अभाज्य संख्याओं की परिभाषा से हम सब परिचित हैं.  एक स्वाभाविक जिज्ञासा होती है कि सबसे बड़ी अभाज्य 
संख्या कौन है या इनकी संख्या अनंत है. इस प्रश्न का उत्तर यूक्लिड 
(Euclid) की पुस्तक संख्या - IX में देखा जा सकता है, जहाँ उन्होंने सिद्ध 
किया है कि अभाज्य संख्याओं की संख्या अनंत है. उनका तर्क मोटे तौर पर इस 
प्रकार है: यदि अभाज्यों की एक परिमित सूची दी हुई हो, तो हम एक अन्य 
अभाज्य संख्या ज्ञात कर सकते हैं, जो इस सूची में नहीं हैं. नीचे के प्रमेय
 में हम इस तथ्य की स्पष्ट उपपत्ति देते हैं.
प्रमेय (यूक्लिड). अभाज्य संख्याओं की संख्या अनंत है.
उपपत्ति: 
मान
 लीजिए कि अभाज्य संख्याओं की संख्या परिमित है. इन अभाज्यों की सूची $p_1,
 p_2, \ldots , p_n$ बनाईये. अब एक धन पूर्णांक $m = p_1p_2\cdots p_n + 1$
 परिभाषित कीजिये. क्योंकि $m > 1$, अंकगणित के मूलभूत प्रमेय के 
अनुसार, कम से कम एक अभाज्य $p$ धन पूर्णांक $m$ को अवश्य विभाजित करेगा. 
क्योंकि हमारे पास परिमित संख्या में अभाज्य संख्याएँ हैं, अतः $p$ इन्हीं 
अभाज्यों में से कोई एक अभाज्य होगा. परन्तु तब $p \mid p_1\cdots p_n$. 
क्योंकि $p \mid m$, इसलिए अवश्य ही $p \mid (m - p_1\cdots p_n)$, अर्थात 
$p \mid 1$, जो एक अंतर्विरोध है. अतः अभाज्य संख्याओं की संख्या परिमित 
नहीं हो सकती. इस प्रकार हमारी उपपत्ति पूर्ण होती है.  
 
क्योंकि किसी भी विषम धन पूर्णांक को $4n + 1$ या $4n + 3$ के रूप में 
व्यक्त किया जा सकता है, इसलिए विषम अभाज्य संख्याएँ भी इन रूपों में 
व्यक्त किये जा सकते हैं. एक स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि क्या $4n + 1$ के
 रूप में या $4n + 3$ के रूप में व्यक्त किये जा सकने वाले अभाज्य संख्याओं
 की संख्या अनंत है. इस प्रश्न का उत्तर "हाँ" है | नीचे के प्रमेय में हम 
सिद्ध करेंगे कि $4n + 3$ के रूप में व्यक्त किये जा सकने वाले अभाज्य 
संख्याओं की संख्या अनंत है. परन्तु उससे पहले हम निम्नलिखित प्रमेयिका 
सिद्ध करेंगे.
प्रमेयिका. यदि दो या अधिक पूर्णांक $4n + 1$ के रूप के हों, तो उनका गुणनफल भी इसी रूप का होता है.
उपपत्ति: 
केवल $4n + 1$ के रूप वाले दो पूर्णांकों पर विचार करना पर्याप्त है. मान लीजिए $m_1 = 4m +1$ और $m_2 = 4n + 1$. तब $m_1m_2 = (4m + 1)(4n + 1) = 4(4mn + m + n) + 1$, जो अभीष्ट रूप में है.
प्रमेय. $4n + 3$ के रूप में व्यक्त किये जा सकने वाले अभाज्यों की संख्या अनंत हैं.
उपपत्ति: 
इस
 कथन को हम अंतर्विरोध द्वारा सिद्ध करेंगे. मान लीजिए कि $4n + 3$ के रूप 
में व्यक्त किये जा सकने वाले अभाज्य संख्याओं की संख्या परिमित हैं और ये 
अभाज्य $p_1, \ldots, p_k$ हैं. अब एक धनात्मक पूर्णांक 
\[m = 4p_1\cdots p_k - 1 = 4(p_1\cdots p_k - 1) + 3\]
परिभाषित कीजिए. ध्यान दीजिए कि $m \geq 3$. अतः $m$ किसी अभाज्य संख्या से विभाजित होगा. क्योंकि $m$ एक विषम संख्या है, अतः इसके सभी अभाज्य गुणनखंड विषम होंगे और ये सभी गुणनखंड या तो $4n + 1$ के रूप के होंगे या $4n + 3$ के रूप के होंगे. यदि सभी गुणनखंड $4n + 1$ के रूप के हों, तो उपरोक्त प्रमेयिका के अनुसार $m$ भी $4n + 1$ के रूप का होगा, जो सत्य नहीं है. अतः $m$ का कम से कम एक अभाज्य गुणनखंड $4n + 3$ के रूप का अवश्य होगा. क्योंकि हम यह मानकर चले थे कि $4n + 3$ के रूप में व्यक्त किये जा सकने वाले अभाज्य केवल $p_1,\ldots , p_k$ हैं, अतः $m$ का कम से कम एक अभाज्य गुणनखंड इन्हीं अभाज्यों में से कोई एक अभाज्य, मान लीजिए $p_1$, होगा. परन्तु तब क्योंकि $p_1 \mid 4p_1\cdots p_k$, इसलिए $p_1 \mid 4p_1\cdots p_k - m = 1$, जो एक अंतर्विरोध है. अतः ऐसे अभाज्यों की संख्या परिमित नहीं हो सकती. इस प्रकार हमारी उपपत्ति पूर्ण होती है.
\[m = 4p_1\cdots p_k - 1 = 4(p_1\cdots p_k - 1) + 3\]
परिभाषित कीजिए. ध्यान दीजिए कि $m \geq 3$. अतः $m$ किसी अभाज्य संख्या से विभाजित होगा. क्योंकि $m$ एक विषम संख्या है, अतः इसके सभी अभाज्य गुणनखंड विषम होंगे और ये सभी गुणनखंड या तो $4n + 1$ के रूप के होंगे या $4n + 3$ के रूप के होंगे. यदि सभी गुणनखंड $4n + 1$ के रूप के हों, तो उपरोक्त प्रमेयिका के अनुसार $m$ भी $4n + 1$ के रूप का होगा, जो सत्य नहीं है. अतः $m$ का कम से कम एक अभाज्य गुणनखंड $4n + 3$ के रूप का अवश्य होगा. क्योंकि हम यह मानकर चले थे कि $4n + 3$ के रूप में व्यक्त किये जा सकने वाले अभाज्य केवल $p_1,\ldots , p_k$ हैं, अतः $m$ का कम से कम एक अभाज्य गुणनखंड इन्हीं अभाज्यों में से कोई एक अभाज्य, मान लीजिए $p_1$, होगा. परन्तु तब क्योंकि $p_1 \mid 4p_1\cdots p_k$, इसलिए $p_1 \mid 4p_1\cdots p_k - m = 1$, जो एक अंतर्विरोध है. अतः ऐसे अभाज्यों की संख्या परिमित नहीं हो सकती. इस प्रकार हमारी उपपत्ति पूर्ण होती है.
उपरोक्त उपपत्ति की ही तरह इस तथ्य की उपपत्ति नहीं दी जा सकती है कि 
$4n + 1$ के रूप में व्यक्त किये जा सकने वाले अभाज्यों की संख्या अनंत 
हैं. इस कथन की उपपत्ति हम आगे के किसी अध्याय में देंगे. उपरोक्त दोनों 
कथन डिरिक्ले (Dirichlet) के निम्नलिखित प्रमेय की विशेष स्थिति है.
प्रमेय. यदि $a$ और $b$ असहभाज्य धन पूर्णांक हों, तो सामानांतर अनुक्रम 
\[a, a+b, a+2b, a+3b, \ldots\]
अनंततः अनेक अभाज्य संख्याओं को आविष्ट करता है.
उपरोक्त
 प्रमेय के अनुसार, किन्हीं दो असहभाज्य धन पूर्णांकों $a$ और $b$ के लिए 
$a+nb$ के रूप में व्यक्त किये जा सकने वाले अभाज्य संख्याओं की संख्या 
अनंत होती हैं. इस प्रमेय की उपपत्ति यहाँ हम नहीं देंगे. इसकी उपपत्ति 
वैश्लेषिक संख्या सिद्धांत (Analytic Number Theory) के अंतर्गत किसी 
अध्याय में (इसी ब्लॉग में अन्यत्र) दी जाएगी.
इस विषय से संबंधित अन्य जानकारी के लिए मूल आलेख अभाज्य संख्याएँ देखें.
ध्यातव्य: इस विषय से संबंधित किसी भी प्रश्न या जिज्ञासा के लिए इस पृष्ठ पर टिप्पणी करें या ganitanjalii@gmail.com पर ई-मेल करें. 
(चैत्र शुक्ल पक्ष, त्रयोदशी, वि. सं. 2072, वृहस्तपतिवार)
(चैत्र 12, राष्ट्रीय शाके 1937, वृहस्तपतिवार) 
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