं होगी.

    उदाहरण के लिए, यदि n = 361, तो a = 1 और m = 36. इसलिए,  m - 3a = 36 - 3 = 33, जो 31 से विभाज्य नहीं है. अतः 361 भी 31 से विभाज्य नहीं है. यदि n = 465, तो a = 5 और m = 46. इसलिए,  m - 3a = 46 - 15 = 31, जो 31 से विभाज्य है. अतः 465 भी 31 से विभाज्य है.

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